परंपरागत तरीके में रोगजनक सूक्ष्म जीवाणु, बैक्टीरिया और वायरस को प्रयोगशाला में काफी संख्या में तैयार किया जाता है। परंतु एच.आई.वी. के मामले में परंपरागत तरीके खतरनाक हो सकते हैं। कमजोर विषाणु शरीर में प्रवेश कर अगर सक्रिय हो गया तो व्यक्ति को एड्स से प्रतिक्षण मिलने की बजाय उल्टा, संक्रमण मिल जाएगा। इसलिए वैज्ञानिक एड्स का टीका बनाने के सुरक्षित, सटीक और कारगर जीन तकनीकों का सहारा ले रहे हैं। जीन तकनीकों से टीका बनाने के प्रयास वैज्ञानिक जगत् में नए हैं। इसमें टीका बनाने की कोई विधि अभी तक सुस्थापित नहीं हुई है, इसलिए एड्स का टीका बनाने में विलंब हो रहा है। जीन तकनीकों से एड्स का टीका बनाने के लिए सबसे पहले एड्स विषाणु की आनुवंशिकी संरचना को समझना जरूरी है। एड्स विषाणु की संरचना कोशिका जैसी है। इसके नाभिक समान केन्द्र में कोशिकाओं की तरह डी.एन.ए. (डिऑक्सीरिबोन्युक्लिक एसिड) नहीं होता, बल्कि केवल आर.एन.ए. (रिबोन्युक्लिकएसिड) ही होता है। वह आर.एन.ए. भी विशेष किस्म-द्रास्क्रिपेट्सइनवर्स, का होता है। एड्स विषाणु रेटेवाइरस परिवार का है। इसमें आनुवशिक सूचनाए एक मायने मे आर एन ए में दर्ज होती है. आरएन.ए. पर कई जीन लगी होती हैं।
एड्स का टीका बनाने के लिए समस्या || Problem in Manufacturing
AIDS Vaccine in Hindi ||
टीका बनाने के लिए यह जानना भी जरूरी है कि विषाणु के किस हिस्से के विरुद्ध हमें प्रतिपिंडों का निर्माण करना है। रिसेप्टर की घुंडीनुमा आकृति में प्रतिपिंड यानी एंटीबाडीज जाकर फंस जाती है और उन्हें नष्ट कर देती है। इस तरह विषाणु टूट जाता है और विषाणु के नष्ट होने से संक्रमण भी दूर हो जाता है। चूंकि एड्स विषाणु का खोल बदलता रहता है इसलिए यह दिक्कत खड़ी हो गई है कि इस विषाणु की कौन-सी स्थायी-विशेषता की पहचान की जाए जिसके विरुद्ध प्रतिपिड कारगर हो जाए। एक बार यह पता लग जाए तो फिर वैज्ञानिक इस जीन को किसी बैक्टीरिया में प्रवेश कराकर इसकी शुद्ध मात्रा प्राप्त करने की कार्यवाही करेंगे। इसी शुद्ध पदार्थ की थोड़ी-सी मात्रा को टीके के रूप में शरीर में प्रवेश कराने से ऐसी निरोधक क्षमता पैदा की जा सकती है जिससे स्वस्थ शरीर संक्रमण से प्रभावित नहीं होता । सफलता के द्वार खुल रहे हैं अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एड्स का टीका बनाने की पहली बाधा पार कर ली है। उन्होंने एड्स विषाणु के खोल का निर्माण करने वाली जीन को चेचक के विषाणु (वैक्सीनिया वायरस) पर चिपका दिया। इन्होंने इस तरह तैयार किए वैक्सीनिया वायरस को जब आठ बंदरों में प्रवेश कराया तो सात के शरीर में वे एंटीबाडीज बने जो एड्स विषाणु के खोल को तोड़ने और नष्ट करने के लिए जरूरी माने गए है हालाकि अभी तक जैज्ञानिकों ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि क्या जीन तकनीकी की मदद से कथित रूप से तैयार किया बैक्सीनिया वायरस एड्स का टीका है, परंतु इस बात की आशा जरूर जाहिर की है कि संभवतः यह विधि प्रभावी टीका बनाने में सफल होगी। देखना यह है कि एड्स विषाणु के अनेक खोलों को क्या एक ही तीर से तोड़ना संभव होगा । यह तो निश्चित है कि रूप बदलने में माहिर एड्स विषाणु की उस जीन की खोज हो गई हैं जिसकी मदद से यह रूप बदलता है। यह हैं 'एविलोप जीन'। वैज्ञानिकों ने इस जीन को तोड़कर एकप्रोटीन-म्लाइको प्रोटीन-20 को पृथक कर लिया है। इसी प्रोटीन सेइस म्लाइकों प्रोटीन-20 का नाश किया जाएगा यानी जहर से जहर बेअसर किया जाएगा।
एड्स की कुछ दवाएं || Medicine of HIV ||
अमेरिका तथा कुछ यूरोपीय देशों में लगभग आधा दर्जन प्रयोगात्मक वायरस-विरोधी दवाओं का परीक्षण किया जा रहा है, जिनमें 'एच.पी.ए.-29' प्रमुख है। यह पेरिस के पाश्चर संस्थान में ईजाद की गई। संस्थान के अनुसंधानकर्त्ताओं का दावा यह है कि इस दवा के परीक्षणसे प्राम्भिक तौर पर आशातीत नतीजे सामने आए। यह खबर सुनकर एड्स पीड़ितों की भारी भीड़ इलाज के लिए इस संस्थान की ओर कूचकर गई। मगर इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला कि एच-पी.ए.-28 दवा एड्स को मिटाने में पूरी तरह समर्थ है। जिन अन्य दवाओं का परीक्षण किया गया, वे हैं-सुशमिन, अल्फा, इंटेरफेरने, रिबाबिरिन और फोस्कारनेत। वायरस-विरोधी इनदवाओं ने एड्स पीड़ितों पर बीमारी के प्रारम्भिक चरण में अच्छा असर डाला, लेकिन अंतिम चरण में ये खतरनाक साबित हुई। क्योंकि तब तक मरीज में रोग प्रतिरोध क्षमता का बुरी तरह क्षय हो चुका होता है। 'डूबते को तिनके का सहारा काफी होता है” यह कहावत हाल ही में उस समय फिर चरितार्थ हुई, जब अमेरिका के स्वास्थ्य एवं मानवसेवा विभाग के अधिकारी रॉबर्ट विंडम ने वाशिंगटन में अखबार बालो को बताया कि 'एजीडी थाइमिडिन' (ए.जेड.टी.) नामक दवा प्रयोगिक तौर पर एड्स के इलाज में सफल पाई गई है। यह दवा एड्स के लक्षणों और तकलीफों को काफी कम कर देती है तथा जीवन को कुछ समय लंबा खींचने में सफल हुई परन्तु इतना नहीं जितना की हम अपनी देखभाल स्वयं से कर सकते हैं। उन्होंने यह स्वयं कहा है कि ये दवांऐ 'पूर्ण उपचार नहीं है। सिर्फ दवाओं की खोज मे आशा की किरण मात्र है और आगे कुछ नहीं। ए जेड टी दवा का सबसे पहले 1964 मे कैसर की दवा के रूप मे आविष्कार हुआ था परन्तु कैसर के इलाज मे यह कारगर साबित नहीं हुई। और यह दवाई वैज्ञानिक लोगों के किसी भी काम नहीं आई फिर इसमें संशोधन कर इसे एड्स के इलाज में काम लाया गया। आश्चर्य यह हुआ कि इसमें परिवर्तित दवाई मिलाकर यह एड्स में काम आ गई परन्तु एड्स एक ऐसी बीमारी है जो दवाओं से कम और व्यक्ति की अपनी खास निगरानी से अधिक ठीक होती है।
भारत में एड्स
|| AIDS in India||
भारत में एड्स स्वच्छन्दताबादी प्रवृत्ति के पोषक और उन्मुक्त यौन संबंधों के हिमायतियों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जीवन के क्षणिक आनन्द का उन्हें इतना भारी खमियाजा भुगतना पड़ेगा कि बदले में अपनी जान ही देनी पड़ेगी। इसे भारत का सौभाग्य ही कहा जाना चाहिए कि अपने अतीत के पुनीत संस्कारों और मर्यादित यौन संबंधों के कारण-जिनकी कीमत का हमें आज पश्चिम के एड्स रोगियों की दुर्दशा देखने के बाद अनुभव हो रहा है-वह इस महामारी के प्रकोप सेबचा हुआ है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् के महानिदेशक डॉ. वी. सामालिंग स्वामी के कधनानुसार और साथ ही उप स्वास्थ्यमंत्री के एक बयान के अनुसार, भारत के किसी भी शहर अथवा कस्बे में अभी एक एड्स का कोई भी ठोस मामला प्रकाश में नहीं आया है। लेकिन बचाव के तौर पर इस बात का पता लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं कि कहीं देश के किसी भाग में एड्स वायरस, तो मौजूद नहीं है। चुकि यह रोग खून चढ़ाने में संक्रमण से भी होता है, अतः पेशेवर रक्तदानियों के खून के नमूने लेकर भी अध्ययन किए जा रहे हैं। इसके अलावा भारत में एड्स के संभावित खतरे से निपटने के लिए चिकित्सा परिषद द्वारा कार्यदल का गठन किया गया है और पूना ने राष्ट्रीयवायरोलोजी संस्थान द्वारा इस सम्बन्ध में कुछ किट भी प्राप्त कर ली है। भारत में यह खतरा किस हद तक बढ़ गया है यह बताना अभी बड़ा मुश्किल है क्योकि एड्स हमारे देश में कितना अधिक पनप चुका है इसके बारे में हमें सम्पूर्ण जानकारी अभी नहीं मिल्ली है शायद हमे तो यह भी मालूम नहीं कि भारत मे एडस है भी या नहीं क्योकि अभी सिर्फ चेतावनी ही सुनते आ रहे हैं। पूर्ण तथ्य हमारे पास जहीं है।सबसे पहले जब तमिलनाडु की छः औरतों में एड्स के विषाणु मिले तो यहा सनसनी फैल गयी । लेकिन यह बात भी सत्य सिद्ध नहीं हुई क्योंकि उनमें केवल संक्रमण मिले ना कि रोग के लक्षण। अभी भ्रम ही बना हुआ है कि आगे भविष्य में उन्हें रोग हो भी सकता हैऔर नहीं भी अगर वह सावधानी पूर्वक चलीं तो जरूरी नही कि वे रोगग्रसित हों। इसके अभी कम से कम 5 साल उनकी निगरानी की जाऐगी क्योंकि एड्स के संक्रमण मिलने के पश्चात रोग होने तक बहुत लम्बी अवधि होती है। यह भी देखना होगा कि एड्स के विषाणु देश के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचे भी है अन्यथा नहीं।
सरकारी प्रयास
एवं एड्स नियंत्रण कार्यक्रम || Government
program fors AIDS control in Hindi ||
एड्स के विश्वव्यापी प्रसार, व्यापकता एवं रोग की बातकता को ध्यान में रखते हुए चिकित्सा जगत में तो हलचल होना स्वाभाविक हीथा लेकिन जनमानस का इसके लिए चितित होना इस रोग की विनाशकारी लीला के प्रति सजगता एवं चिंता को सूचित करता हैं अतःरोग से बचाव के लिए देश में एड्स के रोगियों एवं एच.आई.वी.संक्रमित व्यक्तियों का सर्वेक्षण एवं निगरानी कराना आवश्यक हो गया। इतना ही नहीं जन समुदाय को इस विषय में शिक्षित करना एवं उसे शामिल करना भी आवश्यक समझा गया। इनके अतिरिक्त रोगनिदान के लिए प्रयोगशालाओं को तैयार करने, एड्स एवं एच.आई.वी.केन्द्रों की स्थापना की आवश्यकता को भी महसूस किया गया। उपरोक्त सभी बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित व्यूह़ रचना का प्रस्ताव रखा गया:सर्वेक्षण एवं निगरानी केन्द्रों की स्थापना उच्च क्षतिभय समूहों की व्यापकता प्रत्येक देश या स्थान में भिन्न होगी जैसे अमेरिका, यूरोप एवं आस्ट्रेलिया में 70 प्रतिशत एड्स के रोगी समलैंगिक यौनाचार करने वाले समूह में पाए जाते हैं। इसी प्रकार अन्तःशिरा एवं अन्तःपेशी मार्ग से दवाओं का नियमित सेवन करनेवाले व्यक्ति, रक्त संचारण लेने वाले शिशु आदि में भी एड्स रोग का सक्रमण पाया जाता है पूरे देश में इस प्रकार के केन्द्रों की स्थापना की जाए जो राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर रचनात्मक एवं कार्यात्मक रूप से कार्य कर सकें। राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों के सहयोग से उच्च क्षतिभय समूहों एवं क्षेत्रों का पता लगाया जाए। एक ऐसी व्यवस्था की जाय जिससे क्षतिभय समूहों का नियमित सर्वेक्षण होता रहे।
यौन
रोग निदान केन्द्रों या सर्वेक्षण
इसके लिए यौन रोग निदान केन्द्रों या सर्वेक्षण केन्द्रों की स्थापना करनी होगी। यद्यपि रोग के प्रसार में मुख्य रूप से रक्त एवं वीर्य को ही विशेष माध्यम पाया गया है लेकिन रक्त व वीर्य, के अतिरिक्त आंसू, स्तन दूध, मूत्र एवं रस में एड्स के विषाणु मिले हैं। इसी प्रकार अफ्रीका में विषम यौनाचार ही एड्स रोग एव सक्रमण का मुख्य कारण है : फलस्वरूप स्त्री एवं पुरुष दोनों ही समान रूप से एड्स से पीड़ित पाए गए हैं। चिकित्सकों, परिचारिकों एवं अन्य सहायक कर्मचारियों के प्रशिक्षणकी व्यवस्था की जाए ताकि उन्हें रोगियों का पता लगाने, उनकी देखभाल करने, रोग पर नियंत्रण पाने आदि अन्य उपायों के विषय में पूर्ण जानकारी दी जा सके। एड्स रोगियों एवं एच,आई.वी. संक्रमण से ग्रसित व्यक्ति जिनका पता लग चुका है उनकी नियमित देखभाल आदि के लिए निश्चित निर्देशिका तैयार की जाए। रक्त बैंकों, रक्त उत्पादों के निर्माताओं,रक्त दाताओं, रक्त उत्पादों के आयात आदि के लिए विशेष निर्देश बनाए जाएं। रोग एवं संक्रमण नियन्त्रण, बचाव एवं प्रबन्ध उपायों के क्षेत्र में नए-नए अनुसंधान करने की योजना बनाई जाए। स्वास्थ्य शिक्षा को जन समुदाय तक पहुंचाने के लिए प्रत्येक माध्यमों सूचना, शिक्षा एवं संचार साधन आदि को उपयोग में लाया जाए,स्वास्थ्य एवं प्रयोगशाला कार्यकर्ताओं आदि के लिए सावधानी नियमावली बनाई जाए।
एड्स की High Probability वाले
व्यक्तियों को शीघ्र सर्वेक्षण करवाया जाना चाहिए :
उपरोक्त सभी बिन्दुओं को ध्यान देते हुऐ उच्च
क्षतिभय समूह में निम्न श्रेणी वाले व्यक्तियों को शीघ्र सर्वेक्षण करवाया जाना
चाहिए।
- वेश्याएं एवं यौन सम्बन्धों में लिप्त काल-गर्ल्स
- रक्तदाता
- अन्त: पेशी व अन्तःशिय मार्ग से नियमित रूप से औषधि लेनेवाले व्यक्षित
- यौन रोग निदान केन्द्रों पर आने वाले रोगी एवं उनके सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति
- हीमीफिलिक एवं वे रोगी जिनको बार-बार रक्त संचारण की आवश्यकता होती' है
- वे क्षेत्र जहां पर विदेशी यात्रियों का आना जाना बराबर बनारहता है।
- समलैंगिक संबंध रखने वाले व्यक्ति
राष्ट्रीय एड्स
नियंत्रण कार्यक्रम || National AIDS control program in Hindi ||
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम विध्यंसक एवं घातक एड्स रोग से ग्रसित व्यक्तियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार का चौकन्ना होना आवश्यक था। रोगकी रोकथाम करने तथा उस पर नियंत्रण पाने के लिए आवश्यक कदम उठाते हुए भारत सरकार ने केन्द्रीय सेक्टर स्कीम के तहत राष्ट्रीयएड्स नियंत्रण कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। रोग के विषय में जानकारी तथा अधिक जोखिम वाले लोगों पर निगरानी रखने के कार्य को गतिशील बनाया जा रहा है जिससे लोगों तक इस रोग की अधिक से अधिक जानकारी पहुच सके।
राष्ट्रीय एड्स
नियंत्रण कार्यक्रम के तीन मुख्य अंग
1. स्वास्थ्य एवं सामुदायिक शिक्षा स्वास्थ्य शिक्षा संबंधी प्रचार सामग्री तैयार
करना : कार्यक्रम के इस अंग के अन्तर्गत 35 होडिंग तैयार कर 6 राज्यों में प्रदर्शित किए गए। शिक्षा के लिए अन्य विधियों : पोस्टर एवं फोल्डर वितरित करना, सिनेमा स्लाईडें तैयार कर प्रदर्शित करना, क्रियोस्क तैयार करवाना आदि । ये विधियां स्वास्थ्य शिक्षा प्रसार
के अच्छे माध्यम है। सामूहिक एवसामुदायिक शिक्षा का प्रायोजन करना मुख्य बिन्दु
हैं। योन शिक्षा वस्त्री शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए।
2. निगरानी केन्द्र देश के कतिपय भागों में 4 रेफरल केन्द्रों में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के सहयोग से सरकार ने 48 निगरानी केन्द्रों की स्थापना की है। एड्स से सक्रमित व्यक्तियों की
पहचान करना ही इन केन्द्रों का
उद्देश्य है। इसके लिए (को देश के विभिन्न भागों में रोग प्रसार के आकार प्रकार को समझना (ख) एच,आई.वी. संक्रमण की स्थिति तथा चुनी हुई जनसंख्या में उसके वितरण का
मूल्यांकन करना एव (ग) चुने हुए
उन समूहों में एच.आई वी. सक्रमण के प्रसार में परिवर्तनों का अनुवेक्षण करना है।
3. रक्त एवं रक्त उत्पादों की निरापदता सुनिश्चित करना : कार्यक्रम के अन्तर्गत भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आई.सी. एम.आर.) ने रक्त बैंकों से सम्पर्क स्थापित करके रक्त दाताओं का परीक्षण करने के लिए मुम्बई, कलकत्ता, दिल्ली एवं मद्रास महानगरों में 28 पूर्णतः आंचलिक (जोनल) रक्त परीक्षण केद्रों की स्थापना की है । इनके अतिरिक्त एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्तियों एवं एड्स के कारगर नैदानिक एवं चिक्तिसीय उपचार हेतु 70 आयुर्विज्ञान महाविद्यालयों में सुविधाओं की व्यवस्था की गई है। इस प्रयोजन हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए गए तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से 17 प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का आयोजन का 220 चिकित्सक एवं 770 परिचारिकाओं को प्रशिक्षण दिलाया गया है।
एड्स शोध में भारतीय वेज्ञानिक || Research on AIDS in India in Hindi
||
एड्स शोध में भारतीय वेज्ञानिक एड्स के टीके की शोध में मिली सफलता का श्रेय राबर्ट गैलो के नेतृत्व में कार्यरत दस वैज्ञानिकों की टीम को जाता है। इस वैज्ञानिक दल में तीन भारतीय हैं- एम.जी.सारंगधरन, प्रेम सरीन और जकीसलाउद्दीन। वैज्ञानिक सरीन के अनुसार यह एक प्रति विषाणु या रेट्रोवायरस है जो शरीर के प्रतिरोधी तंत्र की टी. कोशिकाओं पर आक्रमण करता है। प्रेम सरीन का मत है कि एड्स से लड़ने के दो तरीके हैं। या तो लोगों को एड्स निरोधक टीके लगाकर उनकी प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाई जाए या ऐसी दवाएं बनाई जाएं जो विषाणु को मार सकें। फिलहाल वे ऐसी औषधियों पर काम कर रहे हैं जो विषाणु को प्रतिकृत बनाने अर्थात् खुद को दोहराने के रोकती है। ए.एल.2 एक ऐसी ही औषधि है जो सरीन और उनके सहयोगियों ने विकसित की है। अभी इस पर परीक्षण जारी है। यह औषधि विषाणु कोशिका की बाहरी दीवार को नष्ट कर देती है ताकि वह दूसरी कोशिकाओं पर हमला न कर सकें।वैज्ञानिक सरीन के अनुसार एड्स के उपचार का एक रास्ता यह भी हो सकता है कि एनजाइम 'रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेअ' की सक्रियता को रोक दिया जाए। यह एन्जाइम आर.एन.प्रोटीन को डी.एन.ए. में परिवर्तित करता है। प्रति विषाणु या रेट्रोवायरस को शरीर की स्वस्थ कोशिका मे घुसपैठ करने मे पहले अपने आर एन ए प्रोटीन को डीएन ए में तब्दील करना पडता है ताकि वह स्वस्थ कोशिका के डी एन ए. से घुल मिलकर स्वस्थ जीन को प्रभावित कर सके। एक अन्य भारतीय वैज्ञानिक प्रकाश चंद्र ने इस एन्जाइम को अलग करके इसकी विशेषताओं का अध्ययन किया है। उन्होंने ऐसी दवा भी विकसित की है जो इस एन्जाइम की सक्रियता को खत्म कर देती है। प्रकाशचन्द्र जर्मनी मे फ्रैंकफर्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल में मॉलिक्यूलर बायोलॉजी विभाग के अध्यक्ष हैं।
एड्स की जाच के
लिए खून का परीक्षण || How to test HIV in Hindi ||
एड्स की जाच के लिए खून का परीक्षण एलीसा तकनीक से किया जाता डै। इस तकनीक को विकसित करने का श्रेय एफ.जी.सारंगधरन को जाता है। इस तकनीक से खून मे विषाणु की एंटीवॉडी के मौजूद होने का पता चलता है। एलीसा तकनीक से रक्तदाताओं के खून की जांच की जाती है और खून द्वारा इस संक्रामक रोग को फैलाने से रोका जा सकता है। वैज्ञानिक जकी सलाउद्दीन का कहना है कि जिन रोगियों में रोग पूरी तरह नहीं फैला है, लेकिन प्राथमिक लक्षण मौजूद है उनके लिए एड्स-विरोधी टीका उपयोगी नहीं होगा। उनके लिए हमें विषाणु को खत्म करने और क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने का उपाय ढूँढ़ना होगा। के.बी.गोपालकृष्ण अमेरिका के क्लीवलैंड स्थित केयरव्यू जनरल अस्पताल में इंटरनल मेडिसन विभाग के अध्यक्ष हैं। एड्स पर शोध करते समय उन्होंने यह पाया कि एक उभयलिंगी रोगी से यह रोग उसकी पत्नी को लगा। जिससे आगे उसने उसे अपने पुरुष मित्र को दे दिया। इससे उन्होंने यह स्थापित किया कि एड्स केवल समलैंगिक सबधों के जरिए ही नहीं फैलता। बल्कि प्राकृतिक यौन संबंधों में भी फैलता है।
उभयल्रिगियों में एड्स || AIDS in homosexual person
in Hindi ||
वैज्ञनिक ए श्रीनिवासन इस रोग की महामारी के रूप में फैलने की प्रवृत्तिपर शोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि उभयल्रिगियों में से 70 प्रतिशत या तो एड्स विषाणु के संवाहक है या स्वयं इसके शिकार होचुके हैं। अमेरिका के न्यू जर्सी के जर्सी शोर मेडिकल सेंटर में वैज्ञानिक पुरुन्दु सेन कैलीफोर्निया विद्यालय के बेसिक एंड क्लीनिकल इम्युनोलॉजी विभाग के अध्यक्ष सुधीर गुप्ता और न्यूयार्क के क्वीन्स हॉस्पिटल सेंटर में फेफडों के विशेषज्ञ फारुख खान भी इस क्षेत्र में कार्यरत हैं। अमेरिका के राष्ट्रीय कैंसर संस्थान में एड्स के लिए विकसित की जाने वाली दवाइयों का परीक्षण वहां के पांच विभिन्न केंद्रों में किया जाता है। इनमें से एक है सुरैया रशीद की प्रयोगशाला जो लॉस एंजिल्स के सदर्न कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय में है। यह लॉस एंजिल्स का एकमात्र ऐसा केन्द्र है जहां एड्स विषाणु का पता लगाने के लिए एलीसा तकनीक से खून के नमूनों का परीक्षण किया जाता है।