एड्स के विषाणु का परिचय || Introduction of AIDS virus in Hindi ? ||

 

एड्स के विषाणु का परिचय || Introduction of AIDS virus in Hindi ? ||

विषाणु अति सूक्ष्म जीव है जिसे सामान्य सूक्ष्म-दर्शक यंत्र से नही देखा जा सकता। इनको देखने व पहचानने के लिए इलेक्ट्रोन सूक्ष्मदर्शक यंत्र का उपयोग किया जाता है। यह प्राणियों एवं वनस्पतियों मेंरोग फैलाते हैं। इनमें रोग उत्पन्न करने, आक्रमण करने तथा रोगरोधक्षमता उत्पन्न करने की शक्ति होती है।

एड्स के विषाणु का परिचय

ये विभिन्‍न प्रकार के रोगउत्पन्न करते है। इनका आकार गोल, द्वितयगोलक, आयताकार या दण्डाकार होता है। अतिसूक्ष्म होने के कारण ये निस्यंदकों से निकल जाते हैं। इनकी जीवन क्षमता एवं प्रतिकारक शक्ति साधारण तृणाणुओं जैसी होती है। सूर्य का प्रकाश, ताप और द्रव्य इन्हें शीघ्र नष्ट कर देते है। तृणाणुओं की अपेक्षा रासायनिक द्रव्यों में इनकी प्रतिकारक शक्ति अधिक होती है। बर्फ जैसी शीत में तथा शुष्कीकरण में ये निष्क्रिय नहीं होते हैं। इनका शरीर ही विषैला होता है जो रोग उत्पन्न करता है। इनसे उत्पन्न रोग बहुत संक्रमित होते हैं और अति शीघ्र फैलते हैं। विषाणु निम्न माध्यमों से संक्रमण फैलाते हैं

  • प्रत्यक्ष सम्बन्ध से
  • कीटकदंश वाहक से
  • आरपार मार्ग से
  • दूषित खाद्य एवं पेय पदार्थ से

रोगरोधक क्षमता विषाणुओं से एक बार संक्रमित होने पर व्यक्ति के शरीर में रोगरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है जिसे रक्षक प्रतियोगी कहते हैं।

एड्स के विषाणु की क्षमता || Capability of AIDS virus in Hindi ||

विषाणु क्षमता में निम्नलिखित विशेषताएं होती है-

  1. यह दीर्घकालीन और आजीवन हो सकती है।
  2.  यह अल्पकालीन या नहीं के बराबर हो सकती है।
  3. किसी-किसी रोग में किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं होती है। विषाणु में पूरे शरीर पर आक्रमण कर उसे अस्वस्थ बनाने की क्षमता नहीं होती है। वह शरीर के विशेष अंगों पर ही आक्रमण कर उसे प्रभावित करता है।
  4.  विषाणु संक्रमण के साथ-साथ तृणाणु संक्रमण से अवस्था और जटिल हो जाती है जिससे व्यक्ति की मृत्यु तक हो जाती है।
  5.  विषाणु अपनी बृद्धि कोषाओं के अंदर करते हैं। इस कारण इन्हे साइंटोबीपिक कहते है। अतः विषाणु एक ऐसा अतिसूक्ष्म जीव है जो विशेष जीवित कोषा में प्रवेश करने में सक्षम है।


एड्स के विषाणु की संरचना || Structure of AIDS virus in Hindi ||

विषाणु न्युक्लिक अम्ल एवं प्रोटीन का बना होता है। प्रोटीन विषाणु का रक्षक आवरण बनाता है जिसे केप्सिड कहते हैं। प्रोटीन की उपइकाइयों को केप्सोमीयर्स तथा प्रोटीन से घिरे न्‍युक्लिक अम्ल को न्यूक्लिओ केप्सिड कहते हैं। न्यूक्लिक अम्ल आर.एन.ए. या डी.एन.ए. हो सकता है। प्रोटीन एवं न्यूक्लिक अम्ल का अनुपात भिन्न-भिन्न विषाणु में भिन्न होता है। न्यूक्लिक अम्ल का प्रतिशत 5-40 जबकि प्रोटीन का प्रतिशत प्रायः 95-60 होता है। विषाणु प्रोटीन विभिन्न प्रकार के 20 एमीनो अम्ल का बना होता है। न्यूक्लिक अम्ल संघटक के आधार पर विषाणुओं को चार मुख्य वर्गों में विभक्त किया जासकता है।

वनस्पति विषाणु (केवल आर.एन-ए)

पृष्ठवंशी विषाणु (डी.एन.ए. या आर-एन.ए.)

कीट विषाणु (डी.एन.ए. या आर.एन.ए.)

तृणाणु भक्षक विषाणु (केवल डी.एन.ए.)

एच.आई.वी. (ह्यूमन इम्यूनो डैफिसेंसी वायरस) क्या है ? ||What is HIV? ||

एड्स विषाणु लेन्टी वायरस समूह का रिट्रोवायरस विषाणु है जिसे एच.टी.एल.वी. 3 (ह्यूमन टी-सेल लिम्फोट्रफिक विषाणु) के नाम से जाना जाता थधा। अब इसे एच.आई.वी. (ह्यूमन इम्यूनो डैफिसेंसी वायरस) के नाम से जाना जाता है। सर्वप्रथम इस विषाणु के विषय मे अमेरीका की नेशनल केन्सर इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों ने पता लगाया था। उन्होंने कुछ रोगियों के टी-सेल में एच.टी.एल.वी. के कण देखे। एच.टी.एल.वी. विषाणु होते हैं जो (बाद में एच.आई.वी. के नाम से जाने गए)। एच.टी.एल. वी-8 से रोगकारक शक्ति, कोष पर प्रभाव एवं प्रतिरक्षात्तक विशेषताओं से भिन्न हैं। एच.आई.वी. विषाणु का जननिक द्रव्य अन्य एच.टी.एल.वी. जैसा ही है तथा आकार व आकृति भी वैसी ही है। विषाणु एक केन्द्रक तथा न्यूक्लियो प्रोटीन का बना होता है। न्यूक्लियो प्रोटीन एक ही प्रकार का होता है अर्थात राइबोन्यूक्लियोप्रोटीन (आर.एन.ए.) या डी-ऑक्सी रीबो न्यूक्लियो प्रोटीन (डी.एन.ए.) केन्द्र प्रोटीन के शल्क (कवच) में लिपटा होता है। इस शल्क कोविषाणु केप्सिड कहते हैं सम्पूर्ण विषाणु कण को विरियोन कहते है।


विषाणुओं के प्रकार || Types of Virus in Hindi ||

विषाणुओं को उनके आकार, आकृति तथा प्रतिवलन विधि के अनुसार अलग-अलग वर्गों में विभक्त कर सकते हैं। वर्गीकरण की प्रचलित विधि विषाणु में विद्यमान न्यूक्लियों प्रोटीन की किस्म पर निर्भर करती है अर्थात उनमें आर.एन.ए. है या डी.एन.ए.। एड्स कारक विषाणु एच.आई.वी. आर.एन.ए. विषाणु है। विषाणु का एक बाहरी आवरण होता है जिस पर बाहर की ओर निकले अनेकों डंठल होते हैं जो लिपिह की झिल्ली के अन्दर तक धंसे होते हैं। इसमें लिपिड (ग्लाइको प्रोटीन) के दो स्तरों से बनी झिल्ली(परत) होती है इसकी सतह पर टोपी लगी फफूंद के समान आकृतियां होती हैं। बाहरी आवरण से कुछ दूरी पर पी-7 प्रोटीन का बना एक फलकनुमा खोल होता है। केन्द्रक घुमावदार होता है तथा पी-24 प्रोटीन का बना होता है। आणविक संरचना एच.आई.वी. से संक्रमित कोषा के अति सूक्ष्म अनुभाग से परीक्षण करने पर निम्नलिखित मुख्य आकृतियां दिखाई देती हैं:

1. कोषा की सतह पर अंकुरित कण एवं अर्ध चन्द्राकार केन्द्रदिखाई देता है जो प्रसरस कला से एक विद्युदणु सघन द्रव्य द्वारा पृथककिया हुआ प्रतीत होता है।

2. अर्धचन्द्रकार केन्दक के साथ अपरिपक्व स्वतंत्र कण दिखाई देते हैं।

3. अपरिपक्व स्वतंत्र कण एवं अर्धचन्द्राकार केन्द्र दिखाई देताहै।

4. परिपक्व विरियन दिखाई देते है जिनका आकार 00-40 एम.एम. है तथा जिसमें सघनित उत्केन्द्रित गोलाकार या दण्डाकार केन्द्रक है।

एड्स का विषाणु कैसा दिखता है ?

एच.आई.वी. एक आवरण में लिपटा हुआ होता है। इनका आणविक वजन लगभग 4,000 होता है। हर विषाणु में एक विशिष्ट सघन, रम्भाकार प्रोटीन आर.एन.ए. तथा प्रतिवर्तन होता है। आवरण के बाहर की ओर निकलते हुए(गंठियानुमा, इंठलनुमा) आकृतियां होती हैं जिनमे गड्ढे है। ऐसा अनुमान है कि सतह पर विद्यमान प्रतिजन ही एच.आई.वी. प्रतिजन का निर्माण करता है। यद्यपि ग्लायको प्रोटीन रोधी प्रतिकाय का विकास मनुष्य के शरीर में होता है। इसके फलस्वरूप रोगी के अन्दर एड्स के विषाणु इतने फैल जाते हैं कि रोगी चाहते हुए भी अपने पूरे जीवन मे उन्हें नहीं निकाल पाता और धीरे-धीरे रोगी मृत्यु की तरफ ही चलाजाता है। यह एक झिल्ली नुमा विषाणु होता है जिसका अन्तरतम शंकू रूप मध्य में होता है। यह दो झिल्लियों द्वारा घिरा होता है। इसकी बाहय और आन्तरिक सतह प्रोटीन द्वारा बनी होती विषाणु के अन्तरत्‌म प्रोटीन को प्रो. 24, प्रो. 55, प्रो. 5 के नाम दिऐ गए हैं। इसके अलावा विषाणु में कम से कम पांच अतिरिक्त अभिज्ञातजन होते है। ये विषाणु के संश्लेषण को नियमित करने, विषाणु की सांक्रामकता को निश्चित करने तथा एच.आई.वी. का नियमन करने सम्बन्धित सा प्रतीत होता है।

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