दोनों प्रकार के रोगों में कई समानताएं है जैसे संक्रमण संचारण की प्रणात्री, क्षतिंभय वर्ग एवं नियंत्रण विधि। संक्रमण संचारण प्रणाली एड्स एवं यौन संचारित रोग की संचारण प्रणाली में निम्न समानताए है :
- संचारण यौन संबंधों से होता है चाहे वह समलैंगिक हो या विषम लैंगिक !
- संक्रमित माता से शिशु के प्रसव पूर्व, प्रसव काल या प्रसव के बाद संक्रमण होता है।
- रक्त या रक्त उत्पादों के संचारण से संक्रमण प्रसार होता है।
- संक्रमित सुई व सीरिंज के माध्यम से भी संक्रमण प्रसार होता है।
- पेशेवर रक्तदाता।
- वेश्याएं एवं काल गर्ल्स।
- जेलों में कैदी-इसमें प्रायः समलैंगिक संबंध रखने वाले व्यक्ति आते हैं।
- मादक द्र॒व्यों एवं औषधियों का दुरुपयोग करने वाले व्यक्ति जो सुई व सीरिंज से इनका उपयोग करते हैं।
- यौन संचारण रोग निदान केन्द्रों पर आने वाले रोगी तथा उनके सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति।
- रेड लाइट क्षेत्र जहाँ वेश्यावृति का काम होता है
- गृह “पर्यटन स्थल : जहां विभिन्न देशों से विदेशी भ्रमण के लिए आते हैं।
एड्स एवं यौन संचारित रोगों के नियंत्रण की विधि || How to control AIDS other sexual diseases in Hindi
एड्स के रोगी की मानसिक स्थिति || Mental condition of HIV positive
patient in Hindi||
एच.आई.वी. से ग्रस्त व्यक्ति मनोवैज्ञानिक आघात से गुजर रहे होते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें मानसिक, सामाजिक तथा समय-समय पर आध्यात्मिक रूप से सामना करना पड़ता है। जब एच.आई वी.संक्रमित व्यक्तियों को परीक्षण के लिए भेजा जाता है तो वे आशंकित तथा भयभीत होते हैं। जब परीक्षण का परिणाम निकलता है तो उस समय वे मनोवैज्ञानिक हलचल के प्रभाव में होते हैं। इन सब परिस्थितियों में उन्हें मंत्रणा (विचार-विनिमय) की आवश्यकता होती है जो परीक्षण के पश्चात दी जानी चाहिए। एच.आई.वी., एस.टी.डी. से प्रभावित व्यक्ति को राय देना, सलाह देना, अनुदेश देना, निर्णय निर्देश, विचार-विनिमय विवेक तथा भ्रविष्य कार्यविधि के लिए विचारों का आदान-प्रदान करना आवश्यक है। पीड़ित व्यक्ति को मनो-सामाजिक समस्याओ को विश्वास के साथ प्रकाश में लाना, प्रतिष्ठा सुरक्षित रखना और उसके व्यक्तित्व के विकास में सम्पूर्ण सम्मान के साथ घनिष्टता बनाए रखना आवश्यक है। साथ ही उसके भय के भावो, चिन्ता को शान्त करना तथा मंत्रणा देनी होती है ताकि वह समस्या का सामना कर सके। एस.टी.डी. नियत्रण उपायों में स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों के अच्छे परिणाम निकले हैं और यही आशा एच.आई.ची. नियत्रण मे की जाती है।
एड्स को कैसे पहचानें ? || How to detect AIDS in Hindi ||
रोग के लक्षणअमेरिका में इस रोग को दस-बारह वर्प
पूर्व ही पाया गया था। साधारणतः इस रोग
के विकसित होकर पहचाने जाने की अवस्था में आने तक चार-पांच साल लग ही जाते हैं। परिणामस्वरूप इसके बारे में चिकित्सा वैज्ञानिकों को तुरंत
जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती। लेकिन अब तक की खोज से एड्स रोग के निम्नलिखित लक्षण
पाए गए हैं
-खांसी और सास लेने में तकलीफ होना।
-हल्के ज्वयर से लेकर 40 डिग्री तक ज्वर होते रहना।
-बिना किसी कारण के शरीर का वजन तेजी से घटते
जाना।
-शरीर के लिफोनोड्स ग्रंथि का अपने सामान्य आकार
से बढ़ जाना।
-बिना किसी निश्चित कारण के 'न्यूकोसिस्टम न्यूमौनिया' के लक्षण होना ।
-गाल के अंदरूनी हिस्से में सफेद दाग उभर आना।
-कारपोसी सारकोमा नामक चर्म कैंसर होना।
-रक्त में श्वेत कणिकाओं की काफी कमी हो जाना आदि ।
एड्स के लक्षण
दिखने पर क्या करें ?
किसी व्यक्ति में उपरोक्त लक्षण पाये जाये तो घबराने की कोई बात नहीं बल्कि अच्छे चिकित्सकों से परामर्श करना चाहिए। एड्स एक ऐसा रोग है जिससे व्यक्ति एक बार ग्रसित होने परजीवन भर प्रभावित रहता है। यह आवश्यक नहीं है कि एच.आई.वी संक्रमित व्यक्ति में रोग लक्षण तुरन्त दिखाई देने लगें । कभी-कभी संक्रमित व्यक्ति 8-10 वर्षो तक स्वस्थ दिखाई देता है और उसमें किसी प्रकार के रोग लक्षण दिखाई नहीं देते । अधिकतर रोगियों में रोग लक्षण प्रारम्भिक संक्रमण अवस्था मे दिखाई नहीं देते लेकिन कुछ में संक्रमण होने के 5-6 सप्ताह के भीतए ही तीव्र रोग लक्षण दिखाई देने लगते है। प्रभावित व्यक्ति में रोग लक्षण 5 दिन से 10 वर्ष के मध्य कभी भी दिखाई दे सकते हैं क्योकि इसका अन्तर्विकास काल लम्बा होता है। संक्रमित व्यक्ति में प्रायः कई तरह के लक्षण दिखाई देते हैं।
एड्स में
अल्पावधि रोग
एड्स में ज्वर
अल्पावधि रोग अवस्था इस अवस्था में ज्वर, शरीर पर दाने एवं गर्दन की ग्रन्थियों का बढना आदि लक्षण दिखाई देने लगते हैं। यह अवस्था पल्यू संक्रमण जैसी दिखाई देती है। रोगी को ज्वर हो जाता है, कंपकपी लगती है, जोड़ो में दर्द, मांस पेशियों में दर्द, शरीर पर दाने, उदर में ऐठन एवं दस्त होने लगते हैं। ये लक्षण 2-8 दिन में स्वयं ही लुप्त हो जाते है। इस अवस्था के लगभग 3-6 सप्ताह बाद शरीर में प्रतिरक्षक प्रतिकाय उत्पन्न होती हैं जो एलिसा परीक्षण, एग्लूटिनेशन परीक्षण एवं एम्यूनो फ्लोरेसेंस परीक्षण द्वारा पहचानी जा सकती हैं। एलिसा परीक्षण के परिणाम वेस्टर्न ब्लॉट ऐसे द्वारा परीक्षण कर सुनिश्चित कर लेनेचाहिए। यह परीक्षण विशेष रूप से एच.आई.बी. के विशिष्ट विपाणुकी प्रतिकाय को पहचानने के लिए ही है।
एड्स में हिमोफिलिया
कुछ अन्य अवस्थाएं हिमोफिलिया आदि एड्स प्रसार में अधिक सहायक होती हैं। इन अवस्थाओं से ग्रसित व्यक्ति में यदि एड्स संक्रमण की स्थिति में विषाणुओं का उत्पादन रोगी के शरीर में बडी सख्या में होने लगे तो व्यक्ति की कोशिकाएं नष्ट हो जायेंगी। फलस्वरूप शरीर की रक्षात्मक शक्ति क्षीण होने लगेगी जिससे व्यक्ति अन्य संक्रमणों के लिए सुग्राही हो जायेगा।
एड्स संक्रमित व्यक्ति की अवस्थायें || Various
stages of AIDS infected person||
इस अवस्था में निम्न लक्षण पाय जाते हैं।
- बुखार : ज्यादा दिन तक लगातार बुखार जारी रहना।
- जीर्णदस्त : 4 से 5 सप्ताह तक दस्त रहना ।
- खासी : 4 माह तक लगातार खांसी होना।
- त्वचा रोग : सारे शरीर पर तीत्र खुजली, बार-बार हरपिसजोस्टर का होना।
- शरीरिक वजन में कमी : व्यक्ति के भार में 40 प्रतिशत से अधिक की कमी आ जाती है।
- थकान का अनुभव करना।
- रोगी का कुश अवस्था की ओर अग्रसर होना
- लसीका ग्रंथियों का बढ़ना मानसिक शक्ति का क्षीण होना
- ध्रोम्बोसाइटों पीनिया
- भूख कम लगना,
- रात्रि को पसीना आना,
- जीभ पर छाले होना
एक एड्स संक्रमित व्यक्ति में उपरोक्त लक्षणों में से एक या एक से अधिक लक्षण विद्यमान हो तो ऐसी अवस्था को एड्स सबधी अवस्था कहते हैं। जब व्यक्ति में एड्स अपनी पूर्ण अवस्था में पहुच जाता है तब उसका सुरक्षा तंत्र बुरी तरह विकृत हो जाता है और टी-सहायक कोषा की संख्या मे कमी आ जाती है।
एड्स संक्रमित व्यक्ति की अग्रिम अवस्था ॥ Final
Stage of HIV infected person ||
रोग की अग्रिम अवस्था में कैन्सर जैसे घातक रोग अथवा अवसरचारी संक्रामक रोग उत्पन्न हो जाते हैं जैसे लसिका ग्रथियों का कैसर, लिम्फोमा, रक्त वाहिनियों में सार्कोमा कापोसी, त्वचा का कैसर तथा मुंह का एवं गुदा मार्ग की श्लेष्मा का कैंसर । इसके अतिरिक्त एड्स का रोगी ऐनसिफेलाइटिस अथवा दिमागी ज्वर, जठर-आंत्र रोग से भी ग्रसित हो सकता है।
क्या एड्स एक महामारी है?
एड्स एक विध्वंशकारी घातक बीमारी है जो अब विश्व में महामारी का रूप ले रही है। इसने केवल चिकित्सा जगत को ही नहीं बल्कि सारे विश्व के लोगों को चेतावनी दे दी है तथा भविष्य के बारे में सावधान कर दिया है। सर्वप्रथम सनू 98 में अधिकारिक रूप से इस बीमारी की पहचान को गई थी लेकिन अब यह विश्व के 152 देशों को प्रभावित कर चुकी है। इस रोग में मृत्यु दर बहुत उच्च है। रोग होने के दो वर्ष के अन्दर रोगी मौत के मुंह में पहुंच जाता है।
एड्स रोगी के लक्षणों का वर्गीकरण
एड्स रोगी के लक्षणों को निम्न वर्गों में विभक्त किया जा सकता है :
- केन्द्रीय स्नायु संस्थान वर्ग : लगभग 30 प्रतिशत एड्स रोगी इसी वर्ग मे आते हैं।
- फुफ्फुस वर्ग : इस बर्ग के रोगी में दुःश्वसन सोने में दर्द आदि लक्षण-मुख्य रूपसे दिखाई देते हैं। एक्स-रे करवाने पर फुफ्फुस में प्रसुत निविष्ट दिखाई देते हैं। इस वर्ग में आने वाले एड्स रोगी में वजन में कमी, सुस्ती, कमजोरी आदि लक्षण दिखाई देते हैं।
- जठंरान्त्रीय वर्ग : इस वर्ग के रोगियों में दस्त, वजन में कमी आदि लक्षण दिखाई देते हैं।
एड्स विषाणु
द्वारा शरीर में प्रवेश से लेकर अन्तिम अवस्था :
एड्स विषाणु द्वारा व्यक्ति के शरीर में प्रवेश
से लेकर अन्तिम अवस्था तक की
अवधि को हम निम्न भागों में विभक्त कर सकते हैं:
- तीव्र संक्रमण अवस्था : व्यक्ति के शरीर में एच.आईई.वी. के प्रवेश के चार से छ स्रप्ताह पश्चात रोगी को ज्यर होता है जो कुछ दिनों मे ठीक भी हो जाता है। सर्वव्यापी जीर्ण लसीका ग्रंथी को एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्ति की लसीका ग्रंथियों में सूजन आजाती है तथा उनका आकार बढ़ जाता है। इनका परीक्षण करने पर भी आकार बढ़ने के कारण का पता नहीं चलता है।
- लक्षणहीन अवस्था : तीव्र संक्रमण के बाद लम्बी अवधि (कुछ वर्षो) तक एच.आई.वी. रोगी के शरीर में चुपचाप बना रहता है, व्यक्ति में किसी प्रकार के रोग लक्षण दिखाई नहीं देते। लेकिन ऐसे व्यक्ति के रक्त से रक्ताधानकरने पर या यौन सम्बन्धों से संक्रमण दूसरे व्यक्तियों को पारेषित हो सकता है।
- पूर्णतया स्पष्ट की रोगी अवस्था: स्पष्ट एड्स रोगी अवस्था तक आते -आते रोगी की क्षमता बहुत कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में अन्य अवसरवादी संक्रमण भी रोगी के शरीर को प्रभावित करने लगते हैं। फलस्वरूपरोगी के वजन मे काफी कमी आ जाती है। लम्बी अवधि तक दस्त का लगते रहना, विशेष रूप का निमोनिया होना, मानसिक स्थिति काविगड़ना, मुंह तथा आहानली पर सफेद दाग का होना, गर्दन तोड़ ज्वर आना आदि विशेष लक्षण दिखाई देने लगते हैं
एड्स पीड़ित
शिशु के क्या लक्षण हैं ?
एड्स पीड़ित शिशु में निम्नलिखित बड़े लक्षणों एव
गौण लक्षणों में से प्रायः दो-दो अवश्य दिखाई देते हैं। साथ ही उसकी माता में भी
एड्स रोग होने का विवरण होता है। कैन्सर तथा कुपोषण जैसे प्रतिरक्षा शमन करने वाले
परिचित कारणों का भी पता लगाया जाना चाहिए ताकि निदान निश्चित किया जा सके। क्योकि
इन परिस्थितियों में भी शिक्षु में एड्स के अनुरूप ही लक्षण दिखाई देते है। यदि
शंका हो तो अन्य कारक तत्वों का निश्चित किया जाना चाहिए।
बड़े लक्षण
-वजन मे कमी या असामान्य वृद्धि, सामान्य विकास नहीं होना
-जीर्ण दस्त एक माह से अधिक अवधि का विवरण-निरन्तर ज्वर-एक माह से अधिक अविध का।
-रक्तालपता
-कैन्द्रीय स्नायु तंत्र का प्रभावित होना एवं
मस्तिष्क विकृति
क्या एड्स एवं यौन संचारित रोग बहुत बड़ी समस्या है ?
एड्स एवं यौन संचारित रोग विश्व भर में यौन संचारित रोग एक बहुत बड़ी स्वस्थ्य समस्या है। करोड़ों व्यक्ति इन रोगों से प्रभावित है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। लेकिन हमारे देक्ष में रोग व्यापकता तथा उसके आकार का सही मूल्यांकन करना सम्भव नहीं है क्योकि विश्वसनीय आकड़ो एवं सूचना का अभाव है। प्रभावित व्यक्ति समाज के भय से सामने नहीं आते हैं एवं निदान व उपचार भी चोरी छिपे फरवाते हैं। सम्भवत्ः भारत में यह सर्वाधिक प्रचलित संचारी रोग हैं। यौन संचरित रोग मानव समाज के लिए अभिशाप तो हैं ही साथ ही इनसे मानव शक्ति को काफी क्षति पहुंचती है। प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों प्रकार से ये रोग समस्याएं ही उत्पन्न करते हैं। यौन संचरित रोगों उपदंश, सुजाक आदि के वर्ण क्रम में अब एड्स को भी सम्मिलित कर दिया गया है।