शिशु के स्वास्थ्य का-आधार माँ का दूध || Importance of Mother’s milk for new born baby |

माँ का दूध बढ़ाने के घरेलू उपाय

फैशन की दौड़ में शामिल होकर, अपने फिगर की चिंता करते हुए यदि कोई माँ अपने बच्चे को दूध पिलाए तो यह बच्चे के साथ सरासर ज्यादती होगी। यदि मां के स्तनों में दूध उतरता है, वह स्वयं पूरी तरह से स्वस्थ है, उसे कोई रोग भी नहीं है, तब उसे अपने बच्चे को दूध नियमित पिलाते रहना चाहिए। यह प्रक्रिया पांच से छः महीनों तक चलती रहे। मां का दूध पीना बच्चे का परम अधिकार है। उसके उत्तम स्वास्थ्य का आधार भी मां का दूध ही है। उसे मां का दूध पीकर बुद्धि, बल मिलेगा। रोगो से लड़ने की लाकत मिलेगी। उसका शरीर निरोग बना रहेगा। मां के दूध के महत्त्व को केवल इस बात से पूरी तरह जान सकते है . बड़ा होने पर उसके साथी, मित्र उसे ललकारते हुए कहते हैं - 'यदि मां का दूध पिया है तो आ सामने अथवा-देखते हैं तूने मां का कितना दूध पिया है, आ कर मुकाबला, निकल बाहर। जो माता अपने बच्चे को दूध पिलाने में संकोच करती है, वह बच्चे का अहित कर रही है। यदि किसी कारण मां की छाती में दूध नहीं उतर रहा, तब तो बड़ी ही मजबूरी है। वरना मां अपने बच्चे को पांच-छः महीनों तक दूध पिलाना अपना धर्म समझे। उसके अच्छे स्वास्थ्य की नींद यहीं से रखी जानी है। इसके लिए पीछे मत हटें।

शिशु के स्वास्थ्य का-आधार माँ का दूध

अगर बच्चा माँ का दूध न पीता हो ? || Why women don’t feed their children ?||

कुछ माताएं निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर ही अपने बच्चे कोअपना दूध पिलाने से पीछे हट जाया करती हैं-

  1. दूध पिलाने से उनके स्तन ढीले पड़ सकते हैं। लटक सकते हैं. यह डर है
  2. उन्हें भय रहता है कि कहीं उनका स्वास्थ्य ही न बिगड़ जाए।
  3. उन्हें अपनी फिगर की बेहद चिंता बनी रहती है। कल को उन्हें सोसायटी में उठना-बैठना है। क्लब तथा किटी पार्टी में भी दो जाना है। कही उनका शरीर आकर्षणरहित ही न हो जाए
  4. उनका अपना सौन्दर्य उन्हें अपने बच्चे के स्वास्थ्य तथा भविष्य से ज्यादा कीमती लगता है।
  5. बच्चे को दूध पिलाने के कारण कहीं वह अपनी असली आयु से बड़ी न लगने लग जाएं। हर स्त्री अपनी आयु से छोटी दिखना चाहती है। भले ही ऐसी भावना को पालते हुए वे अपने ही खून से अपने ही बेटे से ज्यादती क्‍यों न कर बैठें।

माँ का दूध न आने पर क्या करे

तो माताएं ध्यान देकर बच्चे को नियमित दूध पिलाती रहें, मगर शरीर मेँ आने वाले ढीलेपन को रोकने के लिए जरूरी योगासन कर लें तो शरीर भी चुस्त-दुरुस्त बनेगा तथा बच्चे को भी उसका हक मिलता रहेगा।

  1. व्यायाम करने से शरीर में आने वानी कोई भी विकृति रोकी जा सकती है। अतः उचित व्यायाम चुनें।
  2. प्रसव के बाद शरीर में पहले जैसा कसाव लाने के लिए कुछ निश्चित व्यायाम हैं। उनको अपनाना जरूरी है। दूध न पिलाकर होने बाली कमी पूरी नहीं की जा सकती। इस बात पर जरूर ध्यान दे।
  3. जो माताएं बच्चे को दूध नहीं पिलाती, उनके शरीर में विकार आने की अधिक संभावनाएं होती हैं।
  4. बच्चे का विकास, मां के दूध के बिना शर्तिया रुक जाता है। यह बच्चों के हक, शरीर व भविष्य के साध घोर अन्याय है। माताएं इसे खूब जान लें। मां बच्चे के सही विकास के लिए उसे दूध तो अवश्य पिलाए। अपने स्वास्थ्य को बरकरार रखने के लिए व्यायाम भी करें। दोनों कार्य ठीक हो जाएंगे।
  5. जिस बच्चे को जन्म देकर, आप इस दुनिया में लाई हैं, उसके सर्वांगीण विकास की आपकी ही जिम्मेदारी है। अपने कर्तव्य से विमुख मत हो। अपना भी ध्यान रखें तथा बच्चे का भी। अपने असली फर्ज से जी हटाकर, अपनी सुंदरता को बनाए रखेंगी तो भी यह गलत कहलाएगा।                

दूध का महत्त्व  

प्रकृति ने ही मां का दूध इस प्रकार बनाया है कि नवजात शिशु के शरीर के पाचन तंत्र के लिए यह पूरी तरह उपयोगी होता है। यह ध्यान रहे कि बच्चे का पाचन तंत्र बहुत नाजुक होता है, इसके लिए गाय, भैंस या डिब्बे वाला दूध उपयुक्त नहीं होता। मां का दूध सरलता से पच जाता है। इसका तापमान भी बच्चे के लिए ठीक होता है, उसके शरीर के तापमान के अनुसार। मां के पेट में रहकर ही तो बच्चे के शरीर का निर्माण हुआ है, विकास भी। अतः उस मां के दूध के सभी तत्त्व बच्चे के लिए अनुकूल होते है। इसीलिए तो' जोर देकर कहा जाता है कि बच्चे को पांच से छः मास तक मां का दूध अवश्य प्राप्त होता रहना चाहिए।

बच्चे में भैंस या गाय का दूध पचाने की पहले क्षमता होती ही नहीं। यह तो धीरे-धीरे विकसित होती है। त्तब तक मां का दूध उतरना भी बंद हो जाता है। पाचन तंत्र पर दबाव न बनाएं। जब मां ने बच्चे को अपने पेट में रखकर इसके शरीर को बनाया है। अपने आहार में से आहार दिया है। अपने रक्त में से उतका पोषण किया है। उसके लिए अनेक कठिनाइयां सहन की हैं। प्रसव-पीड़ा सहन की है। बच्चे का शरीर विकसित कर, उसे इस दुनिया में लाई है। इतने कष्ट झेले हैं। ऐसे में अब तो बहुत छोटा कष्ट है| छोटा काम है। केवल स्तनों से दूध पिलाना। जब अन्य कठिन कार्य कर लिये हैं तो इस छोटे से काम से पीछे हटना कोई बुद्धिमत्ता नहीं। बच्चे के शरीर के लिए जिस भी तत्व की आवश्यकता होती है, वह मां के दूध में पूरी तरह से, संतुलित ढंग से विद्यमान रहता है। यही दूध बच्चे के शरीर की हर आवश्यकता को पूरा कर सकता है। बच्चे को इससे महरूम न रखा जाए तो ही अच्छा।

प्रकृति द्वारा पुरुष और नारी शरीर की रचना

प्रकृति ने पुरुष के शरीर में वे सब बातें नहीं आने दीं,  जो नारी के शरीर में रौपित कीं। अतः उन सब बातों का अपना ही महत्त्व है। यदि उनकी ओर ध्यान न करें, उनकी उपयोगिता को न जानें तो हम प्रकृतिके भी विरुद्ध कार्य करेंगे।

  1. जब बच्ची बड़ी होकर किशोरी की आयु पा लेती है तो अपने आप मासिक धर्म शुरू हो जाता है। तीन चार दिनों तक रक्‍त-स्राव होता रहता है। कभी किसी ने नहीं कहा कि इससे उसके शरीर में कमजोरी आ जाती है। यह शरीर की प्राकृतिक क्रिया है। होती रहनी चाहिए। नियमित ही।
  2. जबकि यदि कहीं छोटी-बड़ी चोट लग जाए तो भी रक्‍त-स्राव होगा। इससे स्वतः कमजोरी  होने लगती है, जबकि मासिक धर्म से बहुत कम रक्‍त-स्राव हुआ हो तो भी कमजोरी नहीं होती है। अतः पहली स्थिति में प्रकृति ने मासिक धर्म को लड़की के शरीर में अनिवार्थ रूप से निर्मित किया है।
  3. बच्ची जैसे-जैसे किशोरावस्था को पाने लगती है, उसके शरीर पर, छाती पर उभार आ जाता है। यह वक्ष पर आया उभार भी आयु के साथ है। प्राकृतिक तथा सामान्य क्रिया है। आखिर इसका भी ती कोई कार्य होगा ही। छाती पर उभरी इन दो गांठों से कभी पीड़ा महसूस नहीं होती । बल्कि उन्माद की अनुभूति होती है।
  4. जबकि शरीर पर अन्यत्र कोई भी गांठ, फोड़ा उभर आए तो कष्ट, पीड़ा होने लगती है। कितना अंतर है दोनों में।
  5. ऊपर मासिक धर्म की बात हुई है। गर्भ धारण कर लेने पर यह मासिक धर्म आना बंद हो जाता है। यह रक्‍त स्राव तब तक नहीं होता जब तक बच्चा पूरी तरह से निर्मित होकर इस संसार में नहीं आ जाता। यह प्रकृति का खेल है। मासिक धर्म का आना और रुके रहना, संतान पैदा होने की एक प्रक्रिया ही है। यही इसका मतलब भी है।
  6. ठीक इसी प्रकार, प्रकृति ने वक्ष पर जो उभार पैदा किए, प्रसव के बाद इनमें स्वतः दूध उत्तर आता है। प्रकृति जानती है कि उसने एक शिशु का निर्माण किया है। उसे भी आहार की जरूरत है। वह ऐप्ता आहार हो जो उसके लिए पूरी तरह उपयुक्त भी हो। सुपाच्य भी हो। संतुलित भी हो। पौष्टिक भी। इसीलिए प्रकृति ने मां के स्तनों में दूध को निर्मित कर उतारा है। इसका निर्माण बच्चे के लिए हुआ है। फिर उसे स्तन-पान न कराना बच्चे के साथ तो ज्यादती है ही, प्रकृतिका भी विरोध है। जो ठीक नहीं। प्रकृति इसे पसंद नहीं करती। हो सकता है इस कारण बच्चे का विकास तो रूकेगा हीं, मां भी रोगी हो जाए। अतः मां को अपने बच्चे को स्तनपान अवश्य कराना चाहिए तथा प्रकृति के खेल मे उसको सहयोग देना चाहिए।

कैसे उत्तरता है दूध ? || How milk created inside the mother ||

जैसे ही लड़की का शरीर यौवनावस्था को पा लेता है, इस्टेरोजन' ओर 'प्रोजेस्टेरान' हार्मोन क्रियाशील हो जाते हैं। इसी से स्तन-संस्थान विकसित हो जाते हैं। तभी दुग्ध संस्थान की उत्पादन करने वाली प्रणाली भी शक्तिवान होकर कार्य करने योग्य हो जाती है। यही दोनों चीजें, समय आने पर बच्चे के लिए दूध निर्मित करती हैं। जब प्रसव हो जाता है तो ये दोनों संस्थान अपने कर्तव्य को पूरा करने में लग जाते हैं तथा दूध बनना, उतरना, स्तनों तक आना आरंभ हो जाता है। माँ का दूध प्रकृति ने बनाया है बच्चे के लिए, अब इसका स्राव न करना, उपयोग न करना, बच्चे से अन्याय करना ही तो हुआ। दूध का स्राव नहीं होगा। यह रुक जांएगा। हानि तो होगी ही, कष्ट भी होगा। बीमारी का भय बना रहेगा।

माँ का दूध सुखाने के उपाय

जब मां बच्चे को दूध नहीं पिलाएगी तो दूध का स्राव रुक जाएगा। प्रकृति फिर भी मां के शरीर को कम-से-कम हानि पहुंचाने की कोशिश करती है। प्रोजेस्ट्रोन हारमोन को यह निष्क्रिय कर देती है। इसलिए कि बन रहे दूध को निकाला नहीं जा रहा है। यदि यह फिर भी लगातार बनता रहा तो फोडा होगा, कष्ट होगा, रोग पनपेगा, मां-की छाती पीड़ा कर उठेगी। इसीलिए तो प्रकृति प्रोजेस्ट्रोन को निष्क्रिय कर दूध का निर्माण ही रोक देती है। दूध बनना और निकलना स्वतः रुक जाता है, जिससे मां रोगी होने से बचा ली जाती है। पांच-छः महीनों से पहले दूध का बनना रोकना नहीं चाहिए। यदि यह रुक गया है तो यह अप्राकृतिक क्रिया है। इसके लिए बच्चा अभागा है तथा मां दोषी।

मां का दूध संतुलित कैसे ?

गाय-मैंस के दूध में वे पदार्थ नहीं होते, जो मां के दूध में होते हैं तथा इसे संतुलित बनाए रखने का कारण है। यही तो विशेषता व भिन्‍नता है मां के दूध में। मां के दूध में जो अतिरिक्‍त तत्त्व होते हैं, वे हैं-

(1) रक्त के ग्लूकोज से लेक्टोन।

(2) एमीनो एसिड से प्रोटीन।

(3) न्यूटरत्ञ पेण्ट्स से पेण्ट्स ।

इन्हीं तीन पदार्थों के कारण मां का दूध शिशु के लिए गाय-मैंस के दूध से अधिक उपयुक्त होता है। तभी तो यह संतुलित भी है, क्योंकि शिशु को इन तीनों पदार्थों की जितनी आवश्यकता होती है, ठीक उतनी ही मां के दूध में उपलब्ध रहती है। 

माँ का दूध कैसे बढ़ाएं

आयु बृद्धि के अनुसार ही जैसे-जैसे शिशु की आयु बढ़ने लगती है और उसके शरीर को जिन पदाथों की आवश्यकता होती है, मां का दूध उसी अनुपात्त मे, उसी आवश्यकता के अनुसार यह सब बढ़ाता जाता है। जैसा अनुपात चाहिए, पैसा बनाए रखता है। यह काम मां का शरीर, प्रकृति की मदद से करता है। अन्य कोई भी दूध आवश्यकतानुसार खरा नहीं उतर सकता। हुई न यह भी एक विशेषता ।

जिन बच्चों को मां का दूध प्राप्त नहीं होता

जिन बच्चों को मां का दूध प्राप्त नहीं होता। वे कमजोर तथा रोगी होकर असमय मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। कुछ ऐसी माताएं जो दूध न पिलाने के कारण रोगग्रस्त हो जाती हैं, मृत्यु के मुंह में चली जाती हैं। अतः प्रकृति की क्रिया मे अवरुद्धता पैदा कर अपने लिए तथा शिशु के लिए खतरा पैदा करना ठीक नहीं। माताओं को यह बात भली प्रकार समझ लेनी चाहिए।

ब्रेस्ट का कैंसर || Chances of Breast Cancer ||

ऐसी सभी स्त्रियां जो अपनी सेहत, अपनी फिगर, अपने रंग-रूप के लिए चिंतित रहकर, बच्चे को दूध नहीं पिलातीं, उनके स्तनों से दूध का स्राव रूक जाता है। रुका हुआ दूध गांठ, फोड़ा बन सकता है। यह गांठ ही ठीक हो पाने पर स्तन-कैंसर का कारण बन सकती है। अतः ऐसी संभावना को जन्म देना ठीक नहीं। दूध न पिलाने से जो स्तन में विकार आएगा, यही कैंसर का कारण बन सकता है। देखें न ! प्रकृति इतनी सहायता करने को तैयार रहती है कि यदि दूध बच्चे को नहीं पिलाया जा रहा तो यह बनना बंद हो जाएगा। मगर किसी कारण यदि दूध बनना बंद न हो और निकले भी नहीं, तब तो यह नाड़ियों में रुकेगा ही। रुककर जमेगा, सूखेगा, विकार पैदा करेगा। यही विकार कैंसर कर सकता है.

ब्रेस्ट कैंसर से बचने के उपाय?

यदि यह बात है तो इतना बड़ा खतरा क्‍यों मोल लेना। मां को चाहिए कि बच्चे के स्वास्थ्य के साथ न्याय करे। अपने शरीर की रक्षा करे तथा जब तक दूध उतर सकता है पिलाती रहे। कम-से-कम छः महीने तो जरूर ही पिलाये।

मां का दूध पोषक भी, रक्षक भी

मां का दूध केवल पोषक हो नहीं, यह रोगों से लड़ने की ताकत भी देता हैं। जितना मां का दूध संक्रमण निरोधक है, उतना और कोई दूध या कोई भी पदार्थ नहीं। मां के दूध से शिशु पर होने वाले संक्रमण-आक्रमण को रोकना पूरी तरह संभव है, निश्चित है। फिर यह तो बहुत बड़ी दवा भी है। बोतल वाला दूध मां का दूध तो कीटाणुओं से रक्षा करने में पूरी तरह सक्षम होता है, जबकि बोतल वाला दूध रोगाणुओं से बचाव नहीं कर पांता। बल्कि संक्रमण होने में वृद्धि करता है। बचाव की तो सोचें ही मत। मां, जिसने इतनी कठिनाई से, अपने शरीर से ही शिशु के शरीर का निर्माण किया है, अपने अनावश्यक स्वास्थ्य की चिंता में डूबकर बच्चे को रोग युक्त बना रही है। ऐसा करना ठीक नहीं। उसे योग से, व्यायाम से, आहार से अपने स्वास्थ्य में सुधार कर लेना चाहिए। बच्चे को दूध पीने के अधिकार से वंचित नहीं करना चाहिए। बच्चे को रोगी होने की संभावना में धकेलकर अपनी फिगर, अपने रंग-रूप, अपने सौंदर्य की रक्षा करना बहुत घटिया सोच है। माताएं इसे समझें तथा बच्चे के साथ न्याय करें।

माँ के दूध में विटामिन और पोषक तत्व

जो माताएं अपने बच्चे को दूध पिलाने में संकोच करती हैं, उन्हें इतना तो सोच ही लेना चाहिए कि यदि बच्चे को दूध पिलाना ठीक नहीं तो भगवान्‌ ने उसके वक्ष में इसका निर्माण ही क्‍यों किया। यह किसी और काम तो आ ही नहीं सकता। स्तनपान द्वारा बच्चे को दूध आहार रूप में मिलना चाहिए । इसलिए तो बना है यह। फिर इसका सदुपयोग न कर अपने लिए तथा बच्चे के लिए बीमारी को जन्म देना घोर पाप व अन्याय भी है।मां के दूध के विषय में बहुत कुछ दिया जा चुका है, फिर भी कुछ बातों की यहां चर्चा कर लेते हैं-

(क) गाय, भैंस, बकरी या डिब्बे के दूध को पीने से शिशु को एलर्जी हो सकती है। मां के दूध से कभी नहीं।

(ख) बच्चा जब स्तनपान करता है तो दूध स्तन से बच्चे के मुंह में पहुंचता है । बीच में और कुछ भी नहीं । इसीलिए किसी भी बाहरी संक्रमण का कोई भय नहीं रहता।

(ग) जो बच्चे मां का दूध पीते हैं, उन्हें पोषक तथा संतुलित आहार मिलता है। उनका शरीर पृष्ट होता है। ऐसे बच्चे को श्वास संबंधी रोग नही होते या फिर बहुत कम होते हैं।

(घ) बच्चे के शरीर के तापमान के अनुसार ही मां के दूध का तापमान होता है। यह एक बहुत बड़ी बात है। न अधिक गर्म, न ही अधिक ठंडा । पूरी तरह उपयोगी। गाय- भैंस के दूध को पिलाने से पूर्व बच्चे के शरीर के तापमान तक जाना होता है। इसमें कोई भूल भी हो सकती है।

(ड) मां के दूध में किसी प्रकार की मिलावट नहीं होती। अन्य सभी दूध मिलावट वाले हो सकते हैं।

(व) मां का दूध स्तन से मुंह में जाता है, अतः पूरी तरह ताजा रहता है। अन्य कोई दूध इतना ताजा नहीं पिलाया जा सकता, मां का दूध पूरी तरह शुद्ध होता है।

(ज) मां का दूध हर प्रकार से कीटाणु रहित होता है। अन्य कोई भी दूध कीटाणु वाला हो सकता है, जो बच्चे के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी हो सकता है।

माँ का दूध कब तक पीना चाहिए ?|| माँ का दूध कितने साल तक पिलाना चाहिए ?

मां का दूध सर्वथा अछूतापूरी सरह शुद्ध होता है। पहले तीन दिनों का दूध पता नहीं क्योंमगर कुछ घरों में यह धारणा बनी होती है कि प्रसव के बादअगले तीन दिनों तक मां का दूध शिशु को नहीं पिलाना चाहिए। मगर अब सिद्ध हो चुका है कि यह धारणा गलत है। शिशु को रोगाणुओं से आमना-सामना करने के लिए पहले तीन दिन का दूध तो और भी अधिक उपयोगी है। अतः शिशु के पैदा होने से अगले छः महीनों तक तो उसे मां का स्तनपान कराना ही न्याय संगत है, आवश्यक है। जच्चा-वच्चादोनों के लिए उचित भी है। नवजात शिशु में रोने के अतिरिक्त और कुछ भी करने की क्षमता नहीं होती । 

माँ का दूध gadha करने के उपाय

वह किसी को पहचानता भी नहीं। उसके शरीर के अंग बहुत नाजुक होते है। सिर पर का तालू बहुत नर्म होता है। किसी शिशु के वाल घनेकिसी के कम तो किसी के सिर पर बिलकुल नहीं होते। शिशु अपने हाथों से कुछ पकड़ना चाहेतो भी नहीं पकड़ सकता। उसे पूरी तरह से मां तथा अन्य अभिभावकों पर निर्भर रहना पड़ता है। शिशु पड़ा-पड़ा रो तो सकता हैमगर करवट भी नहीं बदल सकता। 

माँ का दूध न आये तो क्या करे

दूध की बोतल या मां का स्तन यदि उसके मुं के साथ लगा दिया जाए तो बह इसे चूसने की कोशिश जरूर करता है। दूध पेट में जाए भी या नहीं जाएइसका उसे ज्ञान नहीं होता । ज्ञान हो भी जाए तो बत्ता नहीं सकता। जो शिशु पूरी तरह से औरों पर निर्भर रहता हैउसकी देखभाल पर पूरा ध्यान देना नितांत आवश्यक होता है। उसके लालन-पालन में कोई कमी नहीं आने देनी चाहिए। जच्चा को ही बच्चे का ध्यान रखना जरूरी होता है ताकि उसकी देखभाल में कोई कमी न रहे। 

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