बच्चों का आहार, नींद , व्यायाम और स्तन पान || Diet of New born baby ||

शिशु की देखभाल के लिए, हमने पिछले ही लेख में बच्चे के शरीर व वृद्धि की जानकारी, उसकी निद्रा का वर्णन, शौच आदि का निवारण तथा उसके स्नान के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर जी है। स्नान कराते समय सामान व अन्य सावधानियों की आवश्यकता पर भी बल दिया है। अब इस अध्याय में हम शिशु के आहार, उसके लिए ताजा हवा व जरूरी धूप, मल-मूत्र के त्याग तथा अन्य कपड़ों की जानकारी प्राप्त करेंगे। साथ ही बच्चे के लिए जरूरी व्यायाम और खेलों की भी कुछ चर्चा करेंगे। आइए, इन बातों को, एक के बाद एक करके थोड़ा जान लें।

बच्चों का आहार, नींद , व्यायाम और स्तन पान

बच्चे का आहार

पहले हम बता चुके हैं कि बच्चे को नहलाने के बाद तेल लगाना, बदन सुखाना, पाऊड़र लगाना तथा बनियान आदि पहनाकर पूरे कपड़े पहनाना और सुलाने से पूर्व दूध पिलाना जरूरी है। यदि आप स्तन से दूध पिलाती हैं तो बच्चे को गोद में लेकर, बड़े प्यार से उसे स्तन-पान करा दें। बच्चे को इतना दूध पिला दें कि वह तृप्त हो सके। इससे उसे शीघ्र नींद आ जाएगी। उसे बड़े आराम से गोदी से उतार कर बिस्तर पर लेटा दें। ऋतु के अनुसार उके तन को कपड़े ढंक दें। जहां भी सुलाएं ,बिस्तर आरामदेय हो तथा शोर-शराबा न हो। यदि बच्चे को, किसी भी कारणवश बोतल से दूध देना हो तो नहलाने से पहले ही बोतल तैयार रखें। दूध के तापमान पर विशेष ध्यान दें। नहाने के बाद दूध का तापमान बच्चे के शरीर के अनुरूप रहना चाहिए। अधिक गरम या अधिक ठंडा दूध कभी से न पिलाये। अधिक गरम दूध से बच्चे के मुंह में छाले पड़ सकते हैं जबकि ठंडे दूध से बच्चा बीमार हो सकता है। बच्चे को जब सुलाना हो तो उसका मुलायम बिस्तर पहले ही तैयार रहे, उसके नीचे मोमजामा विछा हो। यदि बच्चा बीच में पेशाब या पॉटी भी कर दे तो बिस्तर गीला न हो। केवल चादर या उसके अपने गीले कपड़े तुरंत बदल दें।

बच्चे को अच्छी नींद

यह मां का फर्ज हैं कि बच्चे को अच्छी नींद लेने के हालात बनाये गहरी नींद लेने से बच्चे के शरीर का विकास ते़जी से होता है

बच्चे के लिए धूप व शुद्ध हवा की जरूरत

जहां बच्चे के लिए उचित आहार की आवश्यकता! होती है वहीं वायु तथा धूप की भी जरूरत होती है। इसकी ओर से लापरवाही करना स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है।

  1. बच्चे को ऐसे स्थान पर सुलाएं जहां उसे ताजा तथा शुद्ध हवा मिले
  2. यदि यह कमरा है तो खिड़की, रोशनदान खुले रखें।
  3. यदि सर्दी का मौसम है तो भी खुली ताजा वायु के लिए खिड़की का कुछ भाग जरूर खुला रखें।

धूप में जाने से क्या होता है ?

  1. सर्दी के मौसम में बच्चे को कुछ देर धूप में सुलाना चाहिए।
  2. उसको मालिश करना या नहलाना भी धूप में हो त्तो बहुत अच्छा रहता हैं। जरा ओट में बैठें ताकि सीधी हवा न लगे। मगर धूप मि जाए।
  3. बच्चे के शरीर की वृद्धि के लिए तथा अच्छे स्वास्थ्य के लिए विटामिन जरूरी है। छोटों-बड़ों सबको धूप से विटामिन 'डी' पा लेना सुगम भी है।

मल-मूत्र त्याग के लिए पॉट

बच्चे को हर जगह मल-मूत्र त्यागने को न कहें। स्वयं भी उसे हर जगह बिठाकर पोटी या पेशाब न कराएं। बल्कि पॉट या टब का प्रयोग करें! इससे घर के सभी स्थान सुरक्षित रहते हैं। गंदे नहीं होते। वहां मच्छर, मक्खी, कीटाणु नहीं बैठते या पैदा ही नहीं होते। बच्चे के लिए पेशाब का समय तो नहीं बांधा जा सकता। आप ही कुछ-कुछ देर बाद बच्चे को पेशाब कराते रहें। इससे वह अपने कपड़े गीले नहीं करेगा। कभी-कभार बीच में निकल जाए तो भी उस पर नाराज न हों। अपनी ओर से, अंदाज से बच्चे के पोटी करने के समय को ध्यान में रखकर उसे पॉट पर बिठा दें। कुछ देर प्रतीक्षा करने से वह इसमें पोटी कर देगा। मगर उसे इसके लिए बाध्य न करें। जोर लगा कर पोटी करने से अंतड़ियां ढीली पड़ सकती हैं। जो कि ठीक नहीं होता। मल-मूत्र के त्याग कर लेने के बाद बच्चे के गुप्तांगों को साफ करती रहें। इस ओर कभी लापरवाही न करें। गुप्तांगों को पानी से धोना, कपड़े से पोछना तथा पाउडर छिड़कना न भूलें। बच्चे का ध्यान उसकी मां नहीं करेगी तो और कौन करेगा।

बच्चे के लंगोट, कपड़े आदि

शिशु के कपड़ों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। ये सदा साफ रहे। इनमें कीटाणु पैदा न हों। कपड़े गंदे व मैले प्रयोग करने से वह रोगी हो सकता है।

  1. बच्चे को पहनाने वाले कपड़े ठीले तथा सुविधाजनक होने चाहिए। इन्हें पहनाना और उतारना आसान हो जाता है। गर्मियों में बच्चे के कपड़े दिन में दो बार जरूर बदले, पसीना आने से कपडे मैले तथा बदबूदार हो जाते हैं।
  2. जब भी बच्चा कपड़े में पेशाब या पोटी कर दे, इन्हें तुरंत उतारकर, बच्चे के गुप्तांगों को धोकर पाउडर लगाएं तथा अन्य सूखा कपड़ा पहनाए |
  3. पोटी वाला कपड़ा डेटॉल के पानी से धोना चाहिए। या इसे सीधे पानी से धोकर, डेटॉल वाले पानी से निकाल दें। कीटाणुनाशक हो जाएगा।
  4. जब भी बच्चा पेशाब कर दे, कपड़े बदल दें। इसे डेटॉल वाले पानी से निकालकर सुखाएं। कीटाणुरहित हो जाएगा।
  5. छोटे शिशु को कभी नंगा न रखें। कपड़े से ढककर रखें। जिस कपड़े से ढकना हो, वह ऋतु के अनुसार होना चाहिए।
  6. बच्चे के मुंह पर कपड़ा न डालें। यदि मक्खी-मच्छर से बचाव के लिएडालना हो तो भी यह पतला व साफ हो। सांस लेने में कोई परेशानी न हो।
  7. बच्चे के लिए सूती वस्त्र ही सबसे अच्छा, आरामदेह माना गया है। इससे गर्मी भी कम ही लगेगी।
  8. सर्दी की ऋतु में ऊनी वस्त्र तो पहनाने ही होते हैं। इनके नीचे खादी का, सूती कपड़ा जरूर रहे। ऊनी वस्त्र भी हाथ के बने हों तो अच्छा रहता है।
  9. सूती कपड़े की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इससे बच्चे के बदन पर रगड़ नहीं लगती। यह गर्मी के मौसम में ठंडक पहुंचाता है। सर्दी की ऋतु में ठंड से बचाव करता है।
  10. बच्चों के लिए कोई भी कपड़े बनवाएं, मगर इनमें रंग का अपना ही महत्व होता है। जाड़ों में गहरे रंगों वाले कपड़े जंचते हैं जबकि गर्मी के मौसम में हल्के रंगों वाले अच्छे लगते हैं। वैसे बड़ों के लिए भी हल्के रंग गर्मी-सर्दी में एक से जंचा करते हैं।
  11. सर्दी हो चाहे गर्मी का मौसम, कपड़े पहनने-उतारने आसान रहें, अतः उनका साइज (आकार) तथा डिजाइन इस सुविधा को ध्यान में रखकर होना चाहिए। बच्चे के वस्त्रों का चुनाव करते समय साइज का ध्यान रखें। मात्रा भी अधिक न हो। हर चार-पांच महीनों बाद, बच्चे की लगातार पृद्धि के कारण उसके कपड़े छोटे पड़ जाते हैं। शीघ्र ही बेकार हो जाते हैं। इस बात का ध्यान रखें।
  12. बच्चे को कपड़े पहनाते समय ध्यान रखें कि यह आर्द्रता को खींच सके। सबसे बड़ी बात यह है कि कपड़ा सस्ता हो या महंगा, सूती हो या किसी भी कपड़े का, यह साफ होना चाहिए! पसीने वाला कपड़ा पहनने से के शरीर पर फोड़े भी हो सकते हैं। लंगोट, पोतड़ा, तौलिया, चादर, विछौना साफ होना चाहिए। पेशाब वाला कपड़ा चाहे यह लंगोट है या चादर, डेटॉल में से निकालकर कीटाणुरहित कर लेने चाहिए।

बच्चे के लिए व्यायाम व खेल

बच्चे के सही विकास के लिए उसको आयु के अनुसार व्यायाम तथा खेलते रहना चाहिए। इनसे बच्चे का सही विकास होता है। स्वास्थ्य अच्छा रहता है तथा शरीर की लंबाई, वजन आदि भी सही संतुलन में होते हैं।

  1. यह जरूरी नहीं कि बच्चे के बड़ा होने तक प्रतीक्षा की जाए तथा तब ही उसे व्यायाम करने की शिक्षा दी जाए। # बच्चे को तो आरंभ से ही, अपनी आयु के अनुरूप, व्यायाम करने की आदत डालें। इससे उसकी मांसपेशियां चुस्त व मजबूत हो सकेंगी।
  2. व्यायाम के कारण उसका भोजन भी आसानी से पच सकेगा। जो शरीर को शक्ति प्रदान करेगा। # शिक्षु को प्रकृति भी सहायता करती है। वह हाथ-पांव चलाकर आवश्यकतानुसार व्यायाम कर लेता है। फिर भी शिशु को ठीक प्रकार से, दिन में कम-से-कम दो बार पूरी मालिश करना ही उसका इस आयु में व्यायाम है। उसके लिए नियमित मालिश ही उसका उचित व्यायाम है। इस पर ध्यान जरूर दें।
  3. मां भी व्यायाम करा सकती है। शिशु के हाथ पकड़कर, उन्हें कैंची की तरह बायें-दायें चलाती रहे। इन्हें कंधे तक ले जाना, पांच-सात बार लगातार करना, दिन में तीन-चार बार करना, उसके शरीर की व्यायाम की आवश्यकता पूरी कर देता है।
  4. जब बच्चा चार हीने का हो जाए तो इसे उल्टा लिटा दें। वह तैरने की प्रक्रिया-अनुसार हाथ-पांव मारेगा। यही उसका इस आयु का व्यायाम है। मालिश तो हर अवस्था में होती रहेगी! इससे बच्चा स्वस्थ रहेगा।
  5. जब बच्चा सात मास के आसपास का हो जाता है तो उसकी चीजों की पकड़ अच्छी हो जाती है। उसे खिलौने खेलने का शौक भी हो जाता है। अच्छे नरम प्लास्टिक या किसी भी प्रकार के लचीले खिलौने दे। इन खिलौनों का रंग आकर्षक गहरा हो | बच्चा इनके साथ खेलकर अपना जरूरी व्यायाम भी कर लेगा, मन भी बहला लेगा।
  6. खिलौने ऐसे हो जिनके किनारे न हो, नहीं तो बच्चे से छूटने पर उसपर गिर जाने पर ये बच्चों को चोट दे सकते हैं इस बात का जरूर ध्यान रखें कि खिलौने नुकीले तथा किनारों वाले न हों।

बच्चे का स्वयं बने खिलौना

बच्चे को व्यायाम की जरूरत पूरी करने के लिए, उसका मनोरंजन करने के लिए, उसका मन बहलाने के लिए, उसके शरीर में शक्ति का संचार करनेके लिए मां अधवा अभिभावक स्वयं ही खिलौना बनकर आवश्यकताएं पूरी करसकते हैं।

  1. बच्चे से, नवजात शिशु से भी आप बातचीत करें। उसके कानों में आवाज पड़ेगी। वह बात करने वाले के मुंह की ओर, हाव भाव की ओर, मुखमुद्रा की ओर बड़े गौर से देखेगा। आकर्षित होगा, हर्षित होगा, मुस्कराएगा। चंचलता में आ जाएगा। हाथ-भांव मारेगा। उठ लेने के. लिए प्रेरित करेगा। इस सबसे उसके शरीर का व्यायाम हो जाएगा।
  2. मां बच्चे को कभी-कभी, धीरे-धीरे गुदगुदाती रहे। इससे बच्चे के शरीरमें हरकत होंगी। बह मुस्कराएगा। पासा पलटने की कोशिश करेगा। उसमें चुस्ती का संचार होगा। संवेदना महसूस करेगा।
  3. जब बच्चा आराम से सो रहा हो तो कोशिश करें कि वहां शांति बनी रहे। शोर न हो। बच्चे के कानों तक कोई आवाज न पहुंचे। मगर जब वह जाग रहा हो तो उसे अकेला मत छोड़ें। उसे अकेलापन महसूस न हो । उससे कोई बातें करने वाला हो | उसका मन लगाने वाला हो | उसकी हरकतों को देखकर खुश होने तथा उसे उत्साहित करने वाला हो।
  4. आप हाथ में खिलौना लेकर बच्चे को खिला रहे हैं। आपके हाथ में झुनझुना है। इसे बजा रहे हैं। मगर उसके कान के पास ले जाकर झुनझुना ऐसा न बजाएं कि आवाज तेज हो और नन्‍हें बच्चे के कानों के कोमल पर्दों पर इसका बुरा प्रभाव हो।
  5. जब भी बच्चे को खिलौने दें, ये चोट करने वाले न हों। यह मीठी ध्वनि निकालने वाले हों। बच्चे को हर्षित व आकर्षित करने वाले हों, तभी अच्छा गेगा, बच्चा प्रसन्न होगा, मुस्कराएगा तथा खूब हाथ-पांव मारेगा।
  6. जो भी खिलौने आप चुनें, उनके रंग आकर्षक हों, चहुत तेज न हों। चकाचौंध करने वाले न हों। इस प्रकार मां स्वयं, पिता, भाई या कोई भी अभिभावक जो बच्चे के साथ रह रहा है, वह उससे बातें करे, मुंह बनाए, हाव भाव बदले, उसे उठाएं। उसके अंगों को गुदगुदाए, सहलाए, बाजुओं को कैंची की तरह बायें-दायें करे, टांगों को सिर तक पहुंचाकर उससे मीठी-मीठी बातें करे। बच्चे का मन भी बहल जाएगा तथा उसके चेहरे पर मुस्कान आएगी, जिससे सारा शरीर भी हरकत में आ जाएगा।

कैसे हों बच्चे के खिलौने ?

बच्चे के खिलौने हर आयु में एक जैसे नहीं हो सकते | ये आयु के साथ बदल जाते हैं। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है खिलौने का आकार और प्रकार दोनों बदल जाते हैं। बच्चा जब खिलौने की पहचान करने वाला हो जाए तो उसे पशु-पक्षियो तथा रेलगाड़ी, बस, हवाई जहाज की आकृति के खिलौने देने चाहिए। इसे देखकर उसकी पहचान शक्ति बढ़ेगी। उसे इनके नाम भी याद हो जाएंगे तथा उसके ज्ञान में भी वृद्धि होगी। धीरे-धीरे बच्चा स्वचालित खिलौने लेना पसंद करेगा। इनसे निकलने वाली अलग-अलग आवाजों की ओर आकर्षित होगा। इन्हें पहचानेगा, उसकी समझ बढ़ेगी। बच्चा स्वभाव से ही हर चीज को अपने मुंह में डालने वाला होता है। उसे कभी भी ऐसा खिलौना न दें जिसका रंग कच्चा हो। उतर जाए। मुंड़ में घुलकर पेट में चला जाए। इस बात का जरूर ध्यान रखें। खिलौना ऐसा भी न हो जो मुंह में जाकर कहीं लगे। चोट करे। बच्चे के मुह से खून निकलने लगे। बच्चा खिल्लौने को चबाकर अपना नुकसान न करे। इसका टुकड़ा टूटकर अंदर न चला जाए। गले में न फंस जाए, इस बात का ध्यान रहें। बच्चे की एक उम्र ऐसी भी आ जाती है जब वह अपने हाथ से कुछ करना चाहता है। तोड़-फोड़ करने लगता है। ऐसे में उसे जोड़ने और उधेड़ने की आदत हो सकती है। खिलौने ही ऐसे ले आएं जिनको जोड़ने से, अलग-अलग तरीकों से अलग-अलग आकृतियां बन सकें। खोल सकें। फिर जोड़ सकें। इससे एक तो बच्चे की समझ में वृद्धि होगी, दूसरा उसका मस्तिष्क तेजी से कार्य करने में सक्षम होगा। आप स्वयं भी कुछ आकृतियां बनाकर बच्चे को ऐसा करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। माता-पिता इस बात के लिए सचेत हों कि उन्हें बच्चे के मन में खेलों के प्रति रुचि पैदा करनी है। बच्चे का मनोरंजन करना है। उसका मानसिक विकास करना है। उसके ज्ञान में वृद्धि करनी है। उनकी थोड़ी-सी जागरूकता बच्चे का सर्वांगीण विकास करने में सहायक हो सकती है।

अपने रंग-रूप को बनाए रखने के लिए, अपनी फिगर के लिए अपने बच्चे के साथ अन्याय न करें। अतः बच्चे का स्तन-पान अति अनिवार्य है, मां ने बच्चे को जन्म दिया है तो उसे अपने स्तनों द्वारा अपनी जिम्मेदारी को भी बखूबी निभाना चाहिए।

स्तन-पान की आवश्यकता, मां के दूध के गुण, बच्चे के लिए मां का दूध कितना जरूरी, मां के दूध में अन्य दूधों से क्या विशेषता है, इन बातों पर हम इसी शृंखला में, पहले ही विस्तृत चर्चा कर चुके हैं। उन बातों को यहां पुनः दोहराना जरूरी नहीं है। हां, मां द्वारा बच्चे को दूध पिलाने के विषय में जो बातें पहले के लेख में नहीं आ पाईं, उनका यहां जिक्र कर रहे हैं

मां स्तन-पान कैसे कराए ?|| How to do breast feeding ||

  1. मां किसी आरामदेह स्थान पर टिककर बैठ जाए।
  2. बच्चे को अपनी गोद में ले ले।
  3. जिस स्तन का पहले दूध पिलाना है, मां बच्चे का सिर-मुंह उस ओर ले जाए। पांव दूसरी ओर।
  4. जिस स्तन से दूध पिलाना हो, उसी ओर की बाजू को अपनी कोहनी से मोड़ लें।
  5. इसी मुड़ चुकी कोहनी तथा बाजू पर बच्चे के गर्दन का भाग रखें।
  6. अब बच्चे की गर्दन को स्तन की ऊंचाई तक यों लाएं कि बच्चा स्तन से आसानी से, दूध पी सके। बच्चे की दूध चूसने में अपनी ओर से गर्दन ऊंची करने की आवश्यकता महसूस न हो। वह ऐसा कर भी नहीं सकेगा, बस रोता जाएगा।
  7. बच्चे को दोनों स्तनों से दूध पिलाने का प्रयत्न करें। एक के बाद दूसरे स्तन से। कहते हैं कि भोजन के समय खिलाने वाली और खाने वाले, मन से पूर्ण शांत हों, कोई तैश नहीं । कोई क्रोध नहीं। कोई कलह नहीं ।तभी यह भोजन शरीर में जाकर गुणकारी साबित होगा।
  8. ठीक इसी प्रकार से जब मां अपने शिशु को दूध पिलाने लगे तो उसके न के भाव उत्तम हों। उसका चित्त पूरी तरह शांत हो।
  9. जब वह प्रसन्न चित्त से दूध पिलाएंगें तो दूध भी अच्छी मात्रा में उतरेगा। बच्चा इसे पीकर संतुष्ट होगा।
  10. यदि मां संताप में है, क्रोध में है, झुंझलाहट में है, चिंता और शोकमें  है, तो दूध पूरी मात्रा में नहीं उतरता। उस समय मां के दूध देने, दूध प्रवाह करने वाले स्नायु संस्थान बुरी तरह प्रभावित हो जाते हैं। दूध पूरा नहीं उत्तरेगा, बच्चा भूखा रहेगा, असंतुष्ट रहेगा, रोता रहेगा। इससे मां तथा बच्चा, दोनों में अपनी अपनी प्रकार का असंत्तोष होगा। अतः माता को चाहिए कि अपने कर्तव्य को पहचानते हुए, बच्चे को स्तननपान शांत व प्रसन्न मन से करवाए।  स्तनपान से अच्छा आहार बच्चे के लिए और कोई भी नहीं।
  11. फिर भी कुछ ऐसे कारण हो सकते हैं जहाँ माता बच्चे को अपना दूध पिलाने में असमर्थ है! मां इतनी कमजोर है कि दूध उत्तरता ही नहीं।
  12. मां बीमार रहती है तथा बच्चे को स्तन-पान नहीं करवा सकती।
  13. मां की छाती में दूध तो है मगर मां ही किसी संक्रामक सेग से पीडित है। इसलिए डॉक्टर ही उसे अपने बच्चे को दूध पिलाने से इनकार करते हैं।
  14. कोई और भी कारण हो सकता है जो माता अपने शिशु को दूध नहीं पिला सकती, इसमें एक कारण उसके स्तन पर कोई फुंसी, फोड़ा, घाव भी हो सकता है।
  15. माता को स्तन कैंसर होने का अंदिशा हो। ऐसी अवस्थाओं में बच्चे को भूखा तो रखा नहीं जा सकता। उसे ऊपरका दूध पिलाया जा सकता है। ऊपर का दूध' में गाय का, भैंस का, बकरीका या डिब्बे का दूध गिना जाता है। एक हल यह भी है-मां के स्तनों में दूध तो ठीक उतरता है। उसे कोई रोग भी नहीं है। दूध संक्रामक भी नहीं है। मगर स्तन पर ही कोई ऐसी तकलीफ है जो वह बच्चे के मुंह में अपना स्तन नहीं दे सकती। ऐसी अवस्था में भी मांके पास बच्चे की भूख मिटाने का एक त्तरीका है। मां अपने स्तन से दूध निकाल कर, किसी कटोरी में डाल कर, चम्मच के साथ बच्चे को पिला सकती है। इसे बोतल में डालकर भी बच्चे को पिलाया जा सकता है। जितनी कमी हो, ऊपर का, गाय-मैंस या डिब्बे का दूध भी दे सकते हैं।

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