नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें ? || Care of New born baby in Hindi ||

नवजात शिशु का विकास || Body of New born baby in Hindi ||

शिशु का शरीर बहुत कोमल होता है। आरंभ में उसकी लंबाई बीस इंच के आसपास होती है। उसका शरीर तीव्रता से बढ़ता रहता हैं। वह पहले ही महीने में सात-आठ इंच बढ़ जाता है। शिशु का सिर शेष शरीर के अनुपात से बड़ा होता है जो कि धीरे-धीरे सामान्य हो जाता है। इसी प्रकार शिशु का पेट भी छाती से बड़ा होता है। धीरे-धीरे इसका अनुपात भी ठीक हो जाता है। जन्म के समय शिशु का वजन सात-आठ पौंड के आसपास होता है। मां के स्वास्थ्य, मां की लंबाई आदि पर भी शिशु का बजन निर्भर करता है।

नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें ?

नवजात शिशु का वजन || Body of New born baby in Hindi ||

शिशु का वजन हर सप्ताह छः औंस के आसपास बढ़ता रहता है, स्वस्थ बच्चे का वजन पंद्रह पौंड के आसपास का हो जाता है। यदि बच्चा कमजोर होगा तो वजन कम ही होगा। यह माता के लिए ज़रूरी है कि वह अपने शिशु लंबाई को भी नाप ले। ताकि वह शिशु की बढ़ोतरी पर नजर रख सके। एक वर्ष की आयु में शिशु जब एक वर्ष का हो जाए तो उसका वजन ९ पौंड होना ही चाहिए। यदि वजन कम रहें तो कारण की तलाश करें। सुधार करें ताकि बच्चा स्वस्थ हो सके।

नवजात शिशु और निद्रा || Sleeping practice of new born baby in Hindi ||

शिशु की निद्रा पर ध्यान दें, माता को चाहिए कि अपने शिशु की निद्रा पर जरूर ध्यान दें। उसके आहार तथा वजन का ध्यान तो करती ही होगी। निद्रा पर भी करेगी तभी परिणाम आशातीत्त होंगे।नवजात शिशु हर समय सोया रहता है। केवल उसी वक्‍त जागता है जब उसे दूध पीना है। नहाना है। उसकी मालिश करनी है। पोंटी करनी है आदि। मतलब यह कि ९ यंटों में 8 घंटे उसे नींद लेनी ही चाहिए। जैसे-जैसे शिशु बडा होता जाता है, नींद के घंटे कम होने लग जाते हैं। बच्चा जब 6 महीने का हो जाता है तो नींद 5-6 घंटों तक आ जाती है। एक वर्ष तक पहुंचते-पहुंचते शिशु की नींद औसतन चौदह घंटों तक आ पहुचती है। नन्‍हा शिशु लगातार कई घंटों तक सोता रहे तभी अच्छा रहता है। इसलिए, सुलाने से पूर्व शिशु को उसकी भूख की पूर्ति के लिए दूध पिला दे। जब उसके जागने का समय हो तो उसे दूध पिलाना चाहिए। ताजगी के लिए शिशु को जितनी ताजगी निद्रा से प्राप्त ढोती है उतनी नहाने से या दूध पीने से भी नहीं होती। बच्चे को भूखा न रखें। उस्रे प्रतिदिन नहलाते रहें ताकि वह गहरी नींद सो सके। बच्चा जितना अधिक सोएगा, उतनी ही ज्यादा ताजगी महसूस करेगा। शिशु की शक्ति का खर्च केवल रोने अथवा पांव मारने, टागे चलाने में होता है। पांच वर्ष की आयु तक रात के समय तो सब सोते हैं। मगर दिन में भी बच्चे को तब तक जरूर सुलाए जब तक बह पांच वर्ष का नहीं हो जाता। इसके बाद भी थोड़ा-बहुत दिन में सुलाते रहें ताकि उसको ताजगी बनी रहे । बच्चा भागत्ता है, खेलता है, हाथ-पाव चलाता है, दौड़ता-नाचता है। अतः वह जल्दी थक जाता है। अधिक थकावटके कारण उसे विश्राम की भी जरूरत होती है। जिस बच्चे को कम नींद का मौका मिलेगा, उसके स्वास्थ्य में कमी रह जाएगी। कम नींद के कारण बच्चे की शारीरिक शक्ति तथा मानसिक स्तर पर असर डता है. उसका संतुलन बिगड़ने के कारण वेचैनी भी वढ़ जाती है। बच्चे में आलस बढ़ेगा, उसका स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो जाएगा। उसके बुद्धि-विकास में भी अवरुद्धता आ जाएगी। अतः बच्चे को नींद पूरी मिलनी ही चाडिए। अधूरी या कम नहीं।

पूरी नींद क्यों नहीं ले पाता बच्चा ?

  1. यदि मां चाहती है कि बच्चा पूरी नींद ले, तो उसे उन कारणों को भी जान लेना चाहिए जिनसे बच्चे की नींद उखड़ जाती है या वह पूरी नींद नहीं ले सकता।
  2. बच्चे की नींद उखड़ जाएगी यदि उसका पेट न भरा हो। अतः उसे पेट भरकर दुध पिलाएँ, तभी सुलाएं।
  3. बच्चा गहरी नींद नहीं सो सकता यदि उसका बिस्तर आरामदायक नहीं होगा! अतः बच्चे को सुलाने से पहले उसका विस्तर झाइकर, ठीक प्रकार से सुलाएं |
  4. मक्खी-मच्छरों का प्रकोप होगा तो बच्चे को ठीक से नींद नहीं आएगी था नींद बीच में ही दूट जाएगी। अतः मक्तर-मकखी दूर रखने का प्रबंध अवश्य करें।
  5. बच्चे के कपड़े ज्यादा कसे नहीं होने चाहिए। उसको सोने, पास पलटने में परेशानी आएगी तथा वह गहरी नींद नहीं सो पाएगा। अतः ढीले कपड़े पहनाकर सुलाएं।
  6. बच्चे को सुलाने से पहले उसे पेशाब अवश्य करा दें। बीच में भी एक बार उठाकर पेशाब करा दें। यदि बच्चा अपना विस्तर गीला कर दे या मल त्याग दे, तुरंत उसका बिस्तर बदल दें तथा बच्चे को भी साफ़ कर दें। इस प्रकार भी वह आराम से सो पाएगा ।
  7. बच्चें को इतना इतना अधिक भी न खिलाएं कि उप्तका पेट भारी बना रहे तथा उप्तकी निद्रा बीच में ही टूटती रहे।
  8. यदि बच्चा एक ओर ही लेट रहे तो भी उसकी नींद बीच में टूट जाएंगी । इसलिए स्वयं उसकी करवट बदल दें।
  9. माता को चाहिए कि बच्चे को पूरी नींद दिलाएं। इसके कारणों को जानें। नींद बीच में न दूटे या बच्चा बेआरामी महसूस न करें, इसका तो मां को ही ध्यान करना होता है। बच्चा तो मां पर पूरी तरह निर्भर रहता है।
  10. बच्चा कमरे में घुटन न महसूस करे, नहीं तो वह घबराकर उठ खड़ा होगा, खिडकी खुली रखे ताजा हवा आती रहे सर्दी हो तो खिडकी थोड़ी खुली रहे ताकि स्वच्छ हवा तो आ सके।
  11. जब चाहे तभी बच्चे को नहीं सुला देना चाहिए। उसके सोने का समय निश्चित व नियमित करें। तभी बच्चा पूरी नींद सो सकता है।


शिशु और शौच-निवारण

शिशु तो जन्म से ही पूरी तरह से अपनी मां पर निर्भर होता है। हर बात के लिए। हर काम के लिए। मगर शौच या पेशाब की जब आवश्यकता महसूस करे वह मां की ओर नहीं देखता। जहां बैठा होता है, सोया होता है. वहीं इसका निवारण कर देता है। यह जमीन है, बिस्तर है, सोफा है, गलीचा है, शिशु उस ओर नहीं देखता। भेद नहीं जानता। पेशाब हो या पोटी, कर देता है। गलत, ठीक का उसे ज्ञान नहीं होता। शौच का रंग : पहले दस दिनों तक नवजात शिशु की पोटी का रंग हरा या भूरा होता है । मगर दस-बारह दिनों बाद वह पीले रंग का होने लग जाता है। यह प्राकृतिक परिवर्तन है। आयु के साथ होता ही है। मां इस परिवर्तन को देखकर घबराए नही। कोई चार महीने तक बच्चे की पोटी पीली ही रहती है। यह दिन-रात में कुछ चार-पांच बार हुआ करती है। बच्चे के शरीर की अपनी प्रकृति पर भी बच्चे की पोटी की मात्रा या गिनती निर्भर करती है। यदि मां केवल अपना दूध ही दिया करती है, और नहीं तब तो पीली रहेगी। जैसे ही बच्चा मां के दूध के साथ कुछ और भी लेना शुरू कर देगा उसकी पोटी का रंग काता-सा होने लगेगा। धीरे-धीरे उस बच्चे के मल का रंग बड़े लोगों की तरह हो जाता है। शौच के लिए बाधित न करें : बच्चे को जब शौच आए, तभी करने दें। धीरे-धीरे उसे नियमित करते चले जाएं। जो समय आपने बांधा है, उस पर ही बच्चों को हाथों में लेकर शौच कराने की कोशिश करें। यदि उसने आसानी से पोटी आ जाए तो ठीक। बहुत देर तक हाथों पर न लें। शौच करने को न कहें। मल त्याग करने पर बाधित न करें। जोर लगाकर शौच त्यागना ठीक नहीं। बच्चा यदि अक्सर, हर बार, आपके समय का पालन करने के लिए जोर लगाकर मल त्यागेगा तो उसके शरीर को काफी नुकसान होगा। इसीलिए तो कहा है कि बच्चे को मल त्यागने के लिए आप बाध्य न करें। उसे स्वाभाविक तरीके से ही पोटी करने दें। थोड़ी कोशिश् करके यदि पोटी कराने का समय बांधेंगे तो बच्चा उसी वक्‍त पर शौच त्यागने का आदी हो सकता है। अतः धीरज से काम लें।

नवजात शिशु की मालिश कितनी बार करनी चाहिए ? 

बच्चे की प्रतिदिन मालिश होनी चाहिए। यह 24 घंटों में दो या तीन बार करें।

नवजात शिशु की मालिश के लिए तेल

जब शिशु बड़ा होने लगे तो त्तीन से दो और फिर दो से एक बार मालिश पर आ सकती हैं। मालिश देसी या सरसों के तेल से की जा सकती है। शिशु की चमड़ी बहुत नरम होती है। अतः मालिश धीर-धीरे करें। चमड़ी कहीं लाल ही न पड़ने लगे।

नवजात शिशु की मालिश कैसे करें

जैसे-जैसे शिशु की आयु बढ़ने लगती है, मालिश को उतना धीरे मत करें, जितना शुरू में कर रहे थे। चमड़ी जितना सहन कर सके, उतना ही जोर लगाएं, उतना ही रगड़ें। आप द्वारा की गयी मालिश के निशान नहीं पड़ने चाहिये। मालिश 'हल्के-हल्के' दबाव से शुरू करें। चमड़ी रगड़ से छिलनी नहीं चाहिए, लाल नहीं होनी चाहिए, यह ध्यान रखना आवश्यक है।

नवजात शिशु की मालिश कब करें

  1. मालिश स्नान से पहले भी हो सकती है, स्नान कराने के बाद भी। जब स्नान करना हो तब भी। कुछ निश्चित नहीं।
  2. जब भी वच्चे के शरीर को साफ करें, मुलायम कपड़े के साथ को। रगड़न लगे। निशान न पड़े। उसे पीड़ा न हो।स्नान और बच्चा
  3. स्नान सबके लिए जरूरी होता है। बच्चे के लिए भी । बिना स्नान बच्चा गंदा रहेगा । उसका विकास रुकेगा। उससे दुर्गध आएगी। रोग के कीटाणु पैदा हो सकते हैं।
  4. बच्चे को दूध पिलाने या कोई भी आहार देने से पहले स्नान कराने की आदत डालें।
  5. स्नान के तुरंत बाद, कपड़े पहनाक्रर, विस्तर में लिटाकर दूध पिलाएं।
  6. बच्चे को प्रातः नहलाने की आदत डालना, विकास के लिए अच्छा रहता है। जब नहला कर, दूध पिला कर बच्चे को सुलाएंगे, उसे खूब गहरी नींद आ जाएगी। यह उसके लिए हितकर तो होगी ही, मां को भी घर के काम निपटाने का अच्छा समय मिल जाएगा।
  7. मौसम के अनुसार पानी लेकर नहलाएं।
  8. आरंभ में, भले ही मौसम कैसा हो, गुनगुना पानी ठीक रहता है।
  9. साधारण नहाने वाले साबुन का प्रयोग न करें। बल्कि जॉन्सन बेबी सोप या ऐसा ही कोई अन्य सोप लें, जो विशेष तौर पर बच्चों के लिए बनाया गया होता है।
  10. कोई भी ग्लिसरीन युक्त बेबी सोप चुना जा सकता है। केवल जॉन्सन ही नहीं।
  11. रुई के फाहे से बच्चे के कान में सरसों का तेल लगाकर ही उसे स्नान करवाएं। इससे बच्चे के कान में पानी नहीं जाएगा । कान पर पानी नहीं टिकेगा।

नवजात शिशु को कैसे नहलाना चाहिए|| Type of Bath for new born baby ||

बच्चे को बड़ों की तरह केवल एक प्रकार समान नहीं बल्कि निम्नलिखित तरीकों से करवाया जा सकता है। आइए, इसे भी थोड़ा जान लें ताकि शिशु को समय के अनुसार ही स्नान करवाया जा सके।

बच्चे को स्पंज- स्नान कैसे कराते हैं ?

स्पंज-स्नान उतना ही लाभकर है जितना आम या अन्य समान अथवा टब स्नान। जब भी स्पंज-स्नान कराना हो।

  1. शिशु को गोद में रखें। मेज पर लिटाएं। लकड़ी के पट्टे पर जब भी ऐसा स्नान करवाएं, बच्चे को सीधे तख्ते पर नहीं लिटाना चाहिए। उसके नीचे तौलिया, मोजा आदि बिछा होना चाहिए। गोद के सिवा कही भी लिटाएं यह आरामदायक होना चाहिए।
  2. बच्चे के शरीर पर प्रतिदिन साबुन न लगाएं। सप्ताह में दो या तीन बार काफी रहता है।
  3. बच्चे के सिर और चेहरे पर गरम तथा गुनगुना पानी प्रयोग में लाएं। आसानी से सफाई हो जाएगी।
  4. सर्दियों में एक दिन छोड़कर भी स्नान करवा सकते हैं गर्मियों में प्रतिदिन स्नान करवाएं।
  5. जिस दिन वच्चे को स्नान नहीं करवाना हो तो गीला व मुलायम तौलिया लेकर वच्चे की टांगें, जाधे, बगलों तथा हाथ-पैर पोंछ दें। ताकि बच्चा साफ रह सके।
  6. चाहे नहलाएं या तौलिए से पोंछें, बेवी पाउडर लगाती रहें।
  7. स्पंज स्नान में बच्चे के शरीर पर पानी डालें। ठीक प्रकार से वेबी सोप लगाएं। ऐसा कर आप बच्चे के सारे रोम कूप खोल देंगे। इससे वच्चे के शरीर में रक्त-प्रवाह सुचारु हो जाएगा।
  8. जब भी स्पंज स्नान करवाएं, बच्चे के शरीर को जोर से न रगड़ें। धीर-धीरे स्पंज करें। बहुत देर तक भी स्पंज करना ठीक नहीं रहता।

स्पंज स्नान की एक और विधि || Process of sponge bath for new born baby ||

स्पंज स्नान की एक और विधि है। जिसे आमतौर पर अपनाया जाता है। उसके अनुसार

  1. स्पंज को पानी में भिगो लें।
  2. इस स्पंज से बच्चे का शरीर धीरे-धीरे मलें।
  3. अलग से बना रखा सावुन का घोल लें और उसमें स्पंज को भिगो लें स्पंज। इसे अब बच्चे के शरीर पर धीरे-धीरे मलें।
  4. प्यार से मलना चाहिए। झटके से तो बिलकुल भी नहीं।
  5. इस सारी क्रिया में बच्चे को पीछे की ओर से, गर्दन सहित साधे रखे। उसे झटका न ल़गे। गर्दन को तो बिलकुल भी नहीं।
  6. अब बच्चे को उल्टाएं। हथेली पर पेट हो। इस प्रकार छाती के बल उल्टाएं। ठीक से साधे रहें। लगे कि बच्चा छाती के चल लेटा है।
  7. इस समय बच्चे का मुंह नीचे की ओर रहेगा। साबुन वाला स्पंज ध्यान से लगाएं। बच्चे की आंखों में साबुन किसी भी दशा में न जाए। इसका ध्यान अवश्य रखें।
  8. कानों में भी पानी या साबुन वाला पानी बिल्कुल न जाए। थोड़ी-सी सावधानी की जरूरत है। यही है स्पंज स्नान की दूसरी विधि।

बच्चे को टब-स्नान देना || Process of Tub bath for new born baby ||

बच्चे को दब स्नान देना आम बात है। हर घर में अक्सर यही स्नान की विधि अपनाई जाती है

  1. मौसम के अनुसार पानी का तापमान बनाकर टब में भरे, टब मे इतना पानी हो कि बच्चे को नहलाते समय केवल कमर तक भीगे। इससे ऊपर नहीं। लेटे हुए बच्चे की भी केवत कमर तक भीगे।
  2. बच्चे को इस पानी वाले टब में बिठा दें।
  3. अपनी गोद में एक नरम मोमजामा बिछा लें।
  4. बच्चे को इस मोमजामे पर, अपनी गोद में बच्चे को लिटा लें। तब ही साबुन लगाएं-नरम-नरम हाथों से। सख्ती से नहीं।
  5. साबुन लग जाने पर उसे टब में बिठा दें। धीरे-धीरे मग के साथ पानी डालती रहें। यह पानी बालटी में भी हो सकता है, जबकि बच्चा टब में बैठा हो। पानी आराम से डालें। हाथ से बच्चे का शरीर मलती रहें।
  6. अब बच्चे को टब में लिटा दें। ऐसे समय मां का एक हाथ नीचे से, पीठ की ओर से, गर्दन के नीचे रहे । यह इसलिए कि बच्चे का सिर पानी से ऊपर रहे | खाली हाथ से पानी भी डालें। शरीर को भी धीरे-धीरे मलती रहें।
  7. अब बच्चे को टब में बिठाकर, उसके बदन पर दोनों हाथों से तेल को हल्का-हल्का लगाएं। फिर दो-तीन मग पानी डालकर मल दें।
  8. बच्चे को टब से निकालकर अपनी गोदी में बिठा लें, जहां मोमजामा या तौलिया पहले ही बिछा हुआ हो।
  9. बच्चे के बदन को धीरे-धीरे नरम तौलिए से मलें तथा उसे रोयेंदार तौलिया से ठीक से पोंछ दें। पानी सुखा दें।
  10. बच्चे के बदन पर हल्का-सा बेबी पाउडर लगा दें। फिर कपड़े पहनाए।
  11. बच्चे को इसके बाद ढक दें तथा दूध पिलाकर सुला दें।

टब-स्नान के प्रति कुछ जरूरी बातें || Important things about Tub Bath ||

बच्चे को किसी भी प्रकार का स्पंज स्नान कराना हो या टब-स्नान। स्नान से पूर्व स्नान की तैयारी कर लें। स्नान के समय भी सावधानी बरतें। इसमें कुछ जरूरी बातें ध्यान में रखें। ये हैं-

  1. नहलाने से पूर्व नहलाने का सारा सामान एक जगह रख लें
  2. बच्चे के कपड़े, पाउडर आदि पास रखें। यदि बोतल से दूध देना हो तो इसे तैयार कर, बोतल में डाल, कपड़े में लपेटकर बोतल पहले ही रख दें। दूध का तापमान ठीक बना रहे।
  3. ऐसा प्रबंध हो कि नहलाते समय या बाद में भी बच्चे का बदन अधिक देर तक नंगा न रहे।
  4. फिर भी यह कह देना जरूरी है कि नहलाने से पूर्व मां के करीब सावुन, स्पंज, तेल, पाउडर, तौलिया, मोमजामा, नाक-कान साफ करने के लिए रुई, कुर्ता या फ्राक, बच्चे की बनियान, उसके पोतड़े आदि सब पास पड़े होने चाहिए। नहलाते समय किसी चीज के लिए उठना न पड़े।
  5. बच्चे को नहलाने और बदन पोंछ देने के बाद बेबी पाउडर पफ के साथ लगाना ज्यादा ठीक होता है।
  6. पाउडर लगाते समय ध्यान रहे कि यह दोनों जांघों के बीच, बगलों मे, गरदन पर, पीठ व छाती पर लग सके, इसके वाद ही बच्चे को बनियान और बाकी कपड़े पहनाएं।
  7. पहले भी कहा जा चुका है, पानी ऋतु के अनुसार हो। स्वयं हाथ से चेक करें। तभी बच्चे के बदन पर डालें। बच्चे को न तो अधिक ठंडा पानी मिले न ही अधिक गरम। मत्तलब यह कि बच्चे के शरीर के लिए यह सुहाता होना चाहिए।
  8. जैसा कि पहले बताया जा चुका है, बच्चे के चेहरे और सिर पर साबुन लगाते समय बच्चे को छाती के बल उल्टा लिटाएं। चेहरा टब अथवा जमीन की ओर जरूर हो, मगर पानी से ऊपर ही रहे।
  9. पानी डालेंगे तो चेहरा नीचे की ओर होने के कारण सावुन उसकी आँखों में नहीं जाएगा ।
  10. इसी प्रकार कानों और नाक को भी पानी, साबुन से जरूर बचाए।
  11. बच्चे के शरीर की छिपी हुई जगहों पर अक्सर मैल चला जाता है। इस ओर कुछ माताएं ध्यान भी नहीं देतीं। ये स्थान हैं- गुप्तांग, जाँघों के बीच का भाग, बगलों का स्थान। उनको ठीक प्रकार से साबुन, पानी से साफ रखना जरूरी है। जब बच्चे को न भी नहलाना हो तो भी गीला तौलिया लेकर बच्चे के गुप्तांग तथा छिपे रहने वाले हिस्से साफ करने बहुत जरूरी हो जाते हैं।
  12. यदि ये भाग ठीक से साफ न रखे जाएं तो यहां पर फुसियां होने का डर बना रहता है।
  13. जब आप बच्चे को नहला रही हैं, बच्चे की नाक, कान की ओर विशेष ध्यान दें। पूरी सफाई रखें। विशेषकर कान की सफ्राई के लिए बड़ा सावधान रहने की जरूरत है। इसे बड़े लोगों से समझ लेना चाहिए।

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