गर्भावस्‍था में आने वाली समस्याएँ और उनका निदान

 

गर्भावस्‍था तथा शिशुपालन

गर्भावस्‍था तथा शिशुपालन पर ये लेख एक अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण विषय पर आधारित। हमारा समाज एक पुरुष-प्रधान समाज है। अनपढ़ता तथा अज्ञानता का अंधकार सारे समाज में फैला हुआ है। स्त्री तथा बच्चों पर कम ध्यान दिया जाता है। गर्भावस्‍था तथा शिशुपालन को एक सामान्य प्रक्रिया माना जाता है। कई गलत धारणाएं भी प्रचलित हैं। इस विषय को पढ़ना, समझना तथा उस पर अमल करना आसान नहीं। इस लेख में इस विषय को इतना सरल तथा रुचिकर बना दिया गया है कि एक साधारण व्यक्ति भी इसे सहज ही समझकर इस पर अनुसरण कर सकता है। गर्भावस्‍था के दौरान आने वाली हर छोटी-बड़ी घटना का बखूबी वर्णन किया गया है। शिशुपालन में मां के दूध की भूमिका, उसके खाने-पीने, रख-रखाव तथा सेहत के हर पहलू को पूरे ध्यान से छुआ है। जो सबसे बढ़िया बात हमें इस रचना में लगी है वह है बच्चे के चरित्र-निर्माण तथा सामाजिक विकास की ओर ध्यान। आज तक किसी भी लेख में शायद ही चरित्र-विकास की ओर इंतना ध्यान दिया गया हो। आज हमारे समाज को, हमारे देश को और यहां तक कि सारे संसार को एक चरित्रवान, सदबुद्धि तथा निष्ठावान नई पीढ़ी की सख्त जरूरत है ताकि मानव जाति-विनाश से बच सके। हमें पूर्ण विश्वांस है कि यह पुस्तक इस दिशा में एक मील पत्थर साबित होगी। इस पर आचरण करके हम सृष्टि रचिता स्त्री जाति तथा अपने भविष्य, अपने बच्चों का सही ढंग से लालन-पालन करके मानव जाति पर एक उपकार कर सकते हैं।

गर्भावस्‍था में आने वाली समस्याएँ और उनका निदान


नारी-शरीर का प्रमुख धर्म-गर्भ धारण || Importance of pregnancy in Hindi ||

नारी-शरीर की यह विशेषता है कि वह अपने शरीर में ही एक अन्य शरीर का पालन-पोषण कर सकती है। नारी अपने ही रक्त से पूरी खुराक देकर, गर्भस्थ बच्चे के शरीर का निर्माण कर, इसका निरंतर विकास करती हैं तथा इसे जन्म देती है। गर्भ धारण करना उसके लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय होता है। प्रसव एक प्राकृतिक क्रिया है, रोग नहीं। इस सारे क्रियाकर्म को शारीरिक विकार नहीं कहते। इस सारी क्रिया में होने वाली पीड़ा को भी वह सहर्ष सहन कर लेती है। वह चाहती है और जानती है कि गर्भ धारण कर, बच्चे को जन्म देना उसका प्रमुख धर्म है। यह नारी ही तो है जिसके कारण यह संसार चल रहा है। अतः उसे पूर्ण सहयोग देकर पुरुष वर्ग भी अपने धर्म का पालन करे, नारी का शरीर संतान की उत्पत्ति के निमित्त ही बना है और सृष्टि को चलाए रखने के लिए, इसमें कोई संदेह नहीं ।

गर्भावस्था में आहार || Diet in Pregnancy in Hindi||

स्त्री के लिए जीवन में माता बनना अत्यंत सुखकारी क्षण है। इस सुख के लिए ही वह दुःख को, पीड़ा को सहर्ष सहन करती है। यदि गर्भवती नारी का शरीर कमजोर हो, सक्षम न हो तभी उसे बच्चे के गर्भस्थ होने पर या फिर प्रसव के समय कष्ट होगा, बीमारी होगी, रोग लगेगा,  परेशानी होगी जो असहनीय हो जाएगी। शिशु के निर्माणार्थ जब गर्भ धारण हो चुका है तो शिशु का निर्माण तो होना ही है। इसके शरीर में विकास भी होना है। इसके लिए उसे माता से आहार पाना है। यह आहार उसे सीधे नहीं, बल्कि मां के रक्‍त से प्राप्त करना है। इसलिए मां को चाहिए कि उतना अधिक तथा पौष्टिक आहार ले।

गर्भवती नारी को संतुलित, पौष्टिक भोजन तो मिले ही, साथ मे वातावरण बढ़िया हो, पति तथा अन्य सभी सदस्य उसे प्यार से रखें। यदि इन छोटी मगर जरूरी बातों की ओर ठीक से ध्यान दिया जाये तो तो प्रसव ठीक होगा, शिशु सुदर व स्वस्थ होगा ।

गर्भावस्था में परहेज ||Precaution during pregnancy in Hindi ||

जब युवत्ती गर्भ धारण कर ले तो उसे अपने सारे कार्य साधारण रूप से करते रहना चाहिए। इसके लिए कोई खास परहेज नहीं करना होता। कोई बडी एहतियात नहीं करनी होती | घर के कार्य या अन्य भी जैसे पहले करती थी, अब भी करती रहेगी। हां, उसे धीरे-धीरे भारी कामों से, अधिक परिश्रम वाले कार्यों से हाथ खींच लेना चाहिए | योगासन, व्यायाम, खेलकूद करती तो रहे, मगर अपने डॉक्टर की सलाह से, ताकि उसका गर्भपात न हो पाए। बस यही परहेज है।

गर्भावस्था में व्यवहार || Behaviour during pregnancy in Hindi||

विकारों से दूर रहे घर के सभी सदस्य, सास, ननद, देवरानी, जिठानी, पति-जों भी साथ रह रहे हों, उसके साथ सद्व्यवहार करें। उसका स्वभाव साधारण बना रहने दे। चिडचिड़ापन न आने दें बल्कि उसे खूब प्रसन्न रखें। हंसता-खेलता माहौल दे। गाली-गल्लौज न हो। वह चिंतामुक्त रहे। कोई ईष्या न करे। मन में किसी के प्रति जलन पैदा न करे। ईर्ष्या-द्वेष का सीधा प्रभाव बच्चे की प्रकृति पर भी पड़ेगा। आलस्य करके लेटे रहना, कामों में हाथ न बंटाना भी बुरी बात है। इससे शरीर का जरूरी विकास नहीं होगा तथा प्रसव के समय होने वाली स्वाभाविक पीड़ा सहन नहीं हो सकेगी। अत्तः गर्भवती को सुखद, सुंदर, हंसता-खेलता माहौल दे ताकि वह हर प्रकार के विकारों से दूर रहे।

गर्भावस्था में बच्चे का शारीरिक तथा मानसिक विकास || Mental and Physical development of child during Pregnancy in Hindi ||

विकास जैसा कि पहले कहा जा चुका है, गर्भवती अपने भोजन की ओर विशेष ध्यान देती रहे ताकि पेट में पल रहे बच्चे का शारीरिक तथा मानसिक विकास ठीक प्रकार से हो। शरीर-निर्माण तथा विकास में कोई भी, किसी भी प्रकार की त्रुटि न आ सके | इसके लिए पति तथा स्वयं गर्भवती युवती, दोनों की भूमिका विशेष होती है। इसमें ज़रा भी ठील या लापरवाही न करे, अन्यथा बच्चा अपंग हो सकता है। मन्दबुद्धि हो सकता है। इसकी सजा बच्चे को तो जीवन-भर झेलनी ही होगी, माता-पिता, दोनों को भी सहन करनी पड़ेगी। अतः केवल नौ महीनों की सावधानी, ठीक देख-रेख से जीवन-भर का सुख पाया जा सकता है।

नारी के लिए एक दिन की खुराक की मात्रा || Diet of 1 day for a pregnant women in Hindi ||

एक दिन की खुराक गर्भवती स्त्री को उसके भोजन में प्रोटीन, कार्बोज, वसा, खनिज लवण, विटामिन प्रचुर मात्रा में प्राप्त होते रहने चाहिए। अब यहां हम एक ऐसी नारी के लिए एक दिन की साधारण तौर पर खुराक की मात्रा का जिक्र कर लेते है। गर्भवती नारी के अपने शरीर, वजन, उसकी प्रकृति, उसके मोटापे और दुबलेपन तथा शारीरिक आवश्यक श्रम को ध्यान में रखकर इस खुराक को घटाया-बढ़ाया जा सकता है।

  1. 9 गेहूं की रोटी,
  2. चावल कुल 35 औंस, बदल-बदलकर,
  3. हरी ताजा सब्जियां, साग आदि आठ से 12 औंस त्तक,
  4. घी, तेल, चिकनाई केवल 5 औंस,
  5. दूध 20 से 55 औंस तक (दूध के पतला, गाढ़ा उपलब्धि का ध्यान रखते हुए),
  6. ताजा और मीठे फल 5 से 10 औंस तक,
  7. शर्करा, गुड़, चीनी आदि 3 से 5 औंस तक।

दही, मद्ठा, सलाद आवयकतानुसार। यह कम या ज्यादा, आवश्यकतानुसार तथा मौसम के अनुसार भी किया जा सकता है। यह तो सबके लिए है। भले ही गर्भवती नारी शाकाहारी हो या मांसाहारी । हां, मांसाहारी सप्ताह में तीन बार एक-एक अंडा, छोटी कटोरी मास,चिकन ले सकती है। इसके स्थान पर शाकाहारी थोड़े-थोड़े सूखे फल जैसे ३-5 बादाम, 2-3 काजू, 5-7 किशमिश के दाने आदि कभी-कभार ले सकती है। मौसम गर्मी का है या सर्दी का, इस बात्त पर भी निर्भर करता है।

कच्ची सब्जियां सलाद :

ऊंपर सलाद की बात कही गई है। शाकाहारी हों चाहे मांसाहारी, सलाद तो शाकाहारी ही रहेगा। इसके अतिरिक्त पालक, सरसों का साग, मेथी हरी (जैसे संभव हो), शलगम, मूली, गाजर, टमाटर, मटर फलियां, शकरकंदी, हरा प्याज, कच्ची अदरक ऋतु के अनुसार, इच्छानुसार, किसी-न-किसी प्रकार से अवश्य लेती रहें। ताजा फल-ऋतु के अनुसार खीर, खरबूजा, ककड़ी, अमरूद, आम, मौसमी, सतरा, तरबुज, अंगूर, चीकू आदि भी खाती रहें। जो भी फल, सब्जी कच्ची यदि खाई जा सके तो बहुत अच्छा रहेगा। आँच पर चढ़ाने की समस्या नहीं रहेगी, न ही कोई पोषक तत्त्व उड़ सकेंगे। पोषक तत्त्व ही शरीर की असली जरूरत है, खुराक है। इसे जितना बचाया जाए, जरूर बचाएं। कोई सब्जी कच्ची न खा सकें तो भी इसे कम-से-कम देर के लिए पकाना चाहिए। कब्ज करने वाले पदार्थों से दूर ही रहें तो अच्छा रहेगा यदि ऐसा कोई पदार्थ खाना भी पडे तो पानी खूब पीना चाहिए, फर्लों के रस भी पीना चाहिए पानी की उपयोगिता के बारे मे इसी शृंखला मे अलग से कुछ पक्तिया दी गई है ।

गर्भ धारण कर लेने के बाद किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है ? || Things to be taken care during pregnancy in hindi ||

रक्‍त की कमी न होने दें गर्भ धारण कर लेने के बाद कई बातों का ध्यान रखना जरूरी है। उनमे से एक यह भी है कि शरीर में रक्त की कमी ने होने पाए। यदि ध्यान न देतो यह कमी हो ही जाती है। गर्भ में प रहे शिशु को भी तो रक्‍त से ही पूरा आहार मिलता है जो मां के लिए रक्त की कमी कर सकता है। मां जो भोजन करती है, उससे भी कुछ पोषक तत्त्व, किसी-न-किसी प्रकार से बच्चा लेता रहता है, खींच लेता है। ऐसा होने से गर्भवती नारी के शरीर में विटामिन, लौह तत्त्व, खनिज लवण या अन्य पोषक तत्व कम पड़ सकते है। इससे उसके अपने शरीर में क्षीणता आ जाती है। लौह तत्व ही तो है जिससे रक्त का निर्माण होता है। अतः इन पोषक तत्त्वों में क्रिसी भी प्रकार से कमी न आने दें। इनमें कमी होने का सीधा मतलब है रक्त में कमी हो जाना। इसलिये सावधान रहें।

लौह तत्त्व की संभाल || Rich iron food during pregnancy in Hindi||

यदि लौह तत्त्व से रक्त बनता है तो इसी की संभाल कर लें। इसको देनेवाले पदार्थ खूब खाते रहें तो रक्त बनता रहेगा। गर्भवती युवती को रक्‍त की कमी नहीं होगी। इसके लिए यदि' हम उसे प्याज, खीरा, पालक, पपीता, टमाटर, ककड़ी, संतरा जैसे फल-सब्जियां अधिक मात्रा में खाने को दें तो लौह तत्त्व प्राप्त कर लेगी। जो नारियां मांसाहारी हैं उन्हें अंडा, मांस में जिगर विशेष रूप से खाने को दें तो ठीक रहेगा। चोकर या अनाजों के तथा दालों के छिलके भी हमारे शरीर को लौह तत्त्व देते हैं। जब भी रोटी बनाएं आटे में से चोकर मत निकालें। छिलके वाली दाले खाना भी बेहतर माना गया है। यह तो हुआ खाद्य पदार्थों, सब्जियों से लौह तत्त्व का पा लेना तथा रक्‍त की कमी पूरी करते रहना। मगर यदि अधिक कमी लग रही हो तो डॉक्टर से सलाह लें इसके लिए इंजेक्शन गोलियां पीने की दवा भी रहत्ती है इसे लेकर आप खनिज लवण आयरन विटामिन्स प्राप्त कर सकते हैं।
मतलब यह कि गर्भवती नारी को अपने शरीर के में होने वाले विकास के लिए तथा गर्भस्थ अपना पूरा ध्यान रखना चाहिए तथा रक्त की कमी नहीं होने देनी चाहिए। इसी में जच्चा-बच्चा की भलाई है।

उपचार द्वारा गर्भवती के शरीर की तकलीफे दूर करना || Cure of pregnant women by medicine in hindi ||

गर्भवती युवत्ती का यदि यह पहली वार गर्भ धारण है तथा उसे पहली वार प्रसव की पीड़ा को सहन करना है तो उसे पूरे नौ महीनों में अनेक छोटी-मोटी तकलीफों का सामना करना पड़ेगा। ये सभी तकलीफें उसके लिए नया तजुर्बा होगा। यदि यह पहले इन सभी स्थितियों से गुजर चुकी हो तथा यह उसका फिर से गर्भ धारण करने का मौका हो, तो भी उसे इन सारी स्थितियों का सामना तो करना ही पड़ेगा। आइए, इन सभी छोटी-मोटी तकल्वीफों पर चर्चा कर लें, जो सामने आती ही हैं। इन्हें थोड़ी-सी सावधानी से, देखभाल से, उपचारों से, आहार से काबू मे लाया जा सकता है। एक-एक की चर्चा दी जा रही है।

गर्भवती का जी मिचलाता है: गर्भवती युवती की जो सबसे बड़ी शिकायत होती है, वह उसके जी के मिचलाने की है। यह सबके साथ होती है। गर्भ धारण पहली बार का है या दूसरी, तीसरी बार का ही सही। पेय पदार्थ लें : यह तकलीफ, यह परेशानी बहुधा प्रातःकाल हुआ करती है। कुछ देर रहती है।

बार-बार उलठी करने, उबाक फेंकने को मन करता है। जी ठीक नहीं रहता। यदि कोई ठंडा पदार्थ पी लें, नींबू की शिकंजी आधा-गिलास पी लें, कोई भी स्कवैश या शरबत बनाकर पी लें, यह परेशानी नहीं रहेगी । छुटकारा मिल जाएगा। पेय पदार्थ न लेकर भी जी के मिचलाने पर काबू पाया जा सकता है। एक-दो बिस्कुट खा लेना, भुने चने खाना, आलूचिप्स, दाल आदि कुछ खा लेने से जी मिचलाना रुक जाता है।

समय के साथ ठीक : जी मिचलाने की तकलीफ गर्भवती युवती को गर्भधारण करने के तीम महीनों तक रहा करती है। जैसे ही बच्चे के शरीर का सही निर्माण आरंभ हो जाता है, जी मिचलाना बंद। जी मिचताने को खुशी का सूचक लेकर चलना चाहिए, चिंतित नहीं होना चाहिए।

गर्भवती की छाती में जलन होना जब भी गर्भवती युवती के शरीर में पित्त बढ़ जाएगा, उसको छाती में जलन महसूस होने लंगेगी। छाती की जलन से छुटकारा पाने के लिए-

  1. नींबू का अचार खाएं।
  2. नींबू काटकर इसे काले नमक के साथ चूसें।
  3. मिल्क ऑफ मैग्नेशिया दवा विक्रेताओं से आसानी से मिल जाता है। इसे लें, तकलीफ़ नहीं रहेगी।
  4. गोलियों के रुप में भी यह उपलब्ध हैं। एक ही गोली पानी से ले। तकलीफ से छुटकारा मित्रेगा! छाती की जलन बंद हो जाएगी। परेशान रहने की बजाय, तुरंत उपचार कर लें। ठीक रहेगा।

गर्भवती के पेट में दर्द रहना || Stomach pain in pregnant women ||

गर्भवती नारी के पेट में दर्द होना या दर्द रहना, जो कि पांच मास के गर्भ के समय हुआ करता है, एक साधारण दर्द है। इसका प्रसव के दर्द से कोई तात्लुक नही।

  • बिना दवा के भी यह ठीक हो जाता है।
  • काम करते समय हुआ है तो थोड़ा आराम कर लें। अपने काम को वही छोड़कर आराम करें। दर्द ठीक हो जाएगा।
  • यदि लेटें-लेटे पेट में दर्द महसूस होने लगा है' तो उठकर बैठ जाएं। थोडा. चल्लें-फिरें। दर्द नहीं रहेगा।
  • यदि साधारणतया ठीक न हो तो अधिक प्रतीक्षा न करें। डॉक्टर की सलाह लें।

गर्भवती को कब्ज हो जाना || How to treat constipation in pregnant women in Hindi ||

स्वयं गर्भवती इस बात के लिए पूरी तरह सचेत रहे कि उसे गर्भ काल मे कब्ज बिलकुल न होने पाए | थोड़ी-सी सावधानी करके वह इस तकलीफ से छुटकारा पा सकती है। बैसे देखा जाए तो गर्भ धारण करने के कुछ समय बाद अक्सर यह शिकायत रहती ही है । जो सावधान हैं, उन्हें यह तकलीफ़ नहीं होती या शीघ्र ठीक हो जाती है।

कब्ज से छुटकारा पाने के उपाय —

  1. अधिकाधिक पानी पीते रहना चाहिए। यह नहीं कि प्यास लगने पर ही पानी पिएं। अक्सर पीती रंहें, तब तो शिकायत का नामो निशान नहीं रहेगा।
  2. नींबू पानी एक-दो गिलास भी इसका इलाज है। नींबू पानी के साथ 2-3 चम्मच शहद ले लेना भी उपचार है।
  3. हरी सब्जियां, विशेषकर पालक आदि सेवन करने से कब्ज से बचाव रहता है।
  4. मौसम में मिलने वाले फलों को भी अवश्य खाती रहें। यह भी कब्ज से बचाव है।
  5. चलते-फिरते रहने से, अधिक न सोने से भी कब्ज नहीं होती।

गर्भवती महिला की टांगों में सूजन होना || Swelling in Leg of pregnant women in Hindi ||

टांगों में दर्द होना, सूजन होना भी गर्भवती के लिए आम बात है। अच्छा होगा यदि बह अपने शरीर का ध्यान रखते हुए इस तकलीफ को आरंभ मे ही चेक कर ले। बात आगे न बढ़ने दे। जैसे-जैसे बच्चे का शरीर विकसित होता है। उसका भार बढ़ता है। बह नीचे की ओर जाने लगता है। यह स्थिति पांच मास के गर्भकाल के बाद आती है। इस समय शरीर का जलीय भाग भी नीचे आ जाता है। ऐसी स्थिति में टांगों पर वजन बढ़ जाता है। पांव भी थके-थके से रहने लगते हैं। टांगों में हल्का दर्द व सूजन महसूस होती है। जो गर्भवती स्त्रियां खडे होकर काम करती हैं, या ज्यादा देर खड़े रहना पड़ता है। उन्हें यह शिकायत अधिक होती है।

कैसे पाएं छुटकारा ? || How to cure leg pain in pregnant women in hindi ?||

  • जब भी सोचे या लेटें, अपने पांव किसी ऊंची जगह पर टिकाएं।
  • जमीन पर, गलीचे या दरी पर लेदें तो पांव के नीचे कोई ऊंची चीज, जैसे स्टूल आदि रखें।  कोई भी ऐसी पोजीशन लें, जिससे पैर ऊंचे हों, टांगें ऊंची हों, मगर शेष शरीर नीचा रहे। इससे पांव तथा टांगों पर पड़ा प्रभाव या दबाव हट जाएगा। सूजन कम होगी। दर्द भी नहीं रहेगा।
  • कभी-कंभार ठंडे पानी की (साधारण पानी की) एक वाल्टी लें। स्टूल या कुर्सी पर बैठ जाएं। अपने पांव तथा टांगों को पिंडलियों तक भीगने दें। यह सबसे आसान और शर्तिया उपचार है। इससे सूजन नहीं रहेगी। टांगों और पैरों का तनाव दूर भागेगा। दर्द गायब होगा। खूब सुख मिलेगा।
  • यह ऐसा वक्‍त है, जब मांसपेशियों में होनेवाले खिंचाव से छुटकारा पाना जरूरी है यदि अपने पाव तथा टागो की तेल मालिश करें तो भी यह सूजन, खिंचाव, दर्द नहीं रहेगा।

गर्भवती की पीठ में दर्द होना || How to remove back pain in pregnant women in hindi ||

बच्चे का पेट में वजन बढ़ने से, पेट के भारी हो जाने से, मांसपेशियो मे खिचाव से पीठ में दर्द की शिकायत हो जाया करती है। मांसपेशियों में तनाव हो जाने से ऐसा हुआ करता है। गर्भकाल में यह खिंचाव दर्द देने लगता है; इसका असर पीठ पर अधिक होता है।

  • मालिश करवाने से यह दर्द जाता रहता है।
  • किसी अच्छी नर्स, अच्छी जानकार दाई या घर की बुजुर्ग से मशविरा करके, तरीके से मालिश हो, ताकि शरीर को और कोई नुकसान न झेलना पड़े।

ऊपर हमने कुछ ऐसी तकलीफ़ों का जिक्र किया है जो थोड़ी सावधानी से, थोड़ी कोशिश से, बिना किसी डॉक्टर के, घर में ही ठीक की जा सकती है।

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