एड्स के लक्षण और प्रभाव

 

मानव शरीर एड्स के वायरस से कैसे लड़ता है ? || How our immune system fights against AIDS virus ?

मानव शरीर में संक्रामक रोगों के आक्रमण से बचने की प्राकृतिक क्षमता होती है। चाहे यह आक्रमण विषाणु या किसी अन्य रोगाणु द्वारा हो। शरीर मे इस प्रकार की बचाव क्षमता किस प्रकार उत्पन्न होती है और किस प्रकार क्रियाशील होती है, इस विषय का ज्ञान होना आवश्यक है। रक्त कण शरीर की धमनियों में प्रवाहित रक्त में दो प्रकार के रक्त कण होते हैं- श्वेत एवं लाल कण। श्वेत रक्त कण अस्थि मज्जा से उत्पन्न होते हैजिन्हे ल्यूकोसाइट भी कहते है। इनका काम है रोगाणुओं से लड़ना एवंशरीर की रक्षा करना। यकृत (जिगर) में मेक्रोफेज का उत्पादन होताहै, ये शरीर पर आक्रमण करने वाले बैक्टीरिया को नष्ट करते हैं तथाबाहरी घातक प्रोटीन को पचा डालते हैं। प्लीहा में बी लिम्फोसाइट बनते हैं, इनका काम प्रतिरक्षक प्रतिकाय (एस्टीबॉडी) बनाना है। 

एड्स के लक्षण और प्रभाव
अन्त-स्रावी ग्रंथि थायमस में टी-लिम्फोसाइट बनते हैं, जो शरीर में कोशिका को रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं। टी-लिम्फोसाइट को तीन समूह में विभाजित किया जा सकता है-

टी-0 लिम्फोसाइट : ये सीधे ही कोशिका पर आक्रमण कर उसे नष्ट कर देते.' हैं।

टी-4 या टी-सहायक तथा टी-8 या टी-अवरोधक लिम्फोसाइट :  ये दोनों लिम्फोसाइट रोगों से लड़ने वाले प्रति रक्षा तंत्र को नियंत्रित करने मैं महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सहायक तिम्फोसाइट्स का काम रक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ाना है जबकि अवरोधकों के काम है उन्हे बढ़ने से रोकना, मनुष्य की कोशिकाओं के अन्दर 25 जोड़े गुणसूत्र होते हैं।

DNA और RNA पर एड्स का क्या प्रभाव पड़ता है ? || Effect of HIV on DNA and RNA ||

गुणसूत्र का निर्माण लड़ियों वाले सर्पीलि आकार के डी-आक्सीरीबोन्यूक्लिक अम्ल (संक्षेप में डी.एन.ए.) से होता है। इसके अलावा एक और अम्ल रोबोन्यूक्लिक अम्ल (आर.एन.ए.) होता है। सामान्य अवस्था में डी.एन.ए. से आर.एन.ए. का संश्लेषण होता है। एड्स संक्रमण आर.एन.ए. विषाणु द्वारा होता हैं इन विषाणुओं में आर.एन.ए. की अकेली लड़ी होती है जिसमें 9500 न्यूक्लियोटाइड होते हैं। न्यूक्लियोटाइड को संख्या आर.एन.ए. के दायें व बायें छोर पर अधिक होती हैं। बायें छोर पर तीन जीन्स होते हैं, जो एड्स उत्पन्नकरते हैं। HIV संक्रमण हो जाने पर टी-सहायक और मेक्रोफेजप्र भावित होते हैं तथा काम करना बन्द कर देते हैं। टी-4 लिम्फोसाइट्स की कमी होना ही एड्स विषाणु के प्रतिप्रतिकार क्षमता में दोष आने का मुख्य कारण है। टी-4 लिम्फोसाइट्स एक अन्य वी-लिम्फोसाइट के साथ प्रतिरक्षक प्रतिकाओं के उत्पादन को बढ़ाती है जो विषाणु पर आवरण चढ़ाकर निष्क्रिय बनाती है। लेकिन एड्स विषाणु टी-4 लिम्फोसाइट्स पर आक्रमण कर प्रतिकार उत्पादन को पंगु बना देते हैं। इस प्रकार विषाणु स्वयं को सुरक्षित कर लेते हैं और पोषक (संक्रमित व्यक्ति) के प्रतिरक्षक तंत्र को कमजोर बनाकर उसे अन्य संक्रमणों के प्रति सुग्राही बना देते हैं।

एड्स के विषाणु कैसे काम करते हैं ? || How AIDS virus works ? ||

एड्स उत्पन्न करने वाले विषाणु रिट्रो वायरस समूह से होते हैं क्योंकि इस रोग मे आर.एन.ए. से डी.एन-ए. में संश्लेषण होने लगता है जबकि सामान्य अवस्था में डी.एन.ए. से आर.एन.ए. का संश्लेषण होता है। एड्स उत्पन्न करने वाले विषाणु बहुत ही विशिष्ट होते हैं। अतःये किसी विशिष्ट जाति के प्राणियों को रोग ग्रस्त करते हैं। उन प्राणियों में भी किसी निश्चित अंग या कोशिकाओं पर आक्रमण करते हैं। इस रोग में ये विषाणु सहायक टी-लिम्फोसाइट्स को प्रभावित करते है। एड्स के विषाणु मनुष्य के शरीर में प्रवेश करते हैं तथा अपनीपसंद की कोशिकाओ का पता लगाकर उन पर आक्रमण करते हैं। ये विषाणु विशेष विधि से उन कोशिकाओं पर जा धमकते हैं जो विषाणु संवेदी होती हैं अर्थात जिन कोशिकाओं की सतह पर प्रोटीन पोलीसकराइड खड़े होते हैं। टी-4 लिम्फोसाइट एवं मेक्रोफेज ऐसी ही कोशिकांए है।

एड्स का हमारी कोशिकाओं पर क्या प्रभाव पड़ता है ? || Effect of AIDS on human cells ||

विषाणु के संपर्क में आते ही इन कोशिकाओं में गड़ढा सा बन जाता है। इस माध्यम से ये कोशिका के अन्दर प्रवेश कर जाते हैं। इस स्थिति में विषाणु एवं कोशिका की झिल्लियां आपस में मिलकर एक हो जाती हैं। तत्पश्चात्‌ विषाणु का बाह्य कवच नष्ट हो जाता है। फलस्वरूप विषाणु सक्रिय अवस्था में उस कोशिका के अदर पहुँच जाता है। विषाणु की न्यूक्लियों प्रोटीन पोषक कोशिका की न्यूक्लियो प्रोटीन को परिवर्तन करने लगती है। फलस्वरूप पोषक कोशिका स्वयं के स्थान पर न्यूक्लियो प्रोटीन विषाणु का उत्पादन आरंभ कर देती है। इस प्रकार कोशिका में बहुत संख्या मे नए विषाणु उत्पन्न हो जाते हैं। ये कोशिका को नष्ट कर बाहर स्वतंत्र रूप में निकल जाते हैं तथा प्रत्येक विषाणु एक नई कोशिका पर आक्रमण कर देता है और इस प्रकार चक्र चलता रहता है। कोशिका के अंदर सक्रिय विषाणु आर.एन.ए. को डी.एन.ए. में परिवर्तित करता है। यह डी.एन.ए. अंगूठी की आकृति में बदल कर लिम्फोसाइट एवं मेक्रोफेज से इस प्रकार मिल जाते हैं जैसे यह उस कोशिका का ही जीन हो। एक संक्रमित लिम्फोसाइट से अनेकों कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं।

एड्स का विषाणु कितने समय तक सोता रहता है ? || When AIDS virus activates ? ||

यह विषाणु मस्तिष्क को सूचना देने वाले न्यूरोन में घुसकर केन्द्रीय स्नायु तंत्र को भी छिन्न भिन्न कर देता है। एड्स के विषाणु से संक्रमित व्यक्ति मे रोग लक्षण एकदम दिखाई नहीं देते क्योंकि इसकी सुप्तावस्था अवधि सात-दस वर्ष तक है। कुछ अवस्थाओं में यह अवधि 20 वर्ष तक हो सकती है। एच.आई.वी. के प्रारंभिक संक्रमण अवस्था में टी-4 लिम्फोसाइट्स की मात्रा मे कुछ कमी आती ह जो कुछ वर्षो तक स्थिर रहती है। इसका कारण व्यक्ति के शरीर द्वारा प्रतिरक्षक प्रतिक्रिया का होना है। टी-8 की कमी टी-4 में ए.आई.वी. संक्रमण का कारण है। जैसे-जैसे एड्स के संक्रमण की बढ़ोत्तरी होती जाती है टी-8 कोषों को संख्या सामान्य होती जाती हैं। या कुछ रोगियों में संक्रमण की अत्यधिक अवस्था में उनमें कमी आ जाती है। जैसे-जैसे रोग के लक्षण बठते नजर आते हैं वेसे-वैसे टी-4 कोषों में कमी आती जाती है। और एड्स विषाणु का भार रोगी पर बढ़ता चला जाता है।

एड्स के विषाणु कितने प्रकार के होते हैं ? || Types of AIDS virus in Hindi ||

एड्स के कारण जैसाकि पूर्व में बताया जा चुका है एड्स संक्रमण वायरस समूह के ह्यूमन रिद्रोवायरस द्वारा उत्पन्न होता है। ये विपाणु चार प्रकार के होते हैं जिन्हें दो वर्ग मे विभक्त किया जा सकता है।

  1.    प्रथम ह्यूमन-टी-लिम्फोट्रोफिक वायरस एच.टी.एल.वी. व एंच.टी.एल.वी.2
  2.   द्वितीय ह्यूमन इम्युनों डेफिसैसी वायरस एच.वाई.वी.4

प्रथम रूपान्तरित विषाणु हैं जबकि द्वितीय कोष व्याधिकारक विषाणु है। एड्स का मुख्य कारक विषाणु एच.आई.वी. है। एच.आई.वी. 2 सीमियन इम्युनो डैफिसेंसी वायरस (एस.आई.वी.) से अधिक सम्बद्ध है तथा एच.आई.वी. से कम व्याधिकारक है।

एड्स संक्रमण का प्रसार कैसे होता है ? || How AIDS spreads ? ||

एड्स संक्रमण के प्रसार में निम्नलिखित तत्व सहायक हैं-

  1.   यौनाचार
  2. एड्स संक्रमित रक्त संचारण
  3.    ईजेक्शन
  4.    शिरा मार्ग विधि से मादक पदार्थों एवं औषधियोंका सेवन करना
  5.    एड्स संक्रमित मां से बच्चे को 
  6.    हीमोफिलिया, थैलेसीमिथा, एपलास्टिक एनीमिया, यौन संबंधीरोग आदि से पीड़ित व्यक्ति।
 यदि कोई महिला किसी संक्रमित पुरुष से यौन संबंध रखती है या कोई पुरुष संक्रमित महिला से यौन संबंध रखता है तो स्वस्थ पुरुष महिला संक्रमित के शिकार हो सकते हैं। संक्रमित पुरुष एक स्वस्थ पुरुष को समलैंगिक यौन संबंध रखने पर संक्रमित करता है। समलैंगिक यौनाचार करने वालों में एड्स रोग निम्न कारणों से अधिक होता हैः

1.   गुदा मार्ग में स्थित में क्रोफेज ऊत्तकों के जाल पर एच.आई.वी.विषाणुओं का विशेष कुप्रभाव

2.   एड्स से ग्रसित रोगी के वीर्य में रोग के विषाणुओं का अधिक संख्या में होना है।


चूंकि मुदा मार्ग मैथून क्रिया के लिए नही है, अतः जब अप्राकृतिक कार्य किया जाता है तो गुदा मार्ग के ऊतक टूट जाते हैं, फलस्वरूप रक्तस्राव अधिक होता है।  जब एड्स से ग्रसित पुरुष स्वस्थ पुरुष से समलैंगि संबध स्थापित करता है योनि सम्भोग के अंत में वीर्य स्खलन के समय स्वतः ही संक्रमित वीर्य के माध्यम से स्वस्थ पुरुष के गुदा मार्ग के ऊतको में एड्स के विषाणु आसानी से पहुंच जाते हैं। गुदा मार्ग में हो रहे रक्तस्राव के कारण पूरा भाग संक्रमित हो जाता है। दोनों में से कोई भी एक व्यक्ति रोग ग्रस्त हो तो समलैंगिक यौन संबंध के समय दूसरे को संक्रमित कर देता है। यौनाचार माध्यम से एड्स प्रसार में वेश्यावृत्ति प्रमुख भूमिका निभाती है।

थाइलैण्ड में जब सेक्‍स का बाजार लगा दिया था और वहां विश्व के सभी देशों से यौनाचार के शौकीन पहुंचने लगे तो वहां एड्स के रोगियों की संख्या बढने लगी। अब वहां प्रति लाख की जनसंख्यापर बीस व्यक्ति एड़स के शिकार हैं।

 रक्त संचारण विधि द्वारा एड्स का प्रसार || Spread of AIDS by Blood Transfer ||

रक्त संचारण विधि भी एड्स प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि किसी व्यक्ति को रक्त के उत्पाद, रक्त संचारण विधि से दिए जाएं तो चह व्यक्ति एड्स का शिकार हो सकता हैं वर्तमान समय में विभिन्न प्रकार के रोगियों में रक्त संचारण की आवश्यकता होती है अतः इस कार्य के लिए यदि एड्स से ग्रसित व्यक्ति का रक्त उपयोग में आ जाता है तो वे इस रोग के शिकार हो जायेंगे। अतः रक्त संचारण देते समय रक्त व रक्त उत्पादों की ओर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

एड्स ग्रसित माता द्वारा एड्स का प्रसार || || Spread of AIDS by Pregnant Women ||

यदि गर्भवती मां एड्स रोग से ग्रसित है तो उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण व शिशु को संक्रमण हो सकता है तथा नवजात शिशु को यह रोग होगा। अफ्रीका में आज भी यह रोग महिलाओं में इतना अधिक है कि अनेक नवजात शिशु संक्रमण से ग्रसित होते हैं। रोग ग्रसित माता के स्तन से दूध पीता शिशु भी संक्रमित हो सकता है।

एड्स कितना भयानक है ? || How dangerous is AIDS ||

एड्स रोग की भयंकरता का अनुमान इसी बात में लगाया जासकता है कि पिछले पांच वर्षो में अमेरिक्रा में 77000 से अधिक एड्स रोगियों का पता लगाया गया है। इनमें से लगभग 50 प्रतिशत मृत्यु का शिकार बन चुके हैं और शेष रोगियों की मृत्यु भी एक-दो वर्षो के बीच निश्चित है। इस रोग की सफलता से चिकित्सा नहीं हो पाने के कारण उनके जीवन की आशा नहीं की जा सकती है।

एड्स का इतिहास || History of AIDS ||

1987 में अमेरिका के डॉक्टर माइकेल गाटलीब ने एड्स का पता लगाया । उन्होंने लास एंजिल्स के एक अस्पताल मे न्यूमोसिस्टिस न्यूमोनिया (फेफड़ों का विशेष संक्रामक रोग) से पीड़ित चार नवयुवकों में परीक्षण के समय एड्स के विषाणुओं का पत्ता लगाया। 1970 में कैरीबियन द्वीप समूह में वेस्टइंडीज, क्यूबा, अफ्रीका और अमेरिका मे एड्स रोगी पाए गए थे, लेकिन इस रोग का ज्ञान न होने के कारण इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया। लेकिन डॉक्टर गाटलीब ने उक्त चार नवयुवकों का परीक्षण किया तो उनमें एड्स रोग के लक्षण पाए गए। चारो नवयुवक समलैंकी थे और उनकी शारीरिक रोग प्रतिरोधक शक्ति पूरी तरह नष्ट हो चुकी थी।

एड्स की उत्पत्ति || Origin of AIDS ||

एड्स की उत्पत्ति अफ्रीका में हुई। अनुसंधानकर्ता एक अटकल यह भी लगा रहे हैं कि इस महामारी का उद्भव अफ्रीका महाद्वीप में ही हुआ। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बीमारी की शुरुआत अफ्रीका के ग्रीन बन्दर से हुई इस सबंध मे वैज्ञानिका नेइस क्षेत्र के 200 ग्रीन वानरों के खून के नमूने एकत्र करके उनका विश्लेषण किया तो यह पाया कि 70 प्रतिशत वानरों के शरीर में भी वही वायरस मौजूद हैं जो एड्स रोगियों के शरीर में पाया जाता है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि उस वायरस से वानरों के शरीर पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता था। और वे वर्षो से एक सामान्य प्राणी का सा जीवन व्यतीत कर रहे थे। इस अजीब तथ्य से वैज्ञानिकों का उत्साह कम होने की बजाय और बढ़ा है। उन्हे विश्वास है कि निकट भविष्य में इस रोग पर अनुसंधान के क्षेत्र में यह आश्चर्यजनकतथ्य उनके लिए काफी महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा। लेकिन सुदूर अफ्रीका के जंगलों से यह रोग अमेरिका कैसे पहुंचा, इस बारे में बैज्ञानिक अभीसक कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे पाएं हैं। एड्स संसार में तेजी से फेल रहा है।

एड्स से कितने लोग पीड़ित हैं ? || How many people are infected with AIDS ||

'एड्स' के रोगियों के बारे में अफ्रीकी देशों युगांडा, तंजानिया, कीनिया तथा अमेरिका आदि 85 देशों से सूचनाएं मिली है, यद्यपि विश्व-स्वास्थ्य संगठन के अनुसार तो यह रोग 100 देशों तक पहुंच चुका है। विशेषज्ञों के अनुसार संसार भर में 50 लाख से एक करोड़ लोग तक एड्स' के वायरस लिए घूम रहे हैं। यदि इसका सामना करने में कोई कारगर प्रगति नहीं हुई तो अगले दस वर्षो में यह संख्या करोड़ तक पहुंच सकती है।

अमेरिका में एड्स || AIDS in America ||

अकेले अमेरिका में 30000 से अधिक रोगियों के बारे में पता चल चुका है और इनके अतिरक्‍त कोई 5 लाख लोगों में इस रोग के पनपने का संदेह किया जा रहा है। यदि यह महामारी अपनी वर्तमान गति से बढ़ती रही तो ऐटलांटा के रोग नियत्रण केंद्र के अनुसार अगले पांच वर्षो में वास्तविक रोगियों की संख्या 30 हजार से बढ़कर 270000 हो जाएगी तथा 'एड्स' से होने वाली मौतें 779000 तक पहुच सकती हैं। अमेरिका में तो एड्स से इस देश की अर्थव्यवस्था को भी खतरा पैदा होने लगा है। इस रोग के शिकार लोगों की देखभाल पर ही प्रतिवर्ष एक अरब डालर का खर्च हो रहा हैं यदि, ऐसा ही चलता रहा तो आगे आने वाले वर्षो में खर्च में काफी वृद्धि की संभावना है।

अफ्रीकी देशो में एड्स || AIDS in African countries ||

यही स्थिति केंद्रीय अफ्रीकी देशो में है, उसका मुकाबला अमेरिका की स्थिति से भी नहीं किया जा सकता।


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