एड्स संक्रमित व्यक्ति का आहार || Diet of HIV positive patient in Hindi ||

 

एड्स संक्रमित व्यक्ति का आहार || Diet of HIV positive patient in Hindi ||

संक्रमित व्यक्ति को औषधि उपचार के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक उपचार एवं पौष्टिक आहार की भी आवश्यकता होती हैं। यह कहना उचित होगा कि उसको आराम से जीने के लिए दोनों विधियों की अधिक आवश्यकता है। रोगी से पूर्ण सहानुभूति रखें अच्छी तरह इलाज करें। छूने व पास जाने से एड्स नही होता है। डरने की कोई जरूरत नहीं होती है। रोगी की परिचर्यापरिचर्या का मूल सिद्धान्त सक्रमित व्यक्ति के प्रति पूरा दायित्व निभाना तथा उसके परिवार एवं मित्रों को सहारा देना है। एड्स से संक्रमित व्यक्ति के प्रति यह धारणा कि उसका कोई उपचार उपलब्ध नहीं है, किसी भी समय स्थिति बिगड़ सकती है, इसका संक्रमित व्यक्ति, उसके परिवार व मित्रों पर बहुत ही विध्वंसक प्रभाव पड़ता है। इतना ही नहीं परिचारिका पर भी भावात्मक तनाव बना रहता है। इस प्रकार इस संक्रमण से ग्रसित व्यक्ति की परिचर्या करना एक जटिल कार्य होजाता है। एड्स संक्रमण के प्रति ऐसी भावना कि यह सम्पर्क द्वारा फैलता है, व्यक्ति के जिए सामाजिक बहिष्कार एवं प्रथककरण का कारण बन सकती है। लेकिन परिचारिका संक्रमित व्यक्ति के साथ ऐसा व्यवहार होने से रोक सकती हे तथा उसे समाज व परिवार में उचित स्थान व सत्कार दिला सकती है। वह ऐसा वातावरण बना सकती है जिससे उस व्यक्ति को आदर मिल सकें एवं उसमें आत्मविश्वास उत्पन्न हो सके। यद्यपि परिचारिका को यह मालूम है कि वह संक्रमित व्यक्ति की हर आवश्यकता को पूरा नहीं कर सकती लेकिन उपरोक्त सभी कुछ किया जा सकता है जिससे उसमें आत्म विश्वासएवं आलबल बना रहे और एक अच्छा जीवन जीने की आशा बन सके। रोगी के परिवार व मित्रों को यह विश्वास कराना होगा कि एड्स संक्रमण मात्र संपर्क से या रोगी के पास बैठने से नहीं फैलता तथा रोगी को बिलकुल अलग रखने की आवश्यकता नहीं है। रोग के प्रसारके विभिन्न कारणों व उनके बचाव उपायों पर भी प्रकाश डालना होता है। ताकि विभिन्न प्रकार की मिथ्या धारणाओं को समाप्त किया जा सके । इन सबके लिए अच्छी परिचर्या के साथ-साथ प्रभावी स्वास्थ्य शिक्षा एवं बातचीत की आवश्यकता होती है।

एड्स संक्रमित व्यक्ति का आहार || Diet of HIV positive patient in Hindi ||


मन्रणा बार्तालाप एवं विचारों के आदान प्रदान करने की एक ऐसी विधि है जिसका उद्देश्य समस्याओं को समझने एवं उन्हे सुलझाने में सहायता एवं प्रेरणा को बढ़ावा देता है। बातचीत के अन्तर्गत व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक व सामाजिक आवश्यकताओं के साथ-साथ उसकी चिकित्सा, वित्तीय एवं विधि संबंधी आवश्यकताओं को भी लिया जाना चाहिए। पत्र-पत्रिकाओं में एड्स के बारे में जो छप रहा है उससे आम जनता के मन में व्यर्थ ही भय और हिस्टीरिया की स्थिति पैदा हो सकती है। इसलिए पहला काम है-लोगों को सही और संतुलित जानकारी देना। बातचीत व विचारों का उद्देश्य होता है कि आवश्यकता के समय सहायता करना, बदलाव पर उस बदलाव में सहायता करना। जीवन की विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार वास्तविक क्रिया के लिए प्रस्ताव रखना तथा प्रत्येक व्यक्ति द्वारा उसके स्वास्थ्य एवं कल्याण से संबंधित ज्ञान को स्वीकार करना तथा आशय के अनुकूल बनाना। विचारों कापरामर्श करने या शिक्षा देने की एक विधि हो सकती डे अथवा यह एक व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक व सामाजिक आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी हो सकती है।

एड्स का निदान || Cure of AIDS in Hindi ||

एड्स का निदान करना बड़ा कठिन है। इसके परीक्षण के लिएअनेक प्रकार के रक्त-परीक्षण करने होते हैं। यह निदान संकेतो,लक्षणों और कई प्रकार के प्रयोगशील पैरामीटरों पर निर्भर होता है |इसके निदान के लिए एण्टीबॉडी निगरानी परीक्षण किए जाते हैं।वेलोर, मद्रास, पुण, कलकत्ता, दिल्ली और श्रीनगर में इस काम के लिएविशेष रूप से केंद्र खोले जा चुके हैं! धीरे-धीरे ये प्रत्येक राज्य की राजधानियों में खुलते जा रहे हैं। एड्स विषाणुओं को पहचानने के लिए एलिसी टेस्ट-किट होते हैं, जिनकी व्यवस्था केंद्रों में की गई है।

स्वास्थ्य शिक्षा

एड्स संक्रमण के बचाव एवं नियंत्रण उपायो में स्वास्थ्य शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यवहार में परिवर्तन लाना, संक्रमण के पारेषण एवं सम्पर्क में कमी लाना, मनोवैज्ञानिक तनाव को कम करना तथा प्रत्येक व्यक्ति को परिस्थितियों से निपटने के लिए तैयार करना है। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उन लोगों को शिक्षा दी जानी चाहिए जो सीधे ही इससे प्रभावित होते हैं तथा जो नियमित रूप से बारम्बार संक्रमण संपर्क में आते ही विशेष रूप से यौन संपर्क में आने वाले व्यक्ति। हमें चाहिए कि आज की युवा पीढ़ी को एच.आई.वी. के संक्रमणके सम्बन्ध में तथा सम्भव जानकारी दे ताकि व्यक्ति अपने को एड्स के सम्भावित खतरे को समूल नष्ट कर दें। कुछ व्यक्ति दूर की वजह से अस्पतालों मे नहीं जाते। उन्हें एच.आई.वी. परीक्षण कराने में सामाजिक भय सताता रहता है उनके इस भय को कम कर उनमें जागृति लानी है। जिनका एच.आई.वी. संक्रमण के लिए परीक्षण करना है सहानुभूति पूर्वक परीक्षण कराना है। जिनका एच.आई.वी. संक्रमण निश्चित हो चुका है उन्हें इससे बचाव के लिए सभी उपाय समझाऐ जाने चाहिए। जिनका एच.आई.वी. संक्रमण परीक्षण तो हो चुका है वे परिणाम की प्रतिक्षा में है उन्हें भी एच.आई.वी. के बारे में सलाह देनी होगी। एड्स होने से पहले अर्थात एच.आई.वी. संक्रमण के सम्भावित खतरों से यौन साथी, मित्र एवं परिवारों को भी मंत्रणा देनी चाहिऐे इतना ही नहीं यथा सम्भव अन्य व्यक्ति जिन्हें इस प्रकार की सहायता की जरूरत है या परामर्श लेना चाहते हैं। एड्स का निदाव करना एक कठिन कार्य है। जटिल किस्म की रक्‍त जांच से ही यह निदान संभव है। रक्त की चांच से ही एड्स के विशाणु को पक्की तरह से पहचाना जा सकता है व्यक्ति मे इस रोग का उद्भवन काल बच्चों मे औसतन एक साल है ओर वयस्कों में ढाई साल । पर यह समय 6 महीने से लेकर 5 साल तक हो सकता है। अगर खून चढ़ाए जाने से एड्स का विषाणु अपना हमला करता है। तो रोग के लक्षण काफी समय में नजर आ सकते हैं। उल्लेखनीय है कि एड्स के रोगी के नजदीक बैठने, हाथ मिलाने, छींकने या खांसने से यह रोग नहीं फैलता हैं रोगी के कपड़े पहनने से भी नुकसान की गुंजाइश नहीं है। चुंबन भी तभी नुकसानदायक है जब ओंठ, जीभ या मुंह में घाव या चीरा आदि हो। सेक्स संबंधों में कंडोम का इस्तेमाल थोडा-बहुत सुरक्षा दे सकता है। पर समलिंगी और उभयलिंगी पुरुष आदि बहुत से व्यक्तियों से संबंध रखते हैं, तो उन्हें एड्स का ख़तरा है। गुदा मैथुन में अक्सर मलाशय में फटान आ जाने के कारण वीर्य से विषाणु शरीर मे पहुंचजाते हैं। समलिंगियों और उभयलिंगियों में एड्स के विषाणु के प्रवेश का खतरा 75 प्रतिशत है। जबकि हेरोइनी सरीखी औषधियोंको लेनेवाले नशैड़ियों में यह खतरा 90 प्रतिशत है। हीमोफीलिया के रोगियों को भी सावधान रहने को जरूरत है। स्पष्ट है कि एड्स से पीड़ित स्त्रियों को गर्भधारण नहीं करना चाहिए। रक्त उत्पादन एड्स-मुक्त होने चाहिए। अधिकरकक्‍तस्राव के रोगियों की निगरानी रखनी चाहिए। समलिंगियों को नए-नए जोड़े नहीं बनाने चाहिए।

सरकार द्वारा कार्यक्रम

यौन सम्बन्धी बीमारियों को रोकने के कार्यक्रम पेश किऐ है जिनसे एड्स के फैलने की सम्भावना होती है इस हेतु सरकार एवं गैर सरकारी संस्था आगे आई है व खासकर युवाओं को जागृत करना चाहती है। कि परस्पर समलैंगिक सम्भोग से बचे।

यौन सम्बन्धी बीमारियों से बचाव, उसके उपचार एवं नियन्त्रण पर प्रस्ताव बनाऐँ। क्योंकि यौन सम्बन्धी विकारों से एच.आई.वी. विषाणु का प्रसार होता है जो प्राणघातक होता है। इन प्रचार के माध्यम से एच.आई.वी. विषाणुओं को फैलने से रोका जा सकता है। ऐसे कार्यक्रम बनाने होंगे जिससे किशोरों को लिंग और यौन सम्बन्धी विषयों पर ज्ञान दिया जा सके क्योंकि किशोरावस्था ही ऐसी अवस्था है कि इसमें अगर किशोर गलत राह पर चला जाएं तो उसका सम्हलना मुश्किल है।

सरकार ने ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने के बारे में स्वयंसेवकों और भी अनेक व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया परंतु समस्या यह है कि भारत में इस प्रणाली को दोषपूर्ण समझा जाता है फिर भी सरकार काफी संधर्ष शील है।

 

एड्स रोकने के प्रयास || Measures taken to stop AIDS ||

वैज्ञानिक यह मालूम करने का प्रयास कर रहे हैं कि इस विषाणु की कौन सी जीन किस प्रोटीन का निर्मण करती है और कथित प्रोटीनों का क्या काम है। प्रोटीन, निर्माण सामग्री है। एड्स विषाणु टी-4 किस्म की श्वेत रक्त कोशिकाओं को ही विशेष तौर पर नष्ट करता है। अमरीकी. वैज्ञानिक राबर्ट गैलों ने पता लगाया है कि अगर एड्स विषाणु की ट्रांस एक्टिवेशन जीन (टेट जीन) को किसी उपाय से बेकार कर दिया जाए तो एड्स विषाणु अपनी सख्या में वृद्धि नहीं कर सकता। टेटजीन एक ऐसी विशेष प्रोटीन का संश्लेषण करती है, जो विषाणु के टेट-जीन समूह (जी नोम) की प्रारंभिक लांग टर्मिनल रिपीट(एल.टी,आर) के एक खास हिस्से को उद्मेरित करती है। एल.टी.आर.का यह खास उद्येरित हिस्सा' ही विषाणु की अन्य जीनों को सक्रिय करता है। एल:टी.आर. और जीन को छोड़कर अन्य जीन्स ही नए विषाणु की शरीर रचना की पांडुलिपियां हैं। अगर भावी अनुसंधान से कोई ऐसा रसायन मालूम हो जाए जो टेट-जीन को नकारा कर दे तो विषाणु के प्रारंभिक संक्रमण के समय ही उसे खत्म किया जा सकता है। टेट-जीन के बिना विषाणु अपनी संख्या में चृद्धि नहीं कर सकता इस बात की जांच करने के लिए फौल्सी वांगस्टाल मैंडी फिशर ने विष्णु की टेट-जीन को संपूर्ण जीन-श्रृंखला से हटा दिया। बाकी बची जीनों समेत विषाणु जब इसके मन-पसंद निवास टी-4 कोशिका पर छोड़ा गया तो यह मालूम हुआ, कि टेट-विहीन विषाणु विभक्त नहीं हुआ। पुनः फिशर ने कृत्रिम रूप से निर्मित अथवा संश्लेषित टेट-जीनका टुकड़ा मित्रा दिया तो नए विषाणु का निर्माण करनेवाली एक पी 5 प्रोटीन दिखाई दी इसका अर्थ यही है कि टेट-जीन नए विषाणु के जन्म का संदेश अपने अंदर छिपाए हुए हैं।

एड्स रोकने के उपाय || How to stop AIDS ||

एड्स के प्रसार को रोकने की अब तक की विफल लड़ाई मेंवैज्ञानिकों को केवल एक ही उल्लेखनीय सफलता हाथ लगी है, और वह है, रक्तदान करनेवालों के खून में वायरस के ज्ञक्षणों का पत्ता लगाने के लिए परीक्षणों में तेजी से विकास | अमेरिका में एड्स के लगभग 2 प्रतिशत मामले खून चढ़ाने (ट्रांसफ्यूजियन) में इस्तेमाल किए जानेवाले खून में विकार के कारण होते हैं। और इस कारण से मरनेवालों की संख्या काफी है। आज अमेरिका के साथ-साध कई अफ्रीकी देशों में भी जहां एड्स का प्रकोप है, एड्स रोगियों तथा इस रोग से संबद्ध लोगों को व्यापक भेदभाव तथा घृणा ब तिरस्कार का सामना करना पड़ रहा है। विशेषज्ञों का मत है कि एड्स की रोकधाम के लिए न केवल चिकित्सा बल्कि आम जनता को भी शिक्षित किया जाना चाहिए। डॉक्टर को एड्स से संबंधित नवीनतम जानकारी और निरंतर चल रहे शोध व उसके परिणामों से अवगत कराया जाना चाहिए। अस्पतालों में भी इस बात का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए कि प्रयोग में लाई जाने वाली सिरिंज और सूइयां अच्छी तरह धोकर उबाली जाएं, ताकि वे संक्रमण के प्रभाव से मुक्त हो सकें। 'डिस्पोजेबल' अर्थात्‌ एक बार प्रयोग करने के बाद फेक दी जानेवाली सिरिंजों का इस्तेमाल करना और भी अच्छा रहता है। इसके अतिरिक्त पेशेवर रक़्तदाताओं या अन्य व्यक्तियों का खून लेने से पहले उनकी एड्स के लिए जांच की जानी चाहिए। आम लोगों को विशेषज्ञों की सलाह है कि वे स्वच्छंद संभोग से बचें। अपरिचित व्यक्तियों से शारीरिक संबंध न रखें और कण्डोम का इस्तेमाल करें। एड्स की रोगी महिलाओं को मां न बनने की सलाह दी जाती हैं इस रोग से डरने की नहीं बल्कि लडने को जरूरत है केवल एड्स रोग के रोगियों को ही अस्पताल मे भर्ती होने की जरूरत होती है एच आई वी से सक्रमित सभी रोगियों को अंतरंग उपचार की जरूरत नहीं होती। भिन्न-भिन्न तरह की शिकायतें लेकर बहिरंग रोगी विभाग में आने वाले रोगियों का संबंधित चिकित्सालयों द्वारा लाक्षणिक उपचार प्रदान किया जाता है।

एड्स को रोकने के लिए मध्यावधि योजना || Planning to Stop HIV infection in Hindi ||

भारत सरकार ने एड्स को रोकने के लिए मध्यावधि योजना तैयार की है। इस मध्यावधि में देश के निर्धारित मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में एड्स संक्रमित रोगियों के उपचार के लिए बर्तमान सुविधाओं को सुदृढ़ बनाने का निर्णय लिया है। ये सुविधाएं निम्न प्रकार हैः

  1. बहिरंग रोगियों को निरन्तर चिकित्सा परिचर्या प्रदान करना।
  2. एच.आई.वी. रोगियों की देखभाल में चिकित्सा एवं अर्ध चिकित्साकर्मियों को प्रशिक्षण की सुविधाएं प्रदान करना।
  3. एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्तियों को शयनिक परिचर्या
  4. रोगियों तथा उनके पत्ति/पत्तियों तथा अन्य सगे सम्बन्धियोंको सलाह देना।
  5.  क्लीनिकल प्रोफाइल, इम्यूनोलोजीकल प्रोफाइल, अवसरवादीसंक्रमण तथा एच,आई.वी. संक्रमण के अन्य प्रमाणों संबंधी आंकड़े एकत्र करना।

एड्स के प्रसार को रोकने के लिए तीन वर्ष की अवधि के लिए एक मध्यवधि योजना बनाई गई | इस योजना के लक्ष्य इस प्रकार हैः

  1. सुरक्षित रक्त आपूर्ति के लिए प्रयल करना। रक्त एवं रक्तउत्पादों को संचारण विधि से दिए जाने के लिए यदि सुरक्षित रूप से उपलब्ध करा दिए जाएं तो एच,आई.वी. संक्रमण प्रसार को नियंत्रितकिया जा सकता है।
  2. एड्स के संदिग्ध रोगियों का प्रारंभिक अवस्था में पत्ता लगाना
  3. एच आइ वी. सक्रमण के व्यक्ति को होने वाले सामाजिक व आर्थिक आधात को हल्‍का करने के प्रयास करना

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रसारित ध्यान रखने योग्य बातें || WHO Guidelines on AIDS ||

एच.आई.वी. संक्रमण किस प्रकार रोका जा सकता है इसके लिए रोग प्रसार के कारणों के विषय में ज्ञान होना आवश्यक है। एच.आई.बी. संक्रमण मैथुन क्रिया द्वारा फैलता है-पुरुष से महिला को, महिला से पुरुष एवं पुरुष से पुरुष को फेल सकता है। यह रक्त माध्यम से भी फैलता है। संक्रमित रक्त संचारण करने से यह एक ही सुई व सीरिंज से एक से अधिक लोगों को इंजेक्शन लगाने से भी फैलता है। एच.आई.वी संक्रमित माताओं के माध्यम से नवजात शिशुओं को जन्म से पूर्व, जन्म से समय एवं जन्म के बाद यह संक्रमण हो सकता है।

एड्स सम्पूर्ण विश्व की समस्या है क्योंकि यह हर समाज एवं क्षेत्र में पहुंच सकता है। युवा एवं प्रीढ़ों में मैथुन क्रिया व रक्त माध्यम से तथा शिशु में संक्रमित माँ द्वारा एड्स फैलता है। मैथुन क्रिया से जनित एच.आई.वी. संक्रमण प्रसार रोका जा सकत्ता है। सबसे प्रभावी विधि है केवल असंक्रमित जीवन साथी के साथ ही यौन सम्बन्ध रखे जाएं। वैश्यावृति या व्यभिचर पूर्ण लोगों से कदापि शारीरिक सम्बन्ध स्थापित नहीं किए जाएं। सक्रमण संभावित व्यक्ति के साथ मैथुन क्रिया के समय प्रारम्भ से अन्त तक अच्छे किस्म के निरोध का उपयोग अवश्य करें। हमें यह भी ज्ञान होना चाहिए कि एच.आई.वी. संक्रमण किन माध्यमों से नहीं फैलता है।


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