गर्भावस्था में कब डॉक्टर के परामर्श की आवश्यकता पड़ती है ? || When Doctor is required during pregnancy ?||

गर्भावस्था में कब डॉक्टर के परामर्श की आवश्यकता पड़ती है ?

गर्भवती नारी को कुछ ऐसी दिक्‍कतें भी आ जाती हैं, जो स्वयं, घर पर, अपनी मरजी से, अपने उपचार से ठीक नहीं कर सकतीं। यदि कर भी सकती हैं तो भी डॉक्टर की परामर्श की विशेष जरूरत रहती है। आइए,इन्हे जानें :

  1. कभी-कभार ठंड लगने से बुखार हो जाता है। घर सें पड़ी दवा को लें। डॉक्टर से पूछकर, उसके बताए अनुसार ही, उतनी ही मात्रा में ले।
  2. कभी गर्भवती युवती की आंखों और चेहरे पर सूजन भी हो सकती है।यह भी डॉक्टर से पूछें।
  3. कुछ गर्भवती स्त्रियां शरीर से दुबली होती हैं तथा मन से कमजोर। उन्हे गर्भावस्‍था में चक्कर भी आने लगते हैं। आंखों के सामने कई बार धुंधलका हो जाता है। ऐसी स्त्रियों का शरीर अधिक आराम तो मांगता ही है। फिर भी डॉक्टर से अपनी स्थिति को न छिपाएं।
  4. कभी कोई ऐसा कारण बन जाता है कि गर्भवती को खून आने लगता है। ऐसे समय तो अपने किसी घरेलू उपचार में न फंसकर, तुरंत विशेषज्ञ से सलाह लें।# गर्भवती स्त्री को यह बात समझ लेनी चाहिए कि गर्भ के 4-5 सप्ताह बाद भी यदि बच्चे की मां के पेट में हरकत का अनुभव न हो तो बिना देरी किये डॉक्टर को दिखाए। कई बार ऐसा भी होता है कि प्रसव से पूर्व ही पेट में पानी की थैली फट जाती है। पानी का योनि मार्ग से निकलना शुरू हो जाता है। यह स्थिति ठीक नहीं! तुरंत 'बेक-अप' की जरूरत होती है।
  5. कभी-कभार गर्भवती युवती के पेट में तेज दर्द शुरू हो जाता है। ऐसे समय अपनी डॉक्टर स्वयं न बनें। घर में पड़ी दर्द की दवा को मत्त खाएं। डॉक्टर को दिखाएँ। उसके बताए अनुसार ही चलें।
  6. कुछ गर्भवती स्त्रियों को बार-बार उल्टियां आने लगती हैं। यह भी ठीक नहीं। डॉक्टर से ज़रूर परामर्श करें ।


गर्भावस्था में गलत धारणा ||Wrong perception during pregnancy in Hindi ||

गलत धारणा कई बार घरों में यह धारणा व्याप्त रहती है, जिसके अनुसार गर्भवती स्त्री का मन जो कुछ भी खाने को करे, उसे अवश्य दें। उसकी खाने-पीने की कोई इच्छा अधूरी न रखें। डॉक्टरों का मत इस धारणा के विरुद्ध है। वे इसे ठीक नहीं मानते । गर्भवती नारी को ऐसा कुछ भी खाने को न दें जो उसकी सेहत के लिए, उसके शरीर के लिए, उसके गर्भस्थ बच्चे के लिए, उसके गर्भ के लिए हानिकारक हो। कहीं ऐसा न हो कि उसका गर्भ ही गिर जाए। अधिक गर्मी करने वाले पदार्थ तो सदा सीमित व संभलकर खाने चाहिए।

गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क का विकास || Brain development of child during pregnancy in Hindi ||

मस्तिष्क का विकास पहले गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क का विकास सबसे पहले होता है। शरीर का धीरे-धीरे तथा बाद में होता है। वह मस्तिष्क का विकास होने से ही माता के भोजन से, रक्त से आहार लेने लग जाता है। इसीलिए गर्भस्थ शिशु के सर्वागीण विकास के लिए माता को संतुलित, पौष्टिक, सही मात्रा में भोजन आरंभ से ही दिया जाना चाहिए। ऐसा भी हो कि सही भोजन के अभाव पें बच्चा मंद बुद्धि रह जाए। उसके मस्तिष्क का विकास ठीक से न हो। बच्चा चतुर हो, चुस्त हो। यह सब मां की सोच, मां के आचार-विचार, मां के वातावरण तथा मां को' मिलने वाले आहार पर बहुत ज्यादा निर्भर रहता है। गर्भवती युवती तथा उसकी देखभाल के लिए जिम्मेदार परिजन इस बात का तभी से ध्यान रखें, जब से उसके पांव भारी हुए है जब उसने गर्भवती होने की बात कह दी है।

जेसे ही बच्चा पैदा होता है, उसके जन्म-समय को लिख लिया जाता है। अब उसकी जन्मकुंडली बनती है तथा उसके ग्रहों को भली प्रकार से जाना जाता है। नवजात शिशु अपने लिए कैसा है। माता-पिता तथा ननिहाल के लिए कैसा रहेगा। छोटे या बड़े भाई-बहन पर इस बच्चे के ग्रहों का क्‍या प्रभाव रहेगा। ऐसा सब जानना चाहते हैं। इतना ही नहीं, जीवन-भर उसकी जन्मकुंडली ले ही जन्मपत्री बनाई व पढ़ी जाती है। इसी समय को ध्यान में रखकर, ग्रहों के प्रभाव को देखते हुए, बच्चे की राशि, बच्चे का वर्ष-फल तैयार कियाजाता है। यदि कहीं कोई अड़चन लगे तो बच्चे के भविष्य को सुखद बनाने के लिए पूजा-पाठ, दान-पुण्य या अन्य उपाय किए जाते हैं। माता-पिता, अभिभावक इस बात में कम या अधिक, मगर जरूर विश्वास रखते हैं। कोई भी दुर्घटना हो जाने पर भी जन्मपत्री को देखा या दिखाया जाता है। कहने का अभिप्राय यह है कि बच्चे ने कब, किस घड़ी में, किन ग्रहो में जन्म लिया यह बड़े महत्त्व की बात है तथा इसी पर बच्चे का आगामी जीवन निर्भर करता है।

बच्चे के जन्म के समय ग्रहों का महत्त्व || Importance of Astrology and Kundali for new born Child ||

अनेक समाज- सुधारकों, अवतारों, राजनेताओं या किसी भी क्षेत्र में ख्याति प्राप्त महानुभावों की जीवनी पर जब चर्चा होती है तो उसके जन्म के समय विभिन्न ग्रहों की स्थिति पर अवश्य विचार होता है। पक्ष, वार, दिन, हर बात का जिक्र किया जाता है। यहां तक कि उनकी मृत्यु के समय ग्रहों की क्‍या स्थिति थी, इसे ही जानकर यह कहा जाता है कि अमुक मृतक को स्वर्ग में स्थान मिलेगा या नरक में, शरीर की गति हुई या नहीं, पुनर्जन्म मिलेगा या मोक्ष, पंचांग के आधार पर यह सब निश्चित कर तिया जाता है। जिस समय अर्जुन के बाणो ने भीष्म पितामह को धराशायी कर दिया उनको बाणों की सेज पर स़ुला दिया इच्छा-मृत्यु का अपने पिता श्री शांतनु से वर पा चुके भीष्म ने तब तक रोके रखा जब ठीक समय नहीं आया। गर्भ धारण का समय ठीक इसी प्रकार, जन्म तथा मृत्यु के अनुरूप, इस बात पर भी है कि बच्चे का बीज मां के पेंट में कब रोपा गया।

वातावरण का प्रभाव

बच्चे के पैदा होने, उसके रंग-रूप सौंदर्य तथा ज्ञान-ध्यानपर भी इस वातावरण का सीधा और स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। इसे सब मानते है। इससे आंखें मूंदकर बुरा-सा वातावरण बनाएं रखना होने वाले बच्चे को कुप्रभावित करना ही होगा। अतः मां इस वात के लिए सावधान रहे | सचेत होकर अपने शयनकक्ष या आसपास को सुंदर, सौम्य तथा अच्छे आचरण से सजा-सवारकर रखे।

तस्वीर का प्रभाव || Effect of pictures during pregnancy in hindi ||

यह बात अच्छी प्रकार से स्थाप्रित हो चुकी है कि यदि गर्भवती युवत्ती ने अपने कमरे में किसी डरावनी आकृति, किसी राक्षस या हब्शी का कैलेंडर टांग रखा हो, और उसे ही सोते-जागते देखती रहे तो बच्चे की शक्ल-सूरत उस काली-सी तस्वीर की तरह ही होगी । केवल रंग ही नहीं, नयन-नक्श भी वैसे ही उभरेंगे। माँ के मन में, आंखों में जो तस्वीर बसी हुई है, वैसा ही बच्चा पैदा होगा। माँ का अपना रंग-रूप, सुंदरता तथा पति का गोल, गोरा चेहरा तथा बाल उस होने वाले बच्चे में नहीं होंगे। रोपे गए बीज क्री विशेषताएं भी बार-बार देखे गए चित्र से पिछड़ जाएंगे तथा बच्चा बदशक्ल पैदा होगा।

मत चूके : कुछ विशेषज्ञों का तो इतना भी मानना है कि यदि सामने किसी सुंदर लडके का, शिशु का चित्र है तो गर्भ में भी पुल्लिंग बच्चा ही बन पाएगा और यदि किसी सुंदर गुड़िया, डॉल का फोटो रखा है, बड़े आकार का है, लड़कियों वाला ही रंग-रूप तथा केश-निखार है तब लड़की पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है। अतः माता-पिता इस बात को मन में बिठाकर किसी अति सुंदर बच्चे की तस्वीर, कैलेंडर टांगें, जिस पर उनकी नजर पड़ती रहे। गर्भ धारण कर लेने से पहले ऐसा करना और भी शीघ्र तथा अच्छे परिणामों की संभावना बढ़ा देता है। अतः नव दंपति, या संतान के इच्छुक पति-पली को इस बात से चूकना नहीं चाहिए। जो बातें आज विशेषज्ञ भी मानने लगे हैं। जिन बातों के परिणाम सामने आ चुके हैं, उनसे आंखें मूंदकर अपनी मरज़ी से चलना, अपना ही अहित करना है।

गर्भ धारण करते ही माँ की भूमिका शुरू || Responsibility of Mother since starting of pregnancy in Hindi ||

प्रवृत्ति पर असर यदि युवा माता-पिता चाहते हैं कि उनकी संतान धार्मिक प्रवृत्ति की हो। अच्छी परम्पराओं का अनुसरण करे। अच्छा जाचरण हो। माता-पिता, गुरु तथा बड़ों का सम्मान करने वाला ही। बुरी आदतों से दूर रहे। बुरी बातें न सीखे, तो उन्हें किसी बालक की जगह राम, कृष्ण, स्वामी विवेकानंद आदि के बाल्यकाल के चित्र, बड़े आकार में लेकर टांगने चाहिए। हीरो-हीरोइन या ख़लनायकों के नहीं | मां 9 महीनों तक जिस प्रकार का सुनेगी, देखेगी, सोचेंगी, वैसा ही बच्चा पैदा होगा। आज समय आ चुका है कि माता-पिता एक या दो सतानें ही चाहते हैं। यदि यह भी अच्छी न हुई तो क्या लाभ। इसके जिए गर्भधारण करने से पूर्व तथा गर्भ धारण के बाद का समय वड़ा ही उपयुक्त है। इस समय जो होने वाली मां संभलकर रहेगी, वच्चा भी एक आदर्श बालक ही पैदा करेंगी। काला, गंवार, अवज्ञाकारी नहीं।

बातचीत व अध्ययन का प्रभाव

यदि होने वाली मां गंदी, मार-काट वाली फिल्में, उपन्यासो, दुश्चरित्र वाली नायक-नायिकाओं वाले सीरियल देखेगी, सुनेगी तो इसका सीधा प्रभाव पेट में पल रहे बच्चे पर पड़ेगा। उसकी सोच, उसकी बुद्धि भी वैसी ही होगी। निम्न स्तर की, घटिया सोच वाली और यदि वह अपने पति के साथ, परिवारजनों के साथ बैठकर अच्छी बातें, अच्छे आचरण के किस्से, वीर बालकों की कहानियां पढ़ेगी, सुनेगी, तो बालक भी डरपोक, गन्दे विचारों वाला न होकर उत्तम बुद्धि वाला होगा। कहने का अभिप्राय यह है कि बच्चे के गर्भ में रहते हुए, माता जैसा सुनेगी, पढेगी, सोचेगी, देखेगी, वैसा ही. बच्चा पैदा होगा। मां के माहौल, मां की सोचके अनुरूप ही।

उदाहरण आइए, इस सिलसिले में महाभारत से एक उदाहरण लेकर, पूरी बात समझते हैं। अर्जुन-सुभद्वा प्रेमपाश में लेटे थे। सुभद्रा के गर्भ में बच्चा पत्र रहा था। इसी बालक का नाम बाद में अभिमन्यु रखा गया। अर्जुन-सुभद्वा में युद्ध की चर्चा शुरू हो गई। अर्जुन ने चक्र व्यूह-चक्र का वर्णन आरंभ कर दिया। व्यूह-चक्र में सैनिक किस प्रकार खड़े किए जाते हैं। उनकी संख्या कितनी होती है। किस पंक्ति में कितने सैनिक किस प्रकार खड़े होते हैं। इसे बेधने के लिए, तोइने के लिए, इसमें प्रवेश करने के लिए सैनिक को किस प्रकार अंदर प्रवेश करना होता है ताकि वह दुश्मन डारा रचित इस व्यूह चक्र मे पहुँच सके, रास्ते में ही पकड़ा न जाए। जकड़ा न जाए। घायल न हो सके। मार ही न दिया जाए। इस प्रकार अर्जुन अपने शयन-कक्ष में, पत्नी सुभद्रा के साथ लेटे-लेटे सारा वृत्तान्त सुना रहे थे। सुभद्रा भी बड़े चाव के साथ ध्यानपूर्वक सुनती रही। उसने जो रुचि ली, इसका प्रभाव गर्भस्थ अभिमन्यु पर सीधा पड़ा | पिता द्वारा समझाई हर बात को उसने ध्यान से सुना, समझा और याद रख लिया। अभी वह गर्भ में ही तो पल रहा था। माता-पिता की यदि इस बात का उस पर प्रभाव पड़ा तो उन सब बातों का भी तो पड़ता होगा, जिन्हें वे कहते होगे, करते होंगे, सुनते होंगे, देखते होंगे। पति अर्जुन की बातें सुनते-सुनते पत्नी सुभद्रा को नींद आ गई। अर्जुन ने व्यूह-चक्र में प्रवेश की तो पूरी कहानी सुना दी थी। मगर इससे निकल पाने की नहीं। इसके बाद इस विषय पर कभी चर्चा ही नहीं हुई | जब महाभारत युद्ध छिड गया तो अचानक कौरवों द्वारा व्यूड-चक्र की रचना कर पांडवों को ललकारा। उस समय इस ललकार का उत्तर देने वाला और कोई योद्धा उपलब्ध नहीं था। बालक अभिमन्यु अपने अस्त्र-शस्त्र धारण किए पास ही था। उसे-जब इस व्यूह-चक्र की रचना का पता चला ते उसने कौरवों की ललकार को स्वीकार कर लिया। माँ के पेट में उसने व्यूह-चक्र में सुरक्षित प्रवेश की विद्या सीख रखी थी। बाहर निकल पाने की नहीं। फिर भी अर्जुन-पुत्र वीर अभिमन्यु ने अपनी सेवाएं अर्पित कर, द्रोणाचार्य को उपयुक्त उत्तर देने की ठान ली। मां के पेट में सीखी आधी विद्या के बल पर वह दुश्मनों पर टूट पड़ा। पूरी कथा सुनी होती तो सुरक्षित बाहर भी आ सकता था। युद्ध में वह मारा गया। यदि उसे बाहर निकलने का इल्म होता तो युद्ध वीर अभिमन्यु के ही पक्ष में जाता। हमारा इस प्रसंग को कहने का अभिप्राय इतना ही है कि बच्चा गर्भ मे रहकर भी माता-पिता के आचरण, बातचीत, अध्ययन आदि से बहुत कुछ सीखता है। यदि बच्चे को गर्भ में धारण कर ही लिया है तो अपनी मौज-मस्ती में ऐसा परिवर्तन लाएं कि आने वाला बच्चा एक योग्य, वीर, बुद्धिमान तथा अच्छा नागरिक पैदा हो। सबसे अलग चेहरा । एक अच्छे व्यक्तित्व का मालिक । न कि पशु समान । यहा यह भी कहना होगा कि केवल होने वाली मां ही नहीं, पति भी, परिवार के अन्य सदस्य भी इसी दिशा में सोचें, कार्य करें, वातावरण बनाएं ताकि बच्चा उनकी इच्छाओं और आकांक्षाओं के अनुरूप उत्तरे। कम नहीं।

अच्छी नीव बनाने का अवसर

जन्म के बाद की तो बाद में सोचे बच्चे के शरीर का विकास कैसा होगा, उसकी शिक्षा कैसी होगी, उसे किस दिशा में चलाना है, उसे डॉक्टर, इंजीनियर, उद्योगपति या नेता बनाना है , इन बातों को तो एक ओर रख दें। यदि आप सोचते हैं कि बच्चा केसा भी पैदा हो जाए, आप द्वारा उपलब्ध करवाया गया स्कूल, शिक्षा, ट्यूशन उसे आपकी इच्छा जैसा बना लेगा, तो इस बात को अभी एक ओर रख दें तो अच्छा रहेगा। पहले उसकी गर्भस्थ अवस्था के विषय में विचार करें। उसके स्वास्थ्य की आपकी कैसी चिंता है, इस पर विचार करने, कार्य रूप देने का उचित समय हाथ से न जाने दें। जैसे ही आपकी पत्नी के पाँव भारी हुए हैं, तभी से आप सतर्क हो जाएं। यही तो अच्छी नीव बनाने का अवसर है।

गलत धारणा || Wrong perception during pregnancy in Hindi ||

यह धारणा कि बच्चे के शारीरिक विकास का ध्यान बच्चे के जन्म के बाद शुरू छोता है, गलत है। उसके हर प्रकार के विकास का सही समय तो उसके गर्भस्थ हो जाने से ही आरंभ हो जाता है। इस समय बच्चे के शरीर की रचना हो रही होती है। यही समय डै उसके मूल विकास पर ध्यान देने का। यदि इससमय शिशु के विकास पर ध्यान न दिया गया तो आप एक अच्छे बच्चे के माता-पिता नहीं बन पाणंगे। बच्चे के शरीर के सभी अंगों में एक जैसा विकास नही होगा। उसकी बुद्धि प्रखर नहीं होगी। कोई-न-कोई आधारभूत त्रुटि रह सकती है।

बच्चे का जन्म साधारण प्रक्रिया से || Birth of child without operation ||

यदि होने वाली मां, गर्भ धारण कर लेने के पश्चात्‌ उचित, पौष्टिक भोजन नहीं करती तो बच्चे के शरीर के विकास की गति मंद हो जाएगी। अच्छे भोजन के कारण मां के स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा तथा बच्चेका विकास भी सही रूप से हो पाएगा। ऐसे में प्रसव के समय भी कम झेलना पड़ेगा। बच्चे का जन्म साधारण प्रक्रिया से होगा। शल्य चिकित्सा या किसी छोटे-बड़े ऑपरेशन से नहीं। अतः हमें गर्भवती माता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। संस्कार, आचरण, प्रवृत्ति, भोजन, वातावरण आदि सब पहलुओं की ध्यान में रखना चाहिए, अन्यथा होने वाला शिशु आशातीत न हो पाएंगा।

गर्भवती के लिए पौष्टिक आहार || Healthy food during pregnancy in Hindi ||

युवती जब तक गर्भ धारण नहीं कर लेती, उसे केवल अपना शरीर चलाने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। मगर जब उसके पांव भारी हो जाते हैतो उसे अपने साथ, अपने पेट में पल रहे बच्चे के लिए भी भोजन की आवश्यकंताहोती है। अब एक शरीर नहीं, दो शरीर हैं। बल्कि शिशु का शरीर नए रूप से बनना है, अतः वह अपनी सारी आवश्यकता मां के शरीर से निकालने लग जाता है। यदि मां को ही उचित तथा पौष्टिक भोजन प्राप्त नहीं होगा तो, न तो वह बच्चे के विकास में पूर्ण सहयोग दे सकेगी, न ही अपने शरीर को स्वस्थ तथा सक्षम रख सकेगी। इससे बच्चे के शरीर में कहीं-न-कहीं आधारभूत कमी रह जाएगी। बच्चे के बुनियादी विकास में त्रुटि रह जाने से वह कमज़ोर शरीर वाला, मंद बुद्धि अथवा अपंग भी हो सकता है। साथ ही मां को प्रसव के समय अधिक कष्ट होगा या फिर डॉक्टर चीर-फाड़ का सहारा लेकर बच्चे को इस दुनिया मे ले आवेंगे। जच्चा को इस बात का सदा दुःख रहेगा तथा उसका शरीर भी रोगी रह सकता है। और यदि गर्भ के समय मां पौष्टिक, उचित, पूरी खुराक लेतीहै तो ऐसी कोई भी परेशानी नहीं झेलनी पड़ेगी। इसीलिए कहा है कि गर्भवती युवती के लिए पौष्टिक भोजन अनिवार्य है। इस ओर ध्यान न देना जच्चा-बच्चा, दोनों के साथ अन्याय करना होगा। इसमें भी गर्भवती युवती का अपना बड़ा कर्तव्य हैं कि वह इन सब बातों को जान कर, इनके अनुरूप चले। तभी ठीक रहेगा।

क्यों जरूरी है पौष्टिक आहार || Why healthy diet is necessary for a pregnant women in Hindi||

इस मूलभूत आवश्यकता पर जो पंक्तियां ऊपर दी गई हैं, समझदार मां के लिए इतना ही काफी है फिर भी गर्भवती स्त्री के लिए पौष्टिक आहार की क्या जरूरत है, इसी पर कुछ विचार कर लेते हैं:

  1. मां के पेट में पल रहा शिशु अपने दिनों दिन विकास के लिए अपनी मां पर ही निर्भर करता है। उसी की खुराक से पोषक तत्त्व ले पाता है। बढ़ता रहता है।
  2. शिशु का शरीर बनता रहे, विकसित होता रहे, इसके लिए कार्बोहाइड्रेट्स आदि अनेक तत्व जरूरी हैं। इसी से शरीर के तंतु बनते हैं, बढ़ते हैं, विकसित होते है।
  3. यदि होने वाली मां अपनी जरूरत से अतिरिक्त खाएगी, तो इसका बच्चे तथा मां पर दोनों पर सीधा प्रभाव होगा। प्रसव से पूर्व या प्रसव के समय उसकी अपनी अवस्था बुरी तरह प्रभावित होगी। ऐसा भी हो सकता है कि पेट में बच्चा अपनी खुराक की पूरी मात्रा मां के शरीर से पाता रहे। मगर इसका सीधा असर मां के शरीर पर ही हो और बच्चा स्वस्थ होने पर भी वह स्वयं अस्वस्थ रहने लगे। अपनी खुराक के आवश्यक पौष्टिक तत्त्व वह बच्चे के शरीर को त्तो देती रहे, स्वयं हर दिन कमजोर होती जाए। इसीलिए तो कहा है कि गर्भवती नारी का भोजन इतना पौष्टिक हो कि मां तथा उसके उदर में पत्न रहे शिशु दोनों के शरीर को आवश्यकता आसानी से पूरी हो सके। मां के अनुरूप बच्चा मां को जिस प्रकार का भोजन मिलेगा, जितनी उसमें पौष्टिकता होगी, उतना ही बालक ग्रहण कर पाएगा। यदि मां के भोजन में सभी जरूरी पौष्टिक तत्त्व नही होंगे तो बच्चे का शरीर भी सभी आवश्यक पौष्टिक तत्त्व ग्रहण नहीं कर पाएगा। अतः बहुत जरूरी है कि गर्भवती युवती को हर प्रकार से संतुलित ,पौष्टिक तथा आवश्यक मात्रा में खुराक मिले, जो सुपाच्य भी हो । यदि यह भोजन विटमिन युक्त नहीं होगा तो बच्चे के शरीर का विकास अपर्याप्त होगा। शरीर हुष्ट-पुष्ट नहीं हो सकेगा, कमजोर होगा। उसे शारीरिक तथा मानसिक बीमारियों का शिकार होना पड़ेगा। अतः क्‍यों न सावधानी, समझ तथा विवेकसे काम लेकर जच्चा तथा बच्चा दोनों के हित की बात करें।

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