शरद ऋतुचर्या
जहां संस्कृत-हिंदी साहित्य इसकी मनोहरता
का वर्णन करता नहीं अघाता वहां आयुर्वेद शरद ऋतु चर्या द्वारा स्वास्थ्य संरक्षण
के लिए प्रेरित करता है, क्योंकि वह जानता है- कि
मनुष्य के शरीर में व्याप्त वर्षकालीन पित्त शरद ऋतु में नवीन सूर्य किरणों से सहसा गर्म हो जाता है और इससे
वर्षा में संचित पित्त शरद में कुपित हो उठता है, अतः पित्त की शांति के
लिए- घृत का पान, विरेचन और रक्त मोचन
करना उचित है । यद्यपि पित्त की शांति के लिए लिखा है-“विरेचनं पित्त हराणाम्” तथापि इसकी शांति और
शरीर स्निग्ध करने के लिए नीम, कुटकी, परबल, दारु हल्दी, पाठा, धमासा, शाहतारा, त्रायमाण आदि औषधियों
के क्वाथ से सिद्ध तिक्त घृत का प्रयोग लाभप्रद है। जिस प्रकार वसन्तमें कफ
निवृत्ति के लिए वमन, वर्षा में वायु के लिए
निरूह वस्ति का विधान है उसी प्रकार शरद में विरेचन का । भाव यह है कि शरद में
पित्त का स्वाभाविक राज्य हैऔर परिणाम स्वरूप तज्जन्य रोग अधिकाधिक मात्रा में
उत्पन्न होते हैं।
शरद ऋतु में रोगों से रक्षा कैसे करें ?
वैद्यों को इस ऋतु में विशेष लाभ होता है
इस कारण वैद्य समाज के लिए यह ऋतु मातृवतमानी गई है । इस प्रकार एक ओर पित्त
का प्रकोप दूसरी ओर ऋतुचर्या से अपरिचय ये दोनों अनेक रोगों को उत्पन्न कर सकते
हैं । अतः आदि तिक्त घृत पान और विरेचनादि का प्रयोग कर पित्त का हरण कर लिया जाए
तो इस ऋतु में उत्पन्न होने वाले रोग नहीं होते । इस लिए आगे बताई हुई विधि से
पित्त को शीघ्र जीत लेना चाहिए ।
शरद ऋतु में क्या खाएं
?
इस ऋतु में भूख लगने पर तिक्त, मधुर, कषाय रस प्रधान, शीघ्र पचने वाले पदार्थों का सेवन करें । भोजन में
शाली (साँठी) चावल, मूँग, चीनी, आँवला,परबल, मधु, जंगली जीवों का मांस सेवन करें । शरद ऋतु में पीने के
योग्य 'हंसोदक' को श्रेष्ठ और अमृत के
समान माना गया है क्योंकि यह अनेक आंतरिक उपद्रवों को दूर करने की क्षमता से
परिपूर्ण है ।
शरद
ऋतु में क्या पीना चाहिए ?
जो जल दिन में सूर्य की किरणों से
तपायमान हो, और रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से शीतल
होता हो तथा इस जलाशय के चारों ओर पूरी तरहदिन में सूर्य की किरणें और रात्रि में
चन्द्रमा की रश्मियाँ गिरती हों एवं अगस्त्य (नक्षत्र) के उदय होने
से ऋतु जनित विष शांत हो चुका हो ऐसे निर्मल पवित्र जलको हंसोदक कहते हैं। यह जल
मल हरने वाला, क्लेद रहित (अनभिष्यन्दि) तथारुक्षतादि
दोष रहित होने से पीने आदि कार्यों में अमृत के समान माना गया है। रामायण में
अगस्त्योदय के वर्णन में तुलसीदास जी ने लिखा है-“उदितअगस्त पंथ जल सोषा । निमि
लोभहिं सोखें सन्तोषा” पर आयुर्वेद में अगस्त्योदयजल को रोग निवृत्ति कारण
माना गया है।
शरद
ऋतु में क्या पहनना चाहिए ?
शरद ऋतु में चन्दन, खस, कपूर आदि का सेवन, मोती की माला, सुगंधितपुष्पों के हार
और श्वेत उज्ज्वल वस्त्रों को धारण करना चाहिए । साथ ही क्योंकि इस ऋतु में
चन्द्रमा की किरणों से अमृत वर्षा होती है और वर्षा के बाद आकाश स्वच्छ निर्मल हो
जाने से इस अमृत वर्षा को ग्रहण करने के लिए यह ऋतु सर्वोत्तम है । चन्द्र किरणों
की स्निग्धता और गुणकारिता के ही कारण शरद पूर्णिमा की रात्रि में चन्द्र किरणों
का विहार और चाँदनी में रखकर खीर खाना बहुत उत्तम माना गया है। अतः सायंकाल में
चन्द्रमा की श्वेत उज्ज्वल चाँदनी को महल आदि पर बैठकर सेवन करें ।
शरद ऋतु में
किसका
त्याग कर देना चाहिये?
शरद ऋतु में निम्न वस्तुओं का सर्वथा
परित्याग करें-
ओस की बूँदे, यवक्षार आदि क्षार, पूर्ण भोजन, दही, तेल, वसा, धूप, तेज शराब, दिन का सोना तथा सामने
से आने वाली हवा आदि से शरीर की रक्षा करनी चाहिए ।
शरद
ऋतु में कैसे करें स्वास्थ्य की रक्षा ?
इस प्रकार आयुर्वेदोक्त शरद् ऋतु के
नियमों का पालन करना मानव मात्रके लिए परमावश्यक है। विशेषकर निर्धन भारत के उन
स्वास्थ्य कर्मियों को इस ओर पूर्ण ध्यान देना चाहिए, क्योंकि भारतीय तत्ववेत्ता आचार्यों ने भारत की स्थिति-काल
आदि का विचार कर ऐसे सूत्रों का निर्माण किया है--“हींग लगे नाफिटकरी रंग चोखा
ही चोखा” इसलिए भारतीय को यस्य देशस्य योजन्तु तज्जन्यऔषध॑हितम् को ध्यान में
रख, इन स्वास्थ्य रक्षक सूत्रों को ही औषध रूप मेंआत्मसातू
कर अपना स्वास्थ्य सुंदर और भविष्य उज्ज्वल बना लेना चाहिए ।
शरद
ऋतु में आहार विहार
इस ऋतु में विशेषकर मधुर
तिकत कषाय रस का सेवन करना चाहिए । मसहरी के भीतर या भली प्रकार वस्त्र लपेटकर
सोना चाहिए । कटु तैल (सरसों का तेल) की मालिश करनी चाहिए । प्रतिदिन एक नींबू गरम
जल में निचोड़कर पीना तथा मधु का व्यवहार करना भी उत्तम हैं । विरेचन के लिए
इच्छाभेदी रस, मधुयष्ठयादि चूर्ण, पित्तशांति के लिए मुक्ता पिष्टी चन्द्र
पुटित प्रवाल भस्म, काम दूधा रस आदि का सेवन
अच्छा है । इस प्रकार हम देखते हैं कि जहाँ हिंदी संस्कृत साहित्य ने शरद् वर्णन
द्वारा मानव मन को परितुष्ट करने का प्रयत्न किया वहां आयुर्वेद ने मानव मात्र को स्वास्थ्य
के प्रति जागरूक रहने की प्रेरणा दी ।