एड्स से बचाव के उपाय || Preventive measures from AIDS in Hindi||

 

एड्स से बचाव के उपाय || Preventive measures from AIDS||

विषय ज्ञान, आत्म-अनुशासन एवं सामान्य बोध एड्स के विरुद्ध सर्वोत्तम शस्त्र हैं। इसके अतिरिक्त रोगी को सांत्वना देनातथा उसके साथ अच्छा व्यवहार भी रोग बचाव में सहायक हैं। एड्स रोगी की चिकित्सा के लिए विश्व के अनेक देशों में वैज्ञानिक अनुसंधान कर रहे हैं । लेकिन, अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है। चार-पांच वर्षो मे एड्स की चिकित्सा संभव हो सकेगी । अभी तक चिकित्सा विशेषज्ञ एड्स की कुछ विकृतियो को रोक पाते हैं, लेकिन कुछ समय वाद विकृतियां उभर आती हैं। कुछ सीमा तक ग्रथियों के शोध को कम किया जा सकता है। एंटी बायोटिक्स औषधियों और दूसरी चिकित्सा विधियों से रोग पर कुछ नियंत्रण रखा जा सकता है। लेकिन रोग, प्रतिरोधक शक्ति को दोबारा विकसित नहीं किया जा सकता।

एड्स  से बचाव के उपाय || Preventive measures from AIDS in Hindi||

एड्स  में अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण || Bone marrow transplantation in AIDS||

प्रारंभ में अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण द्वारा रोग प्रतिरोधक शक्ति को आंशिक विकसित करने में सफलता मिल्री थी। लेकिन बाद में एड्स के विषाणुओं के प्रभाव को रोकने में सफलता नहीं मिली। सुरामिन, एच.पी.ए.-28 और राइवावाइरिन औषधियों का उपयोग भी एड्स को नष्ट करने में सफल नहीं हो सका। इन औषधियों से आंशिक लाभ होता है, लेकिन रोग फिर तीव्र गति से उभर आता है। एच.टी.एल.बी-8 विषाणु पर अनुसंधान किए जा रहे हैं। लेकिन अभी तक किसी औषधि से एड्स की निश्चित संभावना को कम नहीं किया जा सका है। ऐसी स्थिति में एड्स सुरक्षा् ही सबसे उपयोगी चिकित्सा है। महानगरों मे विदेशों से बहुत पर्यटक आते हैं। ऐसे पर्यटक, कॉलगर्ल व वेश्याओं से संपर्क रखते हैं। विदेशियों के यौन संबंधों में लगी नवयुवतियां एड्स की रोगी बनती हैं। वेश्यावृत्ति सामाजिक रूप से अनैतिक कार्य है। इस कुकृत्ति से एड्स न सही, दूसरे यौन-रोग भी लग सकते हैं। मादक द्रव्यों के इंजेक्शन द्वारा शरीर में पहुंचाने की क्रिया से पूरी तरह अलग रहना आवश्यक है। विदेशों से आए पुराने वस्त्रों का उपयोग करने से पहले उन्हें अच्छी तरह स्वच्छकर लेना चाहिए। क्योंकि विशेषज्ञों ने पसीने में भी एड्स के विषाणुओं की उपस्थिति बत्ताई है। पौष्टिक व संतुतित आहार से शरीर मे रोग प्रतिरोधक शक्ति बनाए रख सकते हैं। अस्पतालों में डॉक्टर व नर्सों को भी अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है। किसी एक व्यक्ति को इंजेक्शन लगाने के बाद पूरी सिरिंज को अच्छी तरह जल में जीवाणु नाशक औषधियोंके साथ उबालकर स्वच्छ कर लेनां चाहिए। जहां तक संभव हो डिस्पोजेबल सिरिज उपयोग करें। इससे एड्स की संभावना नहीं रहती है क्योंकि इस सिरिंज का दूसरी बार उपयोग नहीं किया जा सकता। एड्स रोग से पीड़ित स्त्रियों को गर्भधारण नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे उनके बच्चे को एड्स होने की पूरी संभावना रहती है। थोड़ी सी सावधानी और बुद्धि से आप 'एड्स' जैसे भयंकर व घातकरोग से पूरी तरह सुरक्षित रह सकते हैं। परिवार में विदेश से आने वाले स्त्री-पुरुषीं के भी रक्‍त का परीक्षण कर इस रोग से सुरक्षा की जा सकती है।

एड्स  में प्रेक्षा -साधना कैसे करें || How to Meditate in AIDS ||

प्रेक्षा-साधना पद्धति ने मनुष्य की वृत्तियों पर ध्यान केन्द्रित कर उसके समाधान का प्रयत्न किया है। उसके परिणाम सुखद आए हैं। जिन कारणों से व्यक्ति प्रवित्तयों मे फैंसकर भर्यकर बीमारी से अपना अहिंत करता है। उसके निवारण के उपाय हैं-का्योत्सर्ग (शिथिलीकरण), प्रेक्षा-ध्यान, इच्छा-निरोध एवं अपने सामर्थ्य को पहचानने का अवसर प्रदान करना। तनाव मुक्ति के लिए कायोत्सर्ग (रिलेक्स) का प्रयोग विलक्षण है। कायोत्सर्ग शरीर के तनावों को विसर्जित करता है जिससे स्वयंमेवव्यक्ति अकृत्य से मुड़कर स्वास्थ्य को उपलब्ध हो जाता है। कायोत्सर्गका यह प्रयोग व्यक्ति रात्रि शयन के समय जब वह बिस्तर पर लेटने की तैयारी करता है उस समय शरीर को पूरी तरह से तनाव मुक्त कर, आंखें मूंद ले ।श्वास भीतर जाए तब शरीर के कण-कण में शान्ति का अनुभव करें । श्वास छोड़े तब चारों ओर कमरे में शांति के बादल फैल रहे हैं ऐसी भावना करें इससे न केवल तनाव-मुक्ति होगी अपितु एक नएजीवन का संचार भी होगा । नींद शहरी और शांत होगी स्वप्न नहीं के बराबर रहेंगे। स्वभाव परिवर्तन होने लगेगा साथ ही स्मरण-शक्ति विकसित होने लगेगी। व्यक्ति को जीने की एक नई दृष्टि उपलब्ध होगी। बह अप्राकृतिक एवं अमानवीय प्रकृतियों में संलग्न नहीं हो सकता अतः इससे एड्स जैसी बीमारी हो ही कैसे सकेगी ? अर्थात नहीं होगी। प्रेक्षाध्यान का एक प्रकार चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा है। इसके प्रयोग से व्यकित में रासायनिक परिवर्तन होने लगता है, जिससे उसकी सुरक्षा-शक्ति बढ जाती है। एड्स विषाणु शरीर में फैलकर बीमारी पैदा कर सकें, उनकी ऐसा अवसर भी उपलब्ध नहीं हो सकता। दीर्घ श्वास समवृत्ति श्वास प्रेक्षा रक्त का शोधन करती है जिससे चित्त की निर्मलता के साथ रक्त का शोधन होता है। नशीले पदार्थों के सेवन में भी तनाव केंद्र में रहता है। कानों के भीतर तथा नीचे के हिस्से पर चित्त को एकाग्र कर प्रेक्षाकरने से नशे की इच्छा का विरोध होने लगता है।

एड्स  में स्वास्थ्य शिक्षा || Awareness about AIDS ||

स्वास्थ्य शिक्षा के लिए निम्नलिखित समूह हमारे लक्ष्य होने चाहिएः

  1. किशोरावस्था : इस आयु समूह में आने वाले व्यक्तियों में एड्स रोग से ग्रसितहोने की संभावना अधिक होती है। किशोरावस्था में यौनाचार के प्रति ललक एवं मादक दवाओं की ओर रूझान होना एक आम बात हो गई है। किशोरों को इस बात का बोध होना चाहिए कि इन कार्यों के करनेके क्या परिणाम हो सकते हैं। अतः उच्च माध्यमिक एवं महाविद्यालय के विद्यार्थियों को यौन रोगों एवं एड्स के विषय में व्याख्यान, चर्चा,वार्ता से शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि उन्हें इन रोगों से होने वाली हानियों का बोध हो सके। उपरोक्त वर्णित माध्यमों से इस बात भी जोर दिया जाना चाहिएकि व्यक्ति एक विश्वासी साथी से ही यौन संबंध रखे।
  2. बहु यौन संबंध एव वेश्यावृत्ति करने वाली स्त्रियों से यौन संबंध न रखे जाएं। बहु यौन संबंध रखने वाले व्यक्ति यदि कोई व्यक्ति आत्म सयम न रख सके तथा एक से अधिक के साथ यौन संबंध रखे तो उसे निरोध उपयोग में लाने एबं यौन साधियों में कमी करने की सलाह दी जानी चाहिए जिससे कुछ बचाव हो सकें। लेकिन ऐसे व्यक्तियों को यह साफ तौर से बता दिया जाना चाहिए कि निरोध का उपयोग भी अधिक सुरक्षित नहीं है।
  3. अन्तः शिरा मार्ग से दवाओं का प्रयोग करने वाले अन्त'शिरा मार्ग से दवाओं एवं मादक द्र॒व्यों का उपयोग करने वाले आदतन व्यक्तियों को मंत्रणा दी जानी चाहिए कि वे दूसरे व्यक्तियों द्वारा उपयोग में लाई सुई व सीरिंज का उपयोग न करें। ऐसे व्यकितयों का पुनर्वासन किया जाना चाहिए। उन्हें अच्छी तरह इस बात का अहसास व विश्वास दिलाया जाना चाहिए कि इस विधि से दवाओं के सेवन से एड्स जैसे जान लेवा बिमारी के शिकार हो सकते हैं। सूई व सिरिंज को उपयोग में लाने से पूर्व उन्हें भली प्रकार निस्संक्रमित कर लें।

यौन रोगों से पीड़ित व्यक्ति एवं वेश्याएं

उन व्यक्तियों को शिक्षा दी जानी चाहिए जो यौन संबंधी रोगों के लिए निदान केन्द्रों पर उपचार हेतु जाते हैं। वेश्याओं को भी शिक्षा दी जानी चाहिए कि वे उनके पास आने वाले ग्राहकों को निरोध प्रयोग करने पर जोर दें ताकि एड्स संक्रमण से बच सके तथा एच.आई.वी.संक्रमण प्रसार भी रोका जा सके। प्रत्रजन करने वाले व्यक्ति उन व्यक्तियों को शिक्षा दी जानी चाहिए जो अपने परिवार से दूर रह कर कार्य करते हैं एवं स्थान-स्थान पर घूमते रहते हैं तथा बहुत यौन संबंध रखते हैं जैसे नाविक, ट्रक ड्राइवर आदि। रक्त संचारण लेने वाले व्यक्ति एड्स संक्रमण रक्त के माध्यम से रोग ग्रसित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति तक पहुंच सकता है। यह प्रायः उस समय होता है जब किसी व्यक्ति को रक्त संचारण किया जाता है। रक्त संचारण के लिए रक्त लेने से पहले रक्त दाता का एच.आर.वी. के लिए परीक्षण किया जाना चाहिए एवं सुई व सीरिज अच्छी तरह से निश्संक्रमित की जानी चाहिए

 

पैसा कमाने के लिए रक्तदान से एड्स 

पैसा कमाने के लिए नियमित रूप से रक्त का उपयोग नहीं करना चाहिए। स्वेच्छा से रक्त देने वाले दाताओं का रक्त काम में ज्ञाना चाहिए। रक्त लेने से पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि रक्‍त देने वाला व्यक्ति संक्रामक रोगों-हिपेटाइटिस, सिफलिस, गनोरिया,पीलिया आदि से ग्रसित न हो। रक्त दान करने वाले व्यक्ति को किसी प्रकार का ज्वर भी नहीं होना चाहिए।

एड्स संक्रमण से ग्रसित रोगी के लिए सावधानियां || Precaution for HIV patient ||

  1. एच आई.वी. संक्रमण से प्रभावित व्यक्तियों को निम्नलिखित सावधानियों पर ध्यान देना चाहिए।
  2. घर में रह कर कार्य करें
  3. अपना रक्त दान न करें
  4. अपना रेजर तथा टूथब्रश किसी अन्य व्यक्ति को काम में न लेने दें
  5. किसी अन्य संक्रमण के होने पर उपचार कराने से पूर्व एच.आई.वी. संक्रमित होने के विषय में अपने चिकित्सक को बता दें।
  6. अपने यौन साथी को बता दें कि वह एच.आई.वी. संक्रमण सेग्रसित है व उचित बचाव उपाय काम में लें।

ऐलिसा परीक्षण क्या है || What is Elisa test ? ||

एड्स संक्रमण से प्रभावित व्यक्ति के रक्त परीक्षण से यह निश्चित किया जा सकता है कि उसके शरीर में एच.आई.वी. के प्रति प्रतीकाय विद्यमान है या नहीं। प्रतीकाय परीक्षण तीन प्रक्रमों में किया जाता है। ऐलिसा परीक्षा के लिए रक्त का नमूना लिया जाता है, यदि यह धनात्मक पाया जाता है तो दूसरा ऐलिसा परीक्षण किया जाता है। यदि यह भी घनात्मक हो तो वेस्टर्न ब्लॉट परीक्षण किया जाता है। यह ध्यान रखा जाय कि यह सभी परीक्षण पूर्ण प्रमाणित नहीं होते हैं। एक प्रशिक्षित चिकित्सक को चाहिए कि वह इन परिणामों को प्रत्येक व्यक्ति के लिए घनात्मक व ऋणात्मक रूप से ही बताए। परीक्षण घनात्मक आने पर उस व्यक्ति के लिए कहा जा सकता है कि वह एच.आई.वी. से संक्रमित है। लेकिन यह आवश्यक नहीं कि वह एड्स रोग से ग्रसित हो। एक बार संक्रमित हो जाने पर वह व्यक्ति जीवन के शेष समय तक संक्रमित बना रहता है। उसे उन उपायो के विषय में बता देना चाहिए जिससे वह सक्रमण को औरों में न फैलाए। दोस्तों, परिवार के सदस्यों आदि के साथ सामान्य सम्पर्क या स्पर्श से सक्रमण नहीं फैलता। परीक्षण पर प्रतीकाय के विद्यमान न होने पर यह कहा जा सकता है कि वह व्यक्ति एच.आई.वी. से संक्रमित नहीं है। लेकिन यह ध्यान रखना होगा कि यदि वह व्यक्ति परीक्षण पूर्व के अन्तिम दिनों में उच्च क्षतिभय क्रियाओं में शामिल था तो उसे एच,आई.वी. संक्रमण हो सकता है। विषाणु घनात्मक व्यक्ति को अपना नियमित परीक्षण कराते रहना चाहिए। उसे चाहिए कि वह रक्त, शरीर के अग या अन्य ऊत्तकों को किसी अन्य व्यक्ति के लिए दान में न दें। उसे चाहिए कि वह अपने शरीर के स्रवित द्रवों-वीर्य, यौनी स्राव आदि को दूसरों से विनियमित न करें। यौन सम्भोग के समय निरोध का उपयोग अवश्य करे। यद्यपि इस विधि से पूर्ण बचाव तो संभव नहीं है। उसे चाहिए कि उसके द्वारा उपयोग में लाई गई सूई, सीरिंज, रेजर, ब्लेड आदि दूसरोंको उपयोग में न लाने दे।

एड्स के विषाणु को कैसे निष्क्रिय करें ? || How to destroy AIDS virus ||

विषाणु निम्नलिखित रसायनों के सम्पर्क में 10 मिनट तक आनेपर निष्क्रिय हो जाता है : फॉरमॉल 0.5% ग्ल्यूटारलडिहाइड ] %एलकोहल 50% सोडियम हाइपोक्लोराइड / उच्च संक्रमित वस्तुओं के सम्पर्क में आए पदार्थों को इन द्रव्यों से निस्संक्रमित तथा स्वच्छ किया जा सकता है। स्वास्थ्य कार्यकर्ता यह रोग संक्रमण के लिए सुग्राही समूह है। अतः सभी कार्यकर्ताओं को वृहद स्वास्थ्य नियमों का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए । स्वास्थ्य कार्यकर्ता जो संभावित एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्तियों के रक्त के सम्पर्क में आ सकता है उसे सावधानी रखनी चाहिए विशेष रूप से स्वयं की श्लेष्म कला वाले अंगों को बचाने का प्रयास करना चाहिए। संक्रमित व्यक्ति के रक्त, शारीरिक द्रव, श्लेष्म कला, कटी-फंटी त्वचा, रक्त व शारीरिक द्रव से भीगे वस्त्र, सिरावेधन आदि कार्यो को करते समय कार्यकर्ता को ग्लोव्स पहनने चाहिए। ऐसे प्रत्येक व्यक्ति की सेवा करते समय ग्लोव्स का उपयोग किया जाना चाहिए। संक्रमित व्यक्ति के ऐसे कार्य करते समय जिनमें रक्त आदि निकलने का अंदेशा हो नाक, आंख, मुख आदि की श्लेष्मकला को सुरक्षित रखने के लिए मास्क, आंखों पर चश्मा आदि का उपयोग किया जाना चाहिए। संक्रमित व्यक्ति की देखभाल के तुरंत बाद कार्यकर्ता को अपने गलोव्स व हाथ आदि साबुन व गर्म पानी से साफ कर लेने चाहिए तथा निस्संक्रमित करने चाहिए।

एड्स का उपचार || Treatment of AIDS ||

एड्स संक्रमण का प्रभाव केवल मनुष्य के शारीरिक स्वास्थ्य पर ही नहीं होता बल्कि यह मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक रूप से भी मनुष्य को प्रभावित करता है। अतः यह आवश्यक होगा कि एड्स के रोगी का उपचार करते समय औषधियों के साथ-साथ उसे अच्छा पौष्टिक आहार देते हुए उसके प्रति प्रेम एवं सहानुभूति भी दर्शाएं। एड्स रोगी का उपचार करते समय तीनों ही विधियों को उपयोग में लाना होगा।

ये विधियां हैं-विशिष्ट,अविशिष्ट,पोषक।

  1. विशिष्ठ उपचार : एच.आई वी. संक्रमण के उपचार के लिए ऐंटी रेट्रोवायरस की आवश्यकता है जो आर.एन.ए.-डी.एन.ए. क्रम को फिर से डी.एन.ए.-आर.एन.ए. क्रम में परिवर्तित कर सके। इस दिशा में अनेकों प्रयोगात्मक प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन कोई ऐसी उपयोगी दवा नहीं बन पाई है जो एच.आई.वी. संक्रमण को पूर्ण प्रभावी ढंग से रोक सकें। अभी तक जिन दवाओ या योगिकों का पता चल सका है वे निम्न प्रकार है
  2. घुलनशील सी.डी. 4 : इस दवा का परीक्षण अभी चल रहा है। यह एच.आई.वी. Co -56 बाध लेती है तथा विषाणु ग्रहण करने वाली कोशिकाओं एवं सक्रमण को रोकने से सक्षम हैं
  3. ए.जेड.ठी. (जाइडोबुडीन) : यह एंटी रेट्रोवायरस दवा है एवं प्रभावी भी है। इसकी मात्रा 100 मि.ग्रा. प्रति चार घंटे से मुख द्वारा दी जाती है। यदि यह मात्रा सहन नहीं हो तो इसे कम किया जा सकता है तथा 100 मि.ग्र. प्रति चार घंटेकी दर से दी जा सकती है। एक विचार के अनुसार कम या अधिक मात्रा में दवा दी जाने पर भी प्रभाव लगभग एक सा ही होता है तथा कुप्रभाव कम होते हैं। कुप्रभावरोगी व्यक्ति के शरीर पर ए.जेड.टी. के मुख्य कुप्रभाव इस प्रकारहैं; अस्थी मज्जा का विलोपन जिसके फलस्वरूप रकताल्पता की अवस्था उत्पन्न हो जाती है। इसके अतिरिक्त न्यूट्रोपीनिया एवं जठरांत्रीय असहिष्णुता इस औषधि के कुप्रभाव हैं। औषधि की मात्रा कम करनेसे इन कुप्रभावों को नियंत्रित किया जा सकता है।
  4. डी.डी.सी (डी अक्सी-साइटीडिन) -इसका परीक्षण चल रहा है। इसे ए.जेड.टी. के साथ मित्रा कर देने से अधिक प्रभावकारी होती है। डी.डी.आई. (डाइ डी ऑक्सिनो)-इसका भी परीक्षण चल रहा है। यह काफी अच्छी दवा अच्छी है । टीबो--अभी तक की उपलब्ध सभी दवाओं में से इसके परिणाम सबसे अच्छे है इसके प्रभाव से शरीर मे एडस के विषाणु की वृद्धि रुक जाती अभी तक किसी विशेष लाभकारी ठवा का पता नहीं लग पाया है जो एड्स ग्रसित रोगी को सही अवस्था में ला सके तथा शरीर को एड्स विषाणुओं से मुक्त करा सके।

अवसरवादी संक्रमणों की उपस्थिति में उपचार

इन औषधियों के साथ-साथ एड्स ग्रसित व्यक्ति को अवसरवादी बीमारी जिससे वह ग्रसित हो, से संबंधित औषधियां दी जानी चाहिए ।जैं से न्‍यूमोसिस्टिस करिनी (निमोनिया की अवस्था) मेंट्राइमिथोप्रिम सल्फामिथोक्साजोल 75-20/70-700/कि.ग्रा, प्रतिदिन मुख से दिन में 3-4 बार लगभग 5 सप्ताह तक दी जाए। अन्तः मार्ग से यह मात्रा प्रतिदिन 150 मि.ल्ली. 5% डेक्स्ट्रोज के साथ 6 घंटे के अन्तराल से 5 सप्ताह तक दी जानी चाहिए। इन औषधियों के कुछ कुप्रभाव होते हैं जैसे ल्यूकोपीनिया, थोम्बोसायटोपीनिया, ज्वर, सर्वपिका यकृत्कोष आदि। ऐसी अवस्था में इन औपधियों को देना बन्द कर देना चाहिए तथा अन्य औषधि पैन्टामीडीन इजेथियोनेट की एक मात्रा 4 मि.ग्रा.कि.ग्रा शारीरिकवजन के अनुसार 250 मि.ग्रा. 5% डेक्स्ट्रोज में अन्तःपेशीयमार्ग से 3 सप्ताह तक दी जानी चाहिए। इस औषधि के भी कुछ कृप्रभाव हैं जैसे एजोटीनीया, ज्यूकोपीनीया, धरोम्बोसायटोपीनीया, एवं निम्न रक्तचाप।

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