रक्‍त माध्यम से होने वाले एच.आई.वी. संक्रमण को कैसे रोका जा सकता है ? || How to stop HIV infection by Blood transfer in Hindi ||

रक्‍त माध्यम से होने वाले संक्रमण को कई विधियों से रोका जा सकता है। रक्त संचारण करने से पूर्व रक्त का परीक्षण किया जाना चाहिए यदि दूषित पाया जाए तो संचारित न करें। इंजेक्शन देने से पूर्व प्रत्येक बार सुई व सीरिंज तथा अन्य उपकरणों को निस्संक्रमित अवश्य करें। आदतन मादक द्रव्य लेने वालों को नशे की आदत छोड़नी चाहिए।

रक्‍त माध्यम से होने वाले एच.आई.वी. संक्रमण को कैसे रोका जा सकता है ? || How to stop HIV infection by Blood transfer ||

एड्स व एच.आई.वी. संक्रमण प्रचार को रोकने के लिए शिक्षा माध्यमों का महत्व

एड्स व एच.आई.वी. संक्रमण प्रचार को रोकने के लिए सूचनाएवं शिक्षा माध्यमों का बहुत अधिक महत्व है। जब तक एड्स बचावउपचार के लिए टीका औषधि की प्राप्ति नहीं होती उस समय तक थही एक प्रबल एवं महत्वपूर्ण माध्यम है रोग से बचाव के लिए व्यक्तियों को अपने व्यवहार में परिवर्तन करना ही विश्वासपूर्ण उपाय है। एड्स की सामूहिक रोक के लिए आप भी योगदान दे सकते हैं यदि आपने तथ्यों को भलीभांति समझ लिया है और दूसरों को समझाने में भी आप सहायता कर रहे हैं, एड्स का खतरा आपके कृत्यों पर निर्भर है।

एड्स हम सभी को प्रभावित कर सकता है। जिन्हें एड्स हो गया है या जिन्हें एच.आई.वी. संक्रमण की सम्भावना है, से डरना नहीं चाहिए और न ही उनके साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार करना चाहिए । ऐसे लोग जो भौतिक व भावनात्मक परेशानियों का सामना कर रहे है, उनका मनोबल बनाए रखने के लिए आप उनकी सहायता करें। विश्व स्तर पर इस खतरे का सामूहिक सामना करना होगा। किसी देश में एड्स की समाप्ति तभी सम्भव है जब इसके लिए विश्वके सभी देश प्रयास करें।

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम विश्व के प्रत्येक देश द्वारा चलाए जा रहे हैं जिसके द्वारा बचाव के उपायों की जानकारी प्राप्त हो सकती है। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम विश्वस्वास्थ्य संगठन से भी सम्बन्धित है। अन्य औषधि इसकी विषाणु रोधी प्रभाव क्रिया के विषय में अधिक ज्ञान नहीं है लेकिन इसे एक उपयुक्त विषाणु रोधी माना गया है। यह मुख द्वारा सेबन किए जाने पर अच्छी प्रकार अवशोषित हो जाती है। यह रुधिर मस्तिष्क अवरोधक को पार कर लेती है। इसकी विशेषता यह भी है कि इसके कुप्रभाव दूसरी औषधियों की तुलना में कम है।

इन कारणों से नहीं होता 'एड्स'

छूने और गले लगने से 'एड्स' नहीं होता। तालाबों में जाने, रेस्तरांओं और ढाबों तथा अन्य ऐसे ही स्थानों में साथ बैठकर खाने से भी यह रोग नहीं होता। खाने-पीने, फोन पर बात करने से, खांसने, और छींकने से इसके विषाणु दूसरे व्यक्ति को नहीं लगते। एड्स रोगी  के पास बैठने से भी यह रोग नही होता, चुबन से इसके लगने का खतरा नही हे जब तक कि होठो मुह या जबान पर कोई घा या कट नहीं है।

एड्स कैसे पहचाना जाता है ?

अब तक विश्व के 30 देशों में 80,592 केस दर्ज किए गए हैं। तथाकथित विषाणुवाहकों' की संख्या ४0 लाख से एक करोड़ तक मानी जाती डै। आज इस रोग से ग्रस्त हुए लोगों में मृत्यु-दर 50 प्रतिशत है। अधिकांश विशेषज्ञों का कहना है कि निकट भविष्य में इसके रोगियों की संख्या' कम-से-क्रम 10 गुनी बढ़ जाएगी। एड्स निदान के कई टेस्ट सिस्टम हैं, जिनसे इस रोग का निदान किया जा सकता है। रोग का ही नहीं, विषाणु से संक्रमित होने का भी। आदमी का रक्त लेकर उसका सीरम बनाया और निदान प्रयोगशाला को भेजा जाता है। य सब इसलिए किया जा रहा है कि रक्तदान में मिले रक्त की एक बूंद भी एड्स की जांच किए बिना किसी दूसरे व्यवित को न दी जाए।

एड्स को कैसे रोका जा सकता है ? || How we can stop HIV infection in Hindi ||

एड्स के विषाणुवाहक व्यक्ति भी रोगी की ही भांति इर्द-गिर्द के लोगों के लिए तब खतरनाक हैं, यदि उनके साथ यौन-संबंध हों। बेशक इन लोगों की जांच की जानी चाहिए, क्योंकि निश्चित परिस्थितियों में वे एड्स रोग लगने का कारण बन सकते हैं, यानी मह्ममारी की शृंखला बन सकती है। स्वस्थ परिवार, यौन व्यभिचार के विरुद्ध संघर्ष, समलिंगी मैथुन के लिए कानूनी दण्ड-ये सब बातें एड्स के न फैलने की गारंटी हो सकती हैं। एड्स निस्संदेह संक्रामक रोग है, लेकिन फ्लू जैसा तीव्र संक्रामक नहीं। इसकी छूत इतनी आसानी से नहीं लगती। अर रोगी भी  के बुनियादी नियमों का पालन करे तो उससे दूसरो को विशेष डर नहीं रहता रोगी का किसी कारण खून बहे तो उसे उन जगहों को पोछ देना चाहिए, कपडे खौलते पानी से धो देने चाहिए। जरा सा भी संदेह होने पर तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए। न केवल इसके रोगियों का, बल्कि सभी विषाणुवाहकों का, इस रोग के सभी सम्भव्य स्रोतों का पता लगाया जाए। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साझे प्रयासों से जल्दी ही यह समस्या हल कर ली जाएगी, ऐसी उम्मीद है।

एड्स कैसे फैलता है ? यह विषाणु कैसे फैलता है ? रोग के लक्षण क्या हैं? वह कैसे बढता है?  

आइए इस पर एक दृष्टि डालें। इस विषाणु के फैलने के तीन रास्ते निश्चित रूप से ज्ञात हैं :

  1. पहला है यौन-संबंध, यह उन लोगों के लिए खास मायने रखता है जोस्वच्छंद यौन जीवन व्यतीत करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका औरपश्चिमी यूरोप में एड्स के शिकार हुए 10 लोगों में से नौ समलिंग कामी और बदचलन औरतें हैं तथा मादक-द्रव्यों की लतवाले भी, जो गंदी सूइयों से मादक दवाइयों के टीके लगाते हैं।
  2. लगभग 10 प्रतिशत अंश उन लोगों का है, जिन्हें अक्सर रक्त या रक्त के पदार्थ दिए जाते हैं, तथा
  3. रोग ग्रस्त माता के गर्भ में शिशुओ को हुए संक्रमण : एड्स का विषाणु बाह्य माध्यम में काफी अस्थिर होता है, खौलाने पर वह जल्दी ही नष्ट हो जाता है, 57 डिग्री सेल्सियस तक कुछ मिनट तक गरम करने पर भी उसकी रोग जनक क्षमता जाती रहती है। एड्स के प्रकट होने के कई रूप और कई अवस्थाएं हैं। मनुष्य के शरीर में पहुंचा विषाणु वहां काफी लंबे समय तक-कई महीनों और यहां तक कि वर्षो तक भी-इंकुबेशन अवधि में रहता है। यह अवधि कितनी है, इसका फिलहाल सही-सही उत्तर नहीं दिया जा सकता। इस अवधि में ही रोग-प्रतिरोध क्षमता जबाब दे जाती है।

लेकिन रोग-प्रतिरोध-तंत्र ? यह किससे बना है?  इसका प्रयोजन क्‍या है ?

इसका उत्तर देने में अक्सर कठिनाइयां पैदा होती हैं। रोग-प्रतिरोध-तंत्र के प्रमुख अंग हैं-धाइमस ग्रंथि, अस्थि मज्जा और तिल्‍ली, बी.और टी. लिम्फोसाइट यानी लसिका कौशिकाए-विशेष श्वेत रक्त कोशिकाएतथा अन्ततः अनेक लसिका ग्रथियां जो सारे शरीर में फैली होती है। ये अंग शरीर में घुसनेवालें किसी भी रोगाणु, विषाणु, कैसर कोशिका से, किसी भी विजातीय चीज से शरीर की रक्षा करते हैं। रोग-प्रतिरोध-तंत्र के विकार कोई नई बात नहीं है, पहले भी कई गम्भीर रोगों में, भारी चोट लगने पर ऑपरेशनों के वाद या लंबे उपवास के बाद ऐसे मामले देखे गए हैं। पहले ज्ञात विकारों से नए रूप को अलग रखने के लिए 'उपार्जित' प्रतिरोध अभाव शब्द बताया गया है। यानी ऐसा अभाव जो शरीर में विषाणु घुसने के कारण पैदा हुआ। इसका अर्थ यह है कि एड्स विषाणु जन्य संक्रामक रोग है। इस रोग का निदान पहले-पहल 98 में हुआ, जब सॉनफ्रांसिस्को में समलिंगकामियों के ग्रुप में बहुत-से लोग एक जैसी गंभीर बीमारी से मरने लगे। जब इस रोगका अध्ययन किया जाने लगा तो पता चला कि एड्स होने पर रोग-प्रतिरोध-तन्त्र में गंभीर विकार पैदा हो जाता है। एड्स के मामले दर्ज किए जाने लगे और उनकी संख्या दिन दूनी, रात चौगुनी बढ़ती पाई गई। 1998 में उस विषाणु का पता लगा लिया गया जिसके कारण यह रोग होता है। यह खोज फ्रांस के डा. ल. मोंतान्ये ने की! प्रायः उन्हीं दिनों अमेरिकी वैज्ञानिकों आर.गैलो और जे. लेवी मे भी इस विषाणु का पता लगाया। मालूम हुआ कि रोग का प्रच्छन्‍न काल कुछ महीनों से कुछ साल तक जारी रहता है, इतना ही नहीं आदमी में रोग के लक्षण नहीं भी प्रकट हो सकते, वह केवल विषाणु का वाहक बना रहता है, जिसका पता रोगी के रक्त में इस विषाणु के प्रति पिण्डों के होने से चलता है। अब हम बहुत-सी बातें जान गए है, यह कि इस विषाणु का प्रजनन कैसे होता है। कैसे यह लसिका कोशिकाओं को क्षति पहुंचाता है और उन्हें नष्ट करता है। इस सबका विस्तार से अध्ययन कर लिया गया है, हालांकि अभी भी बहुत कुछ अज्ञात है।

एड्स की कारगर दवाए बनाने के प्रयास || Efforts for medicine of AIDS in Hindi ||

कारगर दवाए बनाने के प्रयास 1984 में अमेरिकी वैज्ञानिक रॉबर्ट गैलों तथा माऊन्टेनगर (फ्रांसीसी वैज्ञानिक) ने स्वतंत्र रूप से एड्स-वायरस को अलग कर लिया। उन्होंने पाया कि यह वायरस आर.एन.ए. नामक प्रोटीन कण की इकहरी कूंडली से बना हुआ है तथा प्रोटीन-झिल्ली से ढ़का रहता है। इस वायरस में एंजाइम रिवर्स ट्रांसक्रिप्सेजः (एक प्रकार कारसायन) भी पाया जाता है। इस प्रकार एड्स के वायरस जब शरीर की प्रतिरोध क्षमता (इम्यूनिसस्टम) वाली 'टी' कोशिकाओं पर धावा बोलकर उस कोशिका के अंदर प्रवेश करके यह वायरस एंजाइम की सहायता से अपने आर.एन.ए. को डी.एन.ए. में बदल लेता है। यह परिवर्तित डी.एन.ए. नामक प्रोटीन कण कोशिकाओं की रासायनिक क्रियाओं मे समुचित स्थान पाकर प्रोटीन बनाने को क्रिया का निर्देशन करने लगता हैं तथा अपने जैसे अनेक कण बनकर कोशिकाओं को प्रभावहीन तथा अंत में मृतप्रायः करके ही छोड़ता है। तब तक अनेक वायरस कण बन चुके होते हैं, जो कोशिकाओं की मृत्यु के बाद बाहर आ जाते हैं तथा अन्य कोशिकाओं पर धावा बोलने की प्रक्रिया में लग जाते हैं। इस प्रकार प्रभावित मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता दिन-ब-दिन घटती जाती है और संक्रामक कीटाणुओं के खिलाफ लड़ने में असमर्थ हो जाती है और व्यक्ति रोग ग्रसित हो जाता है। अमेरिकी दवा कंपनी बरोबेलकम के वैज्ञानिकों ने देखा कि ए.जेड.टी. मानव शरीर की कोशिकाओं मे प्रवेश करके तथा एंजाइमों की सहायता से एक ऐसे 'फाल्स-सुगर' में बदल जाती है जो एड्स वायरस में 'सुगर की भ्रांति' में प्रयोग की जाती है तथा इसके डी.एन.ए. में समाविष्ट हो जाती है। जैसे ही यह समाविष्ट होती है, वायरस के बढने पर रोग लग जाता है। ए.जेड.टी. के अतिरिक्त 'डाइडो ऑक्सीसाइटीडीन! तथा 'फोस्कारनेट' नामक दो अन्य दवाइयां भी एड्स के उपचार में प्रायोगिक तौर पर आंशिक रूप से सफल रही हैं। इन दोनों दवाओं की खास बात यह है कि इनकी खुराक ए.जेड.टी. की तुलना में काफी कम है। एड्स को प्रभावशाली ढंग से रोकने के लिए इसका टीका खोजने पर भी काफी प्रयोग किए जा रहे हैं तथा आशा है कि वैज्ञानिक एक-न-एक दिन इसमे सफलता अवश्य प्राप्त कर लेंगे। अमेरिका के राष्ट्रीय कैंसर संस्थान में ट्यूमर सैल बॉयलोजी विभाग के वैज्ञानिक डॉ. रॉबर्ट गैलो ने ल्यूकेमिया फैलाने वाले वायरस (एच.टी.एल.वी-) की खोज की थीं। यह 1980 की बात है जब तक एड्स ने आक्रमण नहीं किया था। 1982 में एड्स की बढ़ती बीमारी के समय डॉ. गैलो ने कह्य कि यही वायरस एड्स के लिए जिम्मेदार है।उन्होंने साइंस में अपनी इस खोज को प्रकाशित भी करा दिया। लेकिन उसी महीने 'साइंस में हीं फ्रांस के पाश्चर इंस्टीट्यूट के शोधकर्त्ताओं को एक रिपोर्ट ने बतलाया कि एड्स के लिए एल..बी. नामक एक विषाणु जिम्मेदार है। (जो डॉ. गैलो की खोज से भिन्‍न था) फ्रासीसी वैज्ञानिकों ने एड्स वायरस की खोज की, उस पर ध्यान नहीं दिया। महीनों प्रयोगशालाओ में जुटे रहने के बाद कैंसर संस्थान की शोध टीम ने एड्स के नए जीवाणु की खोज की, जिसे एच.टी.एल.वी-3 नाम दिया गया। परतु डॉ. गैलो अभी संतुष्ट नहीं हुए थे। उन्होंने अपने एक सहयोगी डॉ. मिक्योलास पोपोविच के साथ मिलकर उक्त वायरस को बड़ी मात्रा में संश्लेषित करने की विधि भी खोज निकाली। पिछले वर्ष अमेरिका के स्वास्थ्य और मानव सेवा विभाग के मारग्रेट हैक्लर ने अचानक एक पत्रकार सम्मेलन बुलाकर खतरनाक रोग पर विज्ञान की विजय' घोषित करने का श्रेय ले लिया। फ्रांस और अमेरिका के शोधकर्त्ताओं में यह होड़ लगी हुई है कि पहले कौन एड्स का सही और कारगर इलाज ढूंढ निकालता है। इस प्रतिद्वंद्धिति का एक अच्छा पहलू यह जरूरी है कि आगे निकलने की कोशिश में अमेरिका और फ्रांस के वैज्ञानिक एड्स के उपचार के गहरे अध्ययन में जुटे हुए हैं।

प्रत्यारोपण द्वारा प्रतिरोधी तंत्र को फिर से प्राकृतिक अवस्था में लाने की कोशिशें :

प्रत्यारोपण द्वारा इन रोगियोंके प्रतिरोधी तंत्र को फिर से प्राकृतिक अवस्था में लाने की कोशिशें फिलहाल असफल हुई हैं। हां, बरसों पहले अफ्रीका में अनिद्रा के इलाज के लिए इस्तेमान की जानेवाली औषधि सूरामिन जरूरएड्स पीड़ितों के लिए लाभदायक हुई है, हालांकि पहले इसके गंभीर कृप्रभाव का दूर करना जरूरी है विकिरण थेरेपी से एडस के सेगियो के जीवन को लबा खीचने मे मदद जरूर मिली है।

तावीज और मंत्र द्वारा एड्स का इलाज

इस बीमारी ने अमेरिका के तथाकधित उन्मुक्त समाज को भी प्रभावित कर दिया है कि तावीज और मंत्र भी एड्स के इलाज के लिए प्रयोग किए जा रहे हैं। पूर्वी मान्यताओं पर भरोसा कर कुछ लोग सोचते हैं कि शायद उन्हें एड्स से आराम या छुटकारा मिल सके। वास्तविकता यह है कि एड्स पर नियंत्रण करने की संभावनाएं अभी काफी फासले पर हैं। वैज्ञानिकों की चिंता की वजह इसके विषाणु का फ्लू के वायरस की तरह मौसम-दर-मौसम बदलना है। एड्स का टीका ईजाद करने के लिए कार्यरत वैज्ञानिक इस नई जानकारी से हताश-से हो गए हैं। दूसरी गंभीर चिंता यह है कि एड्स की शुरुआत अवस्था में आदमी स्वस्थ महसूस करता है, लेकिन तथ्य यह है कि ये लोग खुद तो गंभीर अवस्था से गुजरते ही हैं, अनजाने में इस वीमारी को फैलाने में मददगार भी होते हैं। अगर एड्स से बचाव के लिए टीका खोज भी लिया गया तो शायद दुनिया के हर आदमी को यह टीका लगाना होगा। 

एड्स और महिलाएं || AIDS in women ||

रोग व्यापकता के अन्तर्गत यह बताया जा चुका है कि एड्स धीरे-धीरे अब महिलाओं को प्रभावित करती जा रही है। उपलब्ध आकड़ों के अनुसार विश्व मे लगभग 80 लाख व्यक्ति एच.आई.वी.संक्रमण से पीड़ित हैं इनमें से 30 लाख महिलाएं हैं तथा 2 लाख व्यक्ति एड्स सकारात्मक हैं। विकसित देशों में विशेष रूप से अमेरिका एवं पश्चिमी यूरोप में 20-40 वर्ष आयु वर्ग में मरने वाली महिलाओं की मृत्यु का मुख्य कारण एड्स है। लगभग यही स्थिति अफ्रीका की है।कारण सक्रमित पुरुष के वीर्य तथा महिला के यौनी स्राव मे एच.आई.वी. विद्यमान होते हैं। अतः विषम लैंगिक (पुरुष एवं स्त्री के मध्य)यौनाचार के समय संक्रमित पुरुष के वीर्य स्खलन से वह स्त्री संक्रमित हो सकती है। पत्नियां जिनके पति एच-आई.वी. सकारात्मक हों उनमें संक्रमित होने की सम्भवना 100 प्रतिशत रहती है। शल्य चिकित्सा के अतिरिक्त महिलाओं को प्रसव तथा अन्य अवस्थाओं में भी रक्त व रक्त उत्पादों के सचारण की आवश्यकता होती हैं। ऐसी अवस्थाओं में यदि महिलाओं को संक्रमित रक्त या रक्त उत्पादका संचारण मिलता है तो उनमें एच.आई.वी. संक्रमण की संभावनाएंबढ़ती हैं।

महिलाओं में सुई द्वारा मादक द्रव्यों में सेवन करने की आदत

बर्तमान मे महिलाओं में सुई द्वारा मादक द्रव्यों में सेवन करने की आदत बढ़ती जा रही है, फलस्वरूपवहां हालात बदलते जा रहे है, अब महिलाएं एच.आई.वी. संक्रमण से अधिक ग्रसित हो रही हैं। गर्भावस्‍था तथा एड्स एच.आई.वी. संक्रमित महिला सामान्य जीवन जी सकती है तथा यह तथ्य भी यही है कि ऐसी महिला गर्भ धारण कर सकती है क्योंकि एच.आई.वी. संक्रमण से बांझपन नहीं होता । लेकिन उचित यही होगा कि गर्भ धारण न करें क्‍योंकि-उसके जीवन को नुकसान हो सकता है।  शिशु जन्म के तुरंत बाद वह उसे संक्रमित कर सकती है तथा इन कारणों से बच्चा काफी रोगों से ग्रस्त हो सकता है। फलतः अधिकाश सक्रमित बच्चे जीवित नहीं रह सकते।

एड्स और शिशु को स्तनपान || Breast feeding in AIDS in Hindi ||

स्तनपान करते शिशु को संक्रमण हो सकता हैं इसके होते हुए भी उसे चाहिए कि वह अपने स्तनपान कराना जारी रखे। क्‍योंकि मां के दूध में पौष्टिक तत्व होते हैं। दम्पति में से एक को या दोनों को एच.आई.वी. संक्रमण हो या एड्स सकारात्मक हो तो ऐसी अवस्था में पत्नि गर्भ धारण कर सकती है या नहीं, इसके लिए हमें विचार करना होगा। ऐसी स्थिति में संभोग के समय अच्छी किस्म का निरोध उपयोग में लाना चाहिए तथा गर्भधारण कृत्रिम विधि द्वारा अपने पति के वीर्य से ही करे ।पत्नि एड्स सकारात्मक हो परन्तु पति संक्रमित न हो : ऐसी स्थिति मे संभोग के समय अच्छा किस्म के निरोध का उपयोग करे। पत्लि को चाहिए कि गर्भ धारण की इच्छा बिल्कुल न करें। प्रत्ति एच.आई.वी. से संक्रमित न हो तथा पति विषाणु से सक्रमित हो लेकिन एड्स सकारात्मक न हो : ऐसी अवस्था में संभोग के समय अच्छी किस्म के निरोध का उपयोग करें। दम्पति यदि बच्चे का इच्छुक है तो उसे चाहिए कि आपसी सहमति से असंक्रमित दाता के वीर्य द्वारा पत्नि कृत्रिम गर्भाधान विधि से गर्भ धारण कर सकती है।

पत्नि व पति दोनों एच.आई.वी. संक्रमित हो लेकिन एड्स लक्षणसे युक्त न हो या पत्नि विषाणु से सक्रमित है तथा पति एड्ससकारात्मक है - दोनों ही अवस्था में वे संभोग कर सकते है तथा पत्नि गर्भधारण कर सकती है। 

एच.आई.वी. संक्रमण से बचाव व उपाय ||Prevention from HIV infection in Hindi ||

विषाणु संक्रमण से विभिन्‍न बचाव उपायों का कुछ विवरण दिये जा रहे हैं

  1. मादक औषधियां लेने की आदत न डालें तथा सम्बन्ध न बनाएं।
  2. संभोग के लिए अपने यौन साथी के बारे में पूर्ण रूप से जानना आवश्यक है।
  3. बहुयौन सम्बन्ध न वैवाहिक जीवन साथी के साथ ही सामाजिक सीमा में रहकर सम्भोग करें।
  4. जहां तक हो सके विश्वास वाले रक्तदान दाता के रक्त का ही उपयोग करें। पेशेवर रक्त दान दाताओं का रक्त उपयोग में न लाएं। अधिकृत रक्त बैंक से जहा परीक्षण के बाद ही रक्त एकत्र किया जाता है, से रक्त लेना उचित होगा।
  5. किसी एक में भी संक्रमण की सम्भावना होने पर सम्भोग के समय अच्छी किस्म के निरोध का उपयोग करे।
  6. यदि इन्जेक्शन विधि से औषधि लेने का अवसर पड़े तो निस्‍संक्रमित सुई व सीरिज का ही उपयोग करें। अतः प्रत्येक बार सुई व सीरिंज निस्संक्रमित की जानी चाहिए।
  7. स्वच्छता के सामान्य नियमों का पालन करें।

एड्स एवं पर्यावरण ||Effect of environment in spread of AIDS in Hindi ||

एड्स के प्रसार में पर्यावरण तत्व एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। यहा पर्यावरण से तात्पर्य मानवी पर्यावरण से है अर्थात हम लोग आपस में एक दूसरे से किस प्रकार को पारस्परिक क्रिया करते है जिसका प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर पड़ सकता है। यही वह पर्यावरण है जो सुनिश्चित करेगा कि एड्स कारक विषाणु एच.आई.वी. आगे जीवित रहेगा या नहीं । एड्स कारक विषाणु एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक संभोगिक यौनाचार, रक्त संक्रामण एवं संक्रमित मां से भ्रूण एवं शिशु को पहुंचते हैं। लेकिन मानव जीवन में तीनों ही क्रियाएं आवश्यक हैं। इन क्रियाओं को समाप्त नहीं किया जा सकता, इन्हें निरन्तर बनाए रखना आवश्यक हैं। अतः रोग से बचने के लिए इन क्रियाओं को सुरक्षित रखने के उपायों का पता लगाना आवश्यक है जिससे व्यक्ति एक सुरक्षित जीवनयापन कर सके। इन क्रियाओं को उस समय तक सुरक्षित बनाना संभव नहीं हो सकता जब तक इस विषाणु का अस्तित्व बना रहेगा।

संभोग के समय निरोध का उपयोग || Use of Condom during sex for prevention of AIDS in Hindi ||

संभोगिक यौनाचार संभोग के समय निरोध का उपयोग करने से संक्रमण से बचा जासकता है। हम यौनाचार क्रिया को निरोध के उपयोग से या यौन आनंद प्राप्ति के लिए अन्य विधि अपना कर सुरक्षित बना सकते है। निरोध का उपयोग करने से संभोग क्रिया के अंतिम क्षणों में वीर्य स्खलन योनी या गुदा मे नही होगा संक्रमण किसी भी साथी को प्रभावित नहीं करेगा तथा संक्रमण प्रसार को सीमित करने में सहायता मिलेगी ! यौन संबंधी बीमारी एवं एड्स उन व्यक्तियों मे अधिक होती है जो वहु लैंगिक संबंध रखते है। इसके लिए सुझाव यही होगा कि एक ही यौन साथी से संबंध रखे जाए, जो व्यक्ति अपने को नियंत्रित नहीं रख सकते तथा वेश्यावृति रखते हो या समलैंगिक यौन संबंध रखते हों, उनके अनेक यौन साथी हों, ऐसे व्यक्ति को संभोग के समय अच्छी किस्म के निरोध का उपयोग पूर्णरूप से सुरक्षा प्रदान नहीं करता ।

रक्त संचारण (रक्ताधान)

रक्त संचारण क्रिया को भी निस्संक्रमित उपकरणों का उपयोग एवं एड्स विषाणु मुक्त रक्त को उपयोग मे लाकर सुरक्षित बना सकते है। रक्त संचरण के लिए विषाणु मुक्त रक्त प्राप्त करना एक कठिन कार्य है। इसके लिए प्रत्येक रक्तदाता के रक्‍त का परीक्षण करना होगा जिससे कि विषाणुमुक्त रक्त वाले दाताओं का चयन किया जा सके। इस कार्य के लिए बहुत ही दक्ष एवं कुशल कर्मचारियों को तैयार करना होगा जिससे सही परीक्षण किया जा सके। साथ ही बड़ी संख्या में निस्संक्रमित उपकरणों को भी तैयार रखना होगा जिससे समय पर दाताओं से सुरक्षित रक्त लिया जा सके। इस प्रकार हम देखते हैं कि यह विधि कठिन एवं मंहगी है। इतना ही नहीं समय पर विषाणु मुक्त रक्त की निरन्तर उपलब्धि बनाए रखना भी कठिन होगा। सूई से औषधि लेने वाले व्यसनी व्यक्ति भी इस रोग के शिकार होते हैं। सूई जिससे वे औषधियां ले रहे हैं संक्रमित हो सकती है। प्रायः ऐसा होता भी है। व्यसन रूप से औषधि लेने वाले व्यक्ति कईबार सूई व सीरिंज को निस्संक्रमित नहीं कर पाते। फलस्वरूप रोग के विषाणु को शरीर में प्रवेश करवा लेते है लगभग सभी देशों में पेशेवर रक्‍तदाता ही रक्त देते हैं जो सभी प्रकार के संक्रमण के शिकार हो सकते हैं क्योंकि जब उनसे रक्त एकत्र किया जाता है तो उपयोग में लाई जाने वाली सूई व अन्य उपकरण हमेशा निस्संक्रमित नहीं होते। ऐसी परिस्थितियों में रक्तदाता भी संक्रमण के शिकार हो जाते हैं तथा उनके शरीर से लिया हुआ रक्त भी संक्रमित हो सकता हैं अतः यह ध्यान रखना होगा कि शल्यचिकित्सा में या किसी भी स्थिति में रक्त संक्रामण की कम से कम आवश्यकता हो। खांसने या छींकने से, मच्छर द्वारा, श्वॉस द्वारा ,चुम्बन लेने से, खाने में उपयोग में आने वाले बरतनों से, आलिंगन से, दूरभाष यंत्र आदि के माध्यम से एड्स बीमारी का संक्रमण नहीं फैलता। प्रारंभ में ये धारणा बनी थी कि इन माध्यमों से एड्स बीमारी का प्रसार होता है, यह केवल भ्रम था। हमारी यह धारणा रही है कि प्रायः गरीबी एवं अविकसित वातावरण ही बीमारी के स्रोत हैं। इस बिन्दु को ध्यान में रखते हुए वेश्यावृति रखने वालों को निरोध काम में लाने की सलाह दी ।





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