गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास ||Development of child throughout the pregnancy in Hindi ||

गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास

गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास सदा एक ही प्रकार से, एक ही रूप से,एक ही गति से नहीं हुआ करता। समय के साथ कुछ भिन्‍नता रहती है।

  1. पहले तीन महीनों तक तो शरीर अपना रूप धीरे-धीरे धारण करता चला जाता है। इसमें तेजी नहीं आत्ती।
  2. तीन महीने के बाद तो बच्चे के शरीर का विकास बड़ी तेजी के साथ हुआ करता है। इसीलिए मां को अधिक पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है। बच्चे के शरीर के विकास की जरूरत भी पूरी करनी होती है।
  3. जब गर्भस्थ बच्चे की आयु 9 महीनों तक पहुंच जाती है तो इसके शरीरका वजन 6 से 8 पौंड तक हों जाता है। यह मां के शरीर, मां की प्रकृति, मां की खुराक पर निर्भर करता है कि वजन कितना हो पाता है।
  4. तीन मास के बाद तथा नौवें महीने तक पहुंचते-पहुंचते बच्चा मां के भोजन से अथवा शरीर से सभी विटामिन प्राप्त करता जाता है।
  5. एक अनुमान के अनुसार इस समय तक गर्भस्थ शिशु कोई साढ़े चार से साढ़े पांच सौ ग्राम प्रोटीन, बीस ग्राम कैल्शियम, 13 से 15 ग्राम फास्फोरस प्राप्त कर लेता है। वह 0.4 से 0.5 ग्राम त्तक लोहा भी प्राप्त कर लेता है।
  6. बच्चा अपने लिए यह खुराक मां की खुराक से सीधे नहीं, बल्कि मां के रक्त से पाता है। उसे इतना कुछ अवश्य प्राप्त होना ही चाहिए। यदि मां इनकी मात्रा अपने भोजन में नहीं लेगी तो उसका शरीर दिनों दिन क्षीण होता जाएगा। अच्छा हो जो मां इतना खा ले कि अपनी तथा अपने उदर में पल रहे शिशु की आवश्यकता ठीक से पूरी कर सके ।
  7. होने वाली मां को यह बात पूरी तरह समझ लेनी चाहिए कि यदि शिशु अपनी आवश्यकता मां के रक्त से तो पूरी कर लेता है, जबकि मां कम मात्रा में पौष्टिक तत्त्व प्राप्त करेगी तो उसके शरीर में अभाव होना निश्चित है। यह अभाव उसके शरीर को कमजोर कर देगा। जिसका सीधा प्रभाव प्रसव के समय देखने को मिलेगा। अतः कठिन घड़ी न आए, उसे अच्छी खुराक अवश्य लेनी चाहिए। यदि बच्चे के शरीर के विकास की आवश्यकता पूरी करते-करते मां का शरीर पहले कमज़ोर फिर अस्वस्थ हो गया तो इसका प्रभाव शिशु पर भी बुरा पड़ेगा। बह मां के उदर में पलते हुए भी रोगी हो सकता है या फिर पैदा होकर रोगी रहेगा। इसलिये क्यों न होने वाली मां अपना पूरा ध्यान रखें। इससे होने बाते बच्चे का ध्यान स्वत्त: हो जाएगा।
  8. यदि होने वाली मां का भोजन पौष्टिक है तो शिशु का भार ठीक होगा। बच्चा मां के शरीर से भरपूर पोषक तत्त्व ले सके, इसीलिए मां का स्वस्थ होना जरूरी है।
  9. जब पेट में शिशु पल रहा होता है तो मां के शरीर के अनेक अंगों में भी वृद्धि होना अनिवार्य है ताकि प्रसव के समय तथा बाद में भी, बच्चे के लिए जरूरतें पूरी हो सकें। इसलिए भी तो गर्भवती नारी को अधिक पौष्टिक आहार का मिल पाना बहुत जरूरी है। तभी वह़, उसका प्रसव का समय तथा बच्चा ठीक होगे

आहार की मात्रा ही नहीं, पोषक तत्तों का भी ध्यान हो

गर्भवती युवती को भोजन देते समय केवल मात्रा का ही ध्यान नहीं रखना चाहिए, बल्कि इनमें पाए जाने वाले पौष्टिक तत्त्वों पर भी गौर होना चाहिए। कही ऐसा न हो कि रूखा-सूख़ा भोजन देकर उसका पेट तो खूब भर दिया जाए, मगर उसमें पोषक तत्त्व कम मात्रा में ही रहे। अतः गर्भवती नारी को कैलोरी की मात्रा उतनी जरूर मिले, जो उसके शरीर की प्रकृति के लिए, उसके दिन-भर में काम करने के लिए तथा पेट में पल रहे शिशु के लिए उपयुक्त रहे। किसी भी प्रकार से कम न हो। उसका अपना शरीर भारी है या दुबला-पतला, इस पर भी कैलोरी की मात्रा का फर्क पड़ता है। जिन स्त्रियों का अपना वजन कम हो, उन्हें पहले अढ़ाई से साढ़े तीन महीनो के बीच अधिक कैलोरी वाला भोजन प्राप्त होना जरूरी है। तभी उसका काम चल सकता है। उसे तो बाद में भी कैलोरी की मात्रा अधिक ही मिले तभी वह अपने शरीर तथा शिशु के विकसित हो रहे शरीर को आवश्यकता पूरी कर सकेगी ।

गर्भवती स्त्री के लिए लापरवाही नहीं

गर्भवती स्त्री के लिए तथा होने वाले बच्चे के लिए कौन-कौन से भोजन उचित हैं, लाभकारी हैं, स्वास्थ्यवर्धक हैं, शरीर के रखरखाव के लिए ठीक हैं, इन बातों. का गर्भवती स्त्री को पूरा ध्यान व ज्ञान होना चाहिए। ठीक है कि पति तथा परिवार के सभी सदस्य गर्भवती की खुराक तथा देखभाल की जिम्मेदारी समझते हैं, फिर भी उसे स्वयं अपनी जिम्मेदारी के प्रति जरूर सचेत्न होना चाहिए और उसे स्वयं कोई लापरवाही नहीं करनी चाहिए। अपने खाने, सोने, बैठने, उठने, आराम करने, काम करने आदिमें कोई भी कोताही नहीं बरतनी चाहिए। उसे समय-समय पर अपना जरूरी आहार अवश्य लेना चाहिए। प्रसव का समय तो उसे ही झेलना होता है। अतः गर्भवती महिलाओं को सदैव सतर्क रहना चाहिए।

गर्भवती नारी को पोषक तत्व किस-किस पदार्थ से प्राप्त होते हैं || From where a pregnant women get the nutritious food ||

गर्भवती नारी को कितने पोषक तत्त्व मिलने चाहिए तथा ये पोषक तत्व किस-किस पदार्थ से प्राप्त होते हैं इस पर भी चर्चा जरूरी है। हर मां बनने वाली युवत्ती को ये बातें अपने लिए, अपने शरीर के लिए, पेट में पल् रहे शिशु के लिए अवश्य जान लेनी चाहिए। इससे वह अपने शरीर के साथ तो न्याय करेगी ही, अपने गर्भस्थ शिशु के लिए भी अवश्य न्याय कर सकेगी। अधूरी जानकारी अथवा जानकारी का न होना हानिकारक होता है, ध्येय को प्राप्त करने में रुकावट बनता है। अतः आइए, कुछ पदार्थों को, उनमें निहित तत्वों को जान लें।

गर्भवती नारी को प्रोटीन देने वाले पदार्थ || Which food gives protein to pregnant women ||

वह नारी, जो अपने शरीर में एक और शरीर का पालन-पोषण कर रही है, यदि प्रोटीन को कम मात्रा में लेती है, तो उसके अपने शरीर को भी बहुत नुकसान होता है। गर्भस्थ शिशु का बिकास भी नहीं हो पाता, रुक जाता है। उसके लिए प्रोटीन का बहुत महत्त्व है। उसे "एमिनों एसिड' मिला प्रोटीन काफी मात्रा में प्राप्त होना चाहिए। जरूरी नहीं कि महंगे पदार्थ खाएं। मौसमी फल, सब्जियां जो कि ठीक दरों पर (सस्ते ने सही) मिल जाते हैं, ये ताजे होते है। इनमें तत्त्वों की भी भरमार होती है। अतः इन्हें अवश्य लें।  कुछ प्रोटीन युक्त पदार्थ-अंडे, पनीर, मांस, दूध, पत्ता गोभी, फूल गोभी, मटर, शलगम, गाजर, दालें आदि ऐसे पदार्थ हैं जिनमें एमिनों एसिड युक्त प्रोटीन उपलब्ध रहता है। इन्हें खाने से गर्भवती युवती की काफी आवश्यकताएं पूरी हो जाती है तथा गर्भस्थ बच्चे का भी ठीक से विकास हो पाता है। इनके सेवन से शरीर का निर्माण होता है। बच्चे के शरीर का निर्माण तथा विकास, दोनों ही। शरीरके सारे कोष इसी से बनते हैं। टूटने वाले तंतु भी फिर से ठीक हो जाते हैं।  शरीर का निर्माण यदि शनैः-शनैः हो रहा हो तो प्रोटीन की मात्रा कम चाहिए यदि यह तीव्रता से हो रहा है, जैसा कि गर्भस्थ शिशु के तीन से नौ माह तक, इसकी जरूरत भी बढ़ जाती है। जिस नारी के भोजन में प्रोटीन की कमी होगी, वह पहले कमजोर हो जाएगी, फिर रोगी भी। अतः प्रोटीनयुक्त भोजन विशेष महत्व रखता है। इसे नहीं भूलना चाहिए। इसकी ओर कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए। शरीर के लिए, इसके निर्माण तथा विकास के लिए, प्रोटीन का विशेष महत्त्व हम ऊपर विस्तार से जान चुके हैं। आइए, जानें कि इसे कैसे प्राप्त किया जाता है।प्रोटीन को प्राप्त करने के निम्नलिखित साधन हैं-

  1. प्राणिजन्य स्रोत
  2. वनस्पतिजन्य स्रोत

पहला स्रोत -अंडे, दूध, मांस, मछली आदि का है। 

दूसरा स्रोत -बाजरा, गेहूँ, दालें, चावल, अन्य अनाज तथा नारियल आदि है। गर्भवती युवती के लिए विशेष प्रोटीन की तो सब शरीरों को आवश्यकता होती है। बच्चा, बड़ा, स्त्री या पुरुष सबको प्रोटीन चाहिए। मगर यह गर्भवती नारियों के लिए तो और भी जरूरी है। पेट में पल रहे शिशु के लिए, उसके अपने लिए अनेक तंतुओं का निर्माण इसी से होता है। निर्माण के अतिरिक्त टूट-फूट का प्रबन्ध करने, इन तंतुओ की मरम्मत के लिए भी प्रोटीन प्रचुर मात्रा में चाहिए। गर्भस्थ बच्चे के तंतुओं का निर्माण तभी होगा, जब गर्भवती मां को प्रोटीमयुक्त भोजन मिल सकेगा। कार्बोज देने वाले पदार्थ प्रत्येक प्राणी को कार्बोज युक्त पदार्थ चाहिए। गर्भवती युवती की तो अवश्य ही चाहिए। कार्बोज हमारे शरीर को सभी अनाजों (चावल भी), इनसे बनी रोटी या भोजन, आलू, गुड़, गन्ना, शहद, सभी मीठे फल, सूखे फल, खजूर, चीनी तथा ताजे फल, चुकंदर आदि से प्राप्त होता है। गर्भवती स्त्री तथा गर्भस्थ शिशु को ये पदार्थ नियमित खिलाते रहें । कभी एक चीज नहीं तो दूसरी सही, पर कैलोरी में कमी न आने दें।

गर्भवती नारी के लिये कार्बोज की आवश्यकता || Importance of carbohydrates for pregnant women in Hindi ||

कार्बोज लेने से कमजोरी दूर हीती है। सर्दी को सहने की ताकत आती है। शरीर उष्ण बनता है। यह शरीर के लिए ईंधन का काम करते हैं। जो शारीरिक परिश्रम करते हों, उन्हें तो कार्बोज़ की अधिक मात्रा की आवश्यकता पड़ती है। खाद्य दार्थ हमारी इस कमी को स्वतः पूरा कर देते हैं।

कार्बोज की मात्रा -गर्भवती युवती को कार्बोज देते समय उसके अपने भार को नजर में रखा जाता है।जिस गर्भवती नारी का अपना भार काफी हो, उसे कार्बोज अधिक नहीं दिए जाने चाहिए। ऐसा न हो कि अधिक कार्बोज के कारण उसका शरीर और भी भारी होने लगे क्योंकि इससे चर्बी तीव्रता से बढ़ने लगती है। जिनका अपना भार कम हो, वे कार्बोजयुक्त पदार्थ अधिक ले लें तो भी कोई हानि नहीं होती । भारी शरीर वाली गर्भवत्ती नारी यदि कार्बोजियुक्त पदार्थ अधिक लेने लगें तो उनका शरीर प्रसव के समय अधिक तंग होगा। इस बात का वे स्वय भी ध्यान रखे तथा जो लोग उनकी देखभाल पर हो वे भी कार्बोजयुक्त पदार्थों के लिए हाथ खींचकर रखे ।

गर्भवती नारी के लिये वसा की आवश्यकता || Importance of Fat for pregnant women in Hindi ||

यदि शरीर को स्वस्थ, चुस्त-दुरुस्त बनाए रखना हो तो वसा युकत पदार्थों के सेवन पर नियंत्रण रखें। हां, वसा को यदि सीमित मात्रा में लें तो यह शरीर को सुंदर बनाएगा। शरीर में चिकनापन दिखाई देगा। इसीलिए तो वसा की हर प्राणी को जरूरत होती है। जो वसा की अधिक मात्रा पाते हैं, उनके शरीर का स्वरूप बिगड़ जाता है। मगर जो इसे कम मात्रा में प्राप्त करेंगे, उनका शरीर भी ठीक नहीं रहेगा। अतः वसा उपयुक्त मात्रा में ही उपयोगी रहेगा। वसा के तत्व -कार्बन, ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन--ये हमें वसा से तो मिलते है, इन्हें हम कार्बोजयुक्त पदार्थों से भी प्राप्त कर लेते हैं। शरीर को ये गर्मी देते हैं। जैसे किसी भट्ठी में ईंधन जलाकर उष्णता पाई जाती है, वैसे ही वसायुक्त भोजन करके भी उष्णता प्राप्त की जाती है। शरीर को गर्मी देती है। शक्ति भी प्रदान करती है। वसा की विशेषता-यह पानी से भी हल्की होती है। पानी में डालने से तैरने लगती है। जैसे-जैसे ठंडक मिलेगी, वसा जम जाएगी। जैसे ही गर्मी प्राप्त होगी, वसा पिघलकर फिर पहले रूप भें आ जाएगी।

गर्भवती नारी के लिये वसा के स्रोत || Sources of fat for pregnant women in Hindi ||

कार्बोज की तरह वसा भी उन्हीं दो स्रोतों से प्राप्त होती है, जिनसे कार्बोज प्राप्त होता है।

(1) प्राणिजन्य,

(2) वनस्पतिजन्य

पहली श्रेणी में आने वाले पदार्थ हैं--अंडा, मांस, मछली, दूध, मक्खन, घी,क्रीम आदि। यह वनस्पतिजन्य से अधिक बेहतर मानी जाती है।

दूसरी श्रेणी में आने वाले पदार्थ हैं- मूंगफली, तिल, मेवा, सरसों का तेल, बादाम, नारियल, सोयाबीन का तेल, जैतून, महुआ आदि। 

चर्बी पर प्रभाव : जैसे कार्बोजयुक्त पदार्थ खाने से शरीर में चर्बी बढ़ती है, बैसे ही वसा वाले पदार्थ हमारे शरीर में चर्बी को बढ़ाने का काम करते हैं। अधिक मात्रा में वसायुक्त पदार्थ खाना बहुत हानिकारक होता है। इन्हें छोड़ देने, न खाने से भी काम नहीं चलता। सीमित मात्रा ही ठीक रहता हैं। इससे शरीर में मोटापा लाया जा सकता है।

गर्भवती नारियों को तो वसा का प्रयोग संभलकर करना चाहिए मोटी नारियों का इसका सेवन कम ही ठीक रहता है अन्यथा उन्हें बहुत मुश्किल होगी। जिनका शरीर दुबला हो यदि वे इसकी अधिक मात्रा ले लें तो कोई हानि नहीं होगी।

गर्भवती नारी के लिये खनिज लवणों की आवश्यकता || Importance of Minerals for pregnant women in Hindi ||

खनिज लवणों की प्राप्ति कोई स्वस्थ हो या अस्वस्थ, पुरुष हो या नारी सबको अपने आहार मे खनिज त्तवण सम्मिलित करने चाहिए। गर्भवती युवतियों के लिए खनिज लवणों को भोजन के द्वारा प्राप्त करना और भी जरूरी है। खनिज लवणों को निर्जीव पदार्थ भी कहा गया है। कुल शरीर का एक चौथाई खनिज लवणों से बना होता है। हमारी हड्डियों के लिए, इन्हें बनाए रखने के लिए, इनकी मरम्मत करने के लिए खनिज लवणों का होना बहुत जरूरी है। दाँत ठीक रखने के लिए भी खनिज लवण सहयोगी होते हैं। हड्डियों तथा दांतों के अतिरिक्त, हमारी शरीर में विद्यमान मांस में भी खनिज लवण ही होते हैं। शरीर के कुछ कोमल तत्त्व भी इसी से निर्मित होते हैं। कुल मिलाकर शरीर का एक चौथाई भाग, जैसा कि ऊपर कहा है, खनिज लवणों ही बना है। इनका रखरखाव भी इसी से होता है।

दिल की धड़कन-हमारे शरीर में दिल सक्रिय काम में लगा रहता है। यह कभी विश्राम नहीं करता । हां, इसकी धड़कन घटती-बढ़ती रहती है। इसी के सहारे तो रक्त शरीर में प्रवाह करता है, फेफड़ों तक पहुंचता है। फेफड़ों के ठीक प्रकार से काम करने और दिल की धड़कन के बढ़ने-घटने का घनिष्ठ संबंध है। यदि शरीर में ख़निज लवणों की कमी आ जाए तो इसका दिल की धड़कन पर बुरा असर पड़ता है। जब शरीर कार्य करता है तो गुर्दों में कुछ दूषित द्रव्य जमा हो जाते है। इनका निकालना जरूरी है। खनिज लवण हमारे इस कार्य को आसान कर, गुर्दो को साफ कर देते हैं।

खनिज लवर्णों के बिना- यदि हमारे आहार में खनिज लवण विद्यमान न हो तो हमारा शरीर ठीक प्रकार से कार्य नहीं कर प्तकता । गर्भवती नारी के लिए तो इसका भोजन में होना अत्यंत आवश्यक है। उसे अपना शरीर भी चलाना है तथा गर्भस्थ शिशु के शरीर का विकास भी करना है। यदि खनिज लवण नहीं होंगे तो दांत, हड्डियां, दिल की धड़कन, फेफड़े, गुर्दे हर एक पर इसका प्रभाव पड़ेगा। इसकी कमी होने से गर्भस्थ बच्चा अपंग भी हो सकता है अतः उसे तो इसकी उपयुक्त मात्रा मिलनी ही चाहिए। 

खनिज लवणों का क्षय- हमारी अनेक स्वाभाविक तथा आवश्यक क्रियाओं के कारण हमारे शरीर से खनिज लवणो की निकासी होती रहती है। इस कमी को पूरा करना होता है। पेशाब से, थूक के साथ, बुखार से, खंखार मारने से, पसीना निकलने आदि क्रियाओं से शरीर से खनिज बाहर चले जाते हैं। शरीर में इनकी कमी महसूस होने लगती है, शरीर कमजोर होने लगता है। यदि हम आवश्यक मात्रा में खनिज लवण पदार्थ खाते रहें तो यह कमी हमें अख़रेगी नहीं। गर्भवती नारी को भी यदि लवणों वाले पदार्थ प्राप्त होते रहें तो उनका अपना शरीर तो ठीक रहेगा, शिशु की भी जरूरत पूरी होती रहेगी।

गर्भवती नारियाँ खनिज लवण कहाँ से प्राप्त करें ? || Sources of Minerals for pregnant women in Hindi ||

  1. खनिज लवणों को शरीर में पहुंचाने के लिए दूध के प्रयोग की सलाह दी जाती है। इसी में खनिज लवण काफी मात्रा में मिलते हैं। हां, दूध में केवल लोहे के खनिज तो नहीं पाए जाते, शेष सभी खनिज लवण केबल दूध का सेवन करने से प्राप्त हो जाते हैं।
  2. बाकी ऐसा कोई भी खाद्य-पदार्थ नहीं, जिसमें सारे-के-सारे जरूरी खनिज लवण उपलब्ध हो सकें। सभी खनिज लवण पाने के लिए कई पदार्थों का सहारा लेना पड़ता है।
  3. हरी सब्जियों को सदा खाने की सलाह दी जाती है। स्वस्थ तथा रोगी, दोनों भरपूर मात्रा में हरी सब्जियों का सेवन कर सकते हैं। इनमें भी अम्ल तत्त्व की मात्रा काफी कम हुआ करती है। हरी सब्जियों का क्षारप्रधान माना गया है।
  4. अम्ल तत्वों को कमी पूरी करने के लिए नारियल, बादाम, गेहूं, बाजरा, दालें, मांस आदि खाने को कहा जाता है। अतः इसे गर्भवती युवती भी खाए।
  5. गेहूँ, जी की ऊपरी परत खनिज लवणों के लिए नितांत जरूरी है। इसे चोकर के रूप में निकाल देना हमारी बहुत बड़ी भूल है। इसी परत में तो खनिज लवण काफी होते हैं। फिर इसे क्यों गंवाना।
  6. जब भी साग, सब्जी, दाल, चावल कुछ भी पकाएं ख़निज पदार्थों को बचाए रखना जरूरी है। थोड़ी-सी नासमझी से हम इन्हें पकाते प्तमय इनसे खनिज लवण जाया कर देते हैं। यदि इन्हें पकाते समय ढककर रखा जाए। भाप न निकलने दें, इससे ईंधन की बचत होगी। भोजन तीव्र तैयार होगा। ये लाभ तो है ही, भाप से निकलने वाले, उड़ जानेवाले खनिज लवण भी तो बच जाएंगे। शरीर को जरूरत पूरी हो जाएगी।
  7. दूध में शेष सभी खनिज लवण होते हैं, केवल लोहेयुक्त खनिज लवण नहीं होते, जैसा ऊपर कहा गया है लोहेयुक्त लवण पाने के लिए डॉक्टर हमें केला, मांस, अंडे, हरी सब्जियां, आलू, सूखे फल आदि खाने की सलाह देते हैं। इससे दूध की अतिरिक्त कमी पूरी हो जाती है।
  8. कैल्शियम एक ऐसा खनिज लवण है जिसकी हमारे शरीर को बेहद जरूरत होती है। इसके बिना हमारा शरीर नहीं चल सकता। गर्भस्थ बच्चे को भी इसकी आवश्यकता होती है। गर्भवती मां को इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  9. हमारे दांत मजबूत रहें। हमारी हड्डियां ठीक बनी रहें। इनमें शक्ति हो। टूटन न हो। इसके लिए कैल्शियम का शरीर में होना जरूरी है।
  10. रक्त का प्लाज्मा ठीक बना रहे। पाचन रस तैयार होता रहे। हमें कैल्शियम का किसी-न-किसी रूप में अवश्य सेवन करना चाहिए।
  11. विशेषकर बच्चों के लिए कैल्शियम इसलिए भी आवश्यक है, क्योकि इस कमी से उन्हें सूखा रोग हो सकता है। उनकी हृड्डियां कमजोर हो सकती हैं। थोड़ी-सी, छोटी-सी चोट लगने से हड्डियां टूट सकती हे।
  12. बड़े हों चाहे छोटे, दांतों की रक्षा के लिए कैल्शियम बहुत अनिवार्य है। बच्चों को तो नियमित कैल्शियम की गोली देनी चाहिए।
  13. शरीर और मस्तिष्क में नाड़ियों का सामंजस्य बनाए रखना जरूरी है। इसके लिए यदि हम प्रचुर मात्रा में कैल्शियमयुक्त पदार्थ का सेवन करे, तो ठीक रहेगा।
  14. हमारे रक्‍त में सफेद तथा लाल कण मौजूद रहते हैं। लाल कणों को बनाने के लिए कैल्शियम का सेवन जरूरी है।
  15. जिनके शरीर में रक्त की कमी होती है। उनको तो कैल्शियम अधिक लेना चाहिए। यह इस कमी को पूरा कर सकता है।
  16. जिसके शरीर में कैल्शियम उचित मात्रा में होता है, उसे लौह तत्व की कमी कभी अखरती नहीं।
  17. यदि शरीर का कोई अंग कट जाए तो निरंतर रक्त बहने लगता हे। मगर जिनके शरीर में कैल्शियम की कमी नहीं होती, उनका रक्त बहना शीघ्र बंद हो जाता है।
  18. जिस प्राणी में कैल्शिमय की कमी नहीं होती, उसके शरीर की मांस-पेशियाँ भी स्वस्थ बनी रहती हैं।
  19. यदि किसी के शरीर मे कैल्शियम की काफी कमी हो जाए तो उसका हृदय भी ठीक से काम नहीं करता। जिसका हृदय ठीक काम नहीं कर रहा, वह तो दुखी होगा ही।

कैल्शियम की कमी से अन्य परेशानियां

  1. डॉक्टरों का कहना है कि कैल्शियम आमतौर पर हड्डियों के भीतर ही बना रहता है। यहीं से यह निकलकर रक्त में जा मिलता है। यदि यह जमा ही कम होगा, तो रक्त में कम जाएगा। अतः कमजोरी महसूस होंगी।
  2. जब कभी कोई अचानक बीमार हो जाता है या उसके कही घाव पड़ जाता है। उसे ठीक होने के लिए भी कैल्शियम की जरूरत पड़ती है।
  3. अपने शरीर का निर्माण तथा विकास करने के लिए गर्भस्थ शिशु को कैल्शियम की जरूरत पड़ती है। वह इसे माता के खून से प्राप्त करता है। यदि माता को आवश्यक मात्रा में कैल्शियम युक्त भोजन न मिले तो शिशु द्वारा लिया कैल्शियम उसके शरीर में इसका अभाव बना देगा। कैल्शियम के इस अभाव से गर्भवत्ती स्त्री परेशान हो उठती है। उसके हाथ-पांव सुन्न होने लगते हैं। वह अपनी उंगलियों के जोड़ों में दर्द की शिकायत करने लगती है। उसके शरीर की सभी मांत्त-पेशियां प्रभावित्त हो जाती हैं। उनका ठीक से काम करना बंद हो जाता है। अतः किसी भी प्रकार की ऐसी परेशानी हो तो गर्भवती नारी को कैल्शियम की प्रचुर मात्रा देनी चाहिए, चाहे कैसे भी दें। इस कमी को गोली से, टीके से या भोजन के माध्यम से तुरंत पूरा करने प्रयत्न करें। यह बड़ी सावधानी बरतने की स्थिति होती है। इसमें लापरवाही करे वरना उसे और भी परेशानी हो सकती है।

हड्डियों के निर्माण के लिए-

हड्डियों के निर्माण के लिए केवल कैल्शियम ही जरूरी नहीं होता। फास्फोरस की भी जरूरत होती है। इसकी भी कमी न होने पाये वरना हड्डियों का निर्माण ठीक से नहीं होगा, विशेषकर गर्भस्थ शिशु की हड्डियो का। गर्भवती नारी के भोजन में कैल्शियम तथा फास्फोरस दोनों खनिज लवण होने चाहिए, तभी शिशु की हड्डियां मजबूत होंगी। उसके शरीर में लोहे की कभी नहीं आने देवें। वह स्वयं भी सचेत रहे तथा' उसके अभिभावक भी इस दिशा में विशेष ध्यान दें। यदि किसी कारण उसके शरीर में लोहे की कमी जा जाएगी तो उसे अवश्य रक्तहीनता की शिकायत भी होगी। इस कमी को पूरा कर देना जरूरी है।

गर्भवती युवती के शरीर में लोहे की कमी पूरी करना || How to remove iron deficiency in pregnant women ||

डॉक्टरें का कहना है कि किसी के भी शरीर में लोहे की कमी होना खतरनाक हो सकता है। इसे गर्भावस्‍था के समय तो बड़े ही ध्यान व संजीदगी से लेना चाहिए । इस अवसर पर गंभीर न होना बड़ा खतरनाक सिद्ध हो सकता है। इस कमी को पूरा करने के लिए खजूर, किशमिश, मटर, पालक, सेब तथा अंडे खिलाने चाहिए। सभी पदार्थ एक साथ भी नहीं, कभी कोई, तो कभी कोई।

गर्भवती युवती के शरीर में आयोडीन की कमी || Deficiency of iodine in pregnant women in hindi ||

जच्चा-बच्चा को या फिर गर्भवती को आयोडीन की कमी हो जाने का अंदेशा भी बना रहता है। इसका ध्यान रखना तथा इस पर काबू पाना जरूरी है। यदि मां को, बच्चे को, या दोनों को गंडमाला (Thyroid ) रोग होता नजर आए तो समझ लें कि यह आयोडीन की कमी का परिणाम है। यह स्थिति ने आए ,इसलिए गर्भवती युवती को आलू, गांठ गोभी, अरबी, गाजर तथा मछली खाने को देते रहें। इनका थोड़ा-बहुत सेवन चलता रहे तो आयोडीन की कमी नहीं होगी। गंडमाला (Thyroid ) रोग हो जाने का भय भी नहीं रहेगा। जैसा कि ऊपर विस्तार से दिया गया है, गर्भवती युवती को पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक आहार मिलते रहना चाहिए क्योंकि उसे अपने शरीर के साथ गर्भस्थ शिशु के शरीर तथा विकास की आवश्यकता पूरी करनी होती है। उसे ऐसे भोजन दें जिनमें पर्याप्त मात्रा में ग्रोटीन, कार्बोज, वक्ता, खनिजलवण तथा विशेषकर कैल्शियम अवश्य हों। इनसे उसका अपना स्वास्थ्य तो ठीक रहेगा ही, उसके गर्भस्थ शिशु का भी सर्वागीण विकास होगा। उसके शरीर का ठीक प्रकार से निर्माण तथा विकास भी होगा। इसका वर्णन अगले अध्याय में किया जा रहा है।

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