एड्स के बारे में सम्पूर्ण जानकारी || Everything about AIDS in Hindi ||

 

एड्स क्या है ?

एड्स क्या है ? || What is AIDS in Hindi ||

एड्स एक विध्वंशकारी घातक बीमारी है जो अब विश्व में महामारीका रूप ले रही है। इसने केवल चिकित्सा जगत को डी नहीं बल्कि सारे विश्वके लोगों को चेतावनी दे दी है तथा भविष्य के बारे में सावधान कर दियाहै। सर्वप्रथम सन्‌ 1998 में अधिकारिक रूप से इस बीमारी की पहचान कीगई थी लेकिन अब विश्व के 152 देशों को प्रभावित कर चुकी है। इस रोग में मृत्यु दर बहुत उच्च है । निदान होने के दो वर्ष के अन्दर रोगी काल का ग्रास बन जाता है । एड्स कुदरत की इस सेना को नप्ट कर देती है, जिससे हमारा शरीर रोगों से मोर्चा नहीं ले पाता । इस प्रकार का व्यक्ति सक्रमण या छूत काशिकार हो जाता है । जिससे वह निमोनिया का शिकार हो सकता है, उसके मुह के अंदर सफेद धब्बे हो सकते हैं तथा त्वचा पर गिल्टिया हो सकती है ।इस तरह एड्स से ग्रसित मनुष्य एक साथ कई बीमारियो का शिकार हो सकता है । एड्स सबसे पहले अफ्रीका से उत्पन्न हुआ जो ग्रीन बन्दर में पाया गया ।

क्या एड्स का कोई इलाज है ? || Cure of AIDS in Hindi ||

इसका अभी तक  कोई उचित इलाज नही मिल सका है। यह बीमारी लाइलाज है । इससे केवल सुरक्षा-व्यवस्था करके बचा जा सकता है । एड्स को खत्म करने के लिए विश्व स्तर का सामूहिक सामना करना पड़ेगा । इस लेख को लिखते समय मेरी यह कोशिश है कि उन सभी बारीकियों व दोषों को आप के सामने प्रस्तुत कर सकूं, जिससे एड्स के रोगी परेशान रहते हैं तथा उचित सुक्षाव व उपाय आप तक इस पुस्तक के माध्यम से पहुचा सकूं, जिससे अधिक से अधिक लोग पढ़कर लाभ उठा सकें । अगर मैं ऐसा कर सका तो अपने को धन्य समझूंगा कि मैं आप के काम आ सका ।

एड्स क्यों खतरनाक है ?

एड्स (एक्वायर्ड एम्यूनो डैफिसेंसी सिंड्रोम) एक विषाणु जन्य भयानक रोग है इससे शरीर में रक्षा करने वाली प्रणाली किसी हद तक समाप्त हो जाती है । शरीर के कई प्रतिरक्षण तन्‍त्र नष्ट हो जाते है । शरीर बीमारियों का घर बन जाता है । एड़स कुदरत की इस सेना को समूल नप्ट करने पर तुली होती है । जिससे व्यक्ति संक्रमण का शिकार बन जाता है । सबसे पहले वह निमोनिया का शिकार बनता है फिर शरीर के ऊपर गिल्टियां निकलने लगती है और फिर धीरे- धीरे मनुष्य मौत के आगोश में जाने की तैयारी करने लगता है ।

एड्स कैसे होता है ? || Reasons of AIDS in Hindi ||

एड्स के विषाणु स्वस्थ शरीर के अन्दर शरीर में निम्न माध्यमों से प्रवेश करता है ।

  •         योनि एवं गुदा द्वारा
  •         संक्रमित सुई और सिरिंज के द्वारा
  •         रक्त संक्रमण द्वारा
  •         संक्रमित मां से नवजात शिक्षु को
  •         सम्भोग के समय स्खलित वीर्य के समय स्खलित ख्रावों से
  •         रक्त संक्रमण से
  •         मादक पदार्थों से
  •         सक्रमित सुई से

 

एड्स के रोगी के लक्षण क्या है ? || Symptoms of AIDS in Hindi ||

उसे अतिसार (डायरिया) हो जाता है और रोगी चलने फिरनें मे असमर्थ हो जाता है, रोगी को हल्का ज्वर भी हो जाता है जो निरंतर बना रहता है। कुछ रोगियों में एड्स के लक्षण क्षय रोग की तरह दिखाई देते हैं। प्रारंभ में लसिका 'लिंफैटिक-ग्लैंड' में रोध उत्पन्न हो जाता है। क्षय रोग की तरह गले, बगल और जांघों के बीच शोथ के कारण छोटी-छोटी गिल्टियाँ उभर आती हैं। एड्स का विषाणु एच.टी.एल.वी टी. लिंफोसाइट्स को नष्ट कर देता है। टी लिंफोसाइट्स ही शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता और शक्ति को बनाए रखता है। रोग प्रतिरोधक शक्ति के नष्ट होने से दूसरे अनेक रोग शरीर पर आक्रमण कर देते हैं। एड्स विषाणुओं द्वारा शारीरिक रोग प्रतिरोधक शक्ति नष्ट कर देने न्‍यूमोनिया के लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं।

लिंफोसाइटस क्‍या है ? || What is Lymphocytes in Hindi ||

रक्त में उपस्थित सफेद कोशिकाएं शरीर को रोग-प्रतिरोधक शक्ति देती हैं। इनको लिंफोसाइट्स कहते हैं यह दो तरह के होतेहैं--एक, टी.लिंफासाइट्स और दूसरे, बी. लिंफोसाइट्स। जब कोई बाहर से विषाणु किसी तरह शरीर में प्रविष्ट होता है तो शरीर में उपस्थित टी. लिंफोसाइट्स उस विषाणु को पहचान कर तुरंत यह निर्णय करता है कि उक्तविषाणु शरीर के लिए लाभप्रद है या हानिकारक। उस विषाणु के हानिकारक होने पर टी.लिंफोसाइट्स तुरंत बी.लिंफोसाइट्स को सूचितकरता है। बी. लिंफोसाइट्स तुरत शरीर में विशेष प्रोटीन (एटीबॉडी) की उत्पत्ति करता है। ऐसे में विशेष प्रोटीन (एंटीबॉडी) उस हानिकारक विषाणु (एंटीजन)से पूरी तरह से चिपक जात्ती है और उसे शरीर से बाहर कर दैती है। लिफोसाइट्स की शक्ति के कारण ही रोग प्रतिरोधक शक्ति बनी रहतीहै। एड्स के विषाणु इस रोग प्रतिरोधक शक्ति को नष्ट करके एड्स की उत्पत्ति करते हैं प्रारंभ में ऐसा विश्वास था कि एड्स की उत्पत्ति समलैंगिक सबंध रखने के कारण होती है। लेकिन अब पता चला है कि प्राकृतिक रूप से यौन संबंध रखने वाले स्त्री-पुरुष भी एड्स के शिकार हो सकते है। विदेशों मे एड्स रोगी को गानोरिया (सुजाक) और सिफलिंस(उपदश) की तरह विषाणुओ के संक्रमण से होने वाला भयंकर रोग माना गया था। यौन रोग हरपीज जैनीटालिस की तरह एड्स को असाध्य रोग समझकर रोगियों का सामाजिक निष्कासन किया गया था। ऐसे रोगियों की चिकित्सा से डॉक्टर भी भयभीत होते थे, लेकिन शीघ्र ही विशेषज्ञों ने घोषित कर दिया कि अन्य संक्रामक यौन रोगों की तरह संपर्क से इस रोग की उत्पत्ति नहीं होती है। इस रोग के विषाणु रोगी के रक्त, मूत्र और वीर्य में रहते हैं। यौन संबंधों में पुरुषके वीर्य से स्त्री को एड्स हो सकता है। किसी रोगी का रक्त ग्रहण करने से भी इस रोग की उत्पत्ति संभव है।

एड्स कैसे नहीं होता है ?

लेकिन स्पर्शकरने, बातचीत करने, साथ-साथ बैठकर खाने-पीने से एड्स की उत्पत्ति नहीं होती है। मादक द्वव्यो का सेवन करने के लिए व्यक्ति जब एक इंजेक्शनसे अनेक लोगों के शरीर में मादक द्रव्य पहुंचाते हैं तो ऐसे में रक्त के कारण किसी एड्स रोगी से दूसरे लोग भी रोग का शिकार बन सकते है। मां द्वारा नवजात शिशु को भी एड्स रोग हो सकता है। गर्भावस्‍था मे शिशु को एड्स रोग हो सकता है। प्रसव के समय और उसके बाद भी एड्स के रोग की सम्भावना सामने आई है। अमेरिका में एक एड्स की विचित्र समस्या सामने आई जिससे सभी घबरा उठे। एक नवयुवती का भार तीव्र गति से कम होने लगा, उसका शारीरिक परिक्षण किया गया तो सभी डाक्टर हतप्रभ रह। गऐ परीक्षण से पता चला कि उसको रोग प्रतिरोधक शक्ति अत्यंत क्षीण हो गई है। वह महिला गर्भवती थी बाद मे पता चला कि उसके बच्चों भी एड्स है। दरअसल उसके शिशु को रक्त देने से एड्स हुआ था विशेषज्ञ इस बात पर खोज रहे हैं कि उसके शिशु को आखिर एड्स हुआ कैसे ?

क्या गर्भवती महिला के दूध से बच्चे को एड्स हो सकता है ?

कुछ एड्स विशेषज्ञों के अनुसार रोगी के थूक एवं मूत्र में भी एड्स के कीटाणु होते हैं। कुछ विशेषज्ञों की तो यहॉ तक राय है कि मां के दूध में एड्स के कीटाणु प्रवेश कर सकते हैं। सम्भव है कि मां के दूध को पीने पर बच्चों में एड्स हो सकता है।

एड्स कितने प्रकार का होता है ? || Types of AIDS in Hindi ||

एड्स पीड़ित व्यक्ति दो प्रकार के हैं। एक तो वे जिन पर एड्स विषाणु का हमला हुआ परंतु उन्हें रोग नहीं हुआ। इन्हें एड्स विषाणुके 'स्वस्थ वाहक' माना जाता है। दूसरे वे जिन पर हमला हुआ और वे पूरी तरह इस संक्रमण से प्रभावित होकर मृत्यु की ओर अग्रसर हुए। समाज को ज्यादा खतरा पहली तरह के लोगों से है। ये लोग अन्य पूर्णतः स्वस्थ लोगों से जब अंतरंग सबंध स्थापित करते हैं तो एड्सविषाणु नए लोगों के शरीर में पहुंच जाता है। ऐसे व्यक्तियों की पहचान करना आसान नहीं है। परंतु 'स्वस्थ-वाहक' व्यक्तियों की भूतकाल की वीमारी और सेक्स संबधों और व्यवहार की अगर जानकारी है, तो इन्हें पहचाना जा सकता है। यह मालूम हुआ है कि अमेरिका में ही 10 लाख व्यक्ति एड्स विषाणु के 'स्वस्थ-वाहक' है।यह जरूरी नहीं कि जिस व्यक्ति के शरीर में एड्स विषाणु प्रवेश कर गया हो, उसमें संक्रमण मुखर होकर अन्य बीमारियों की शक्ल में सामने आए ही, धुँआधार प्रचार से जनसाधारण को शिक्षित कर एड्स विषाणु केसक्रमण से बचा जा सकता है जैसा कि थाईलैंड ने कर दिखाया है। थाईलैंड में प्रारंभिक 6 एड्स रोगियों के बाद अब तक एक भी नया रोगी सामने नहीं आया है। एड्स के विषाणु के संक्रमण से उत्पन्न लक्षणों का उपचार करके भी जब एड्स पीड़ितों को बचाया नहीं जा सका, तो कुछ विषाणुरोधी दवाओं का निर्माण हुआ।

एड्स पीड़ितों के उपचार के लिए किन दवाओं का प्रयोग होता है ? ||Medicines of AIDS patient in Hindi ||

एड्स पीड़ितों के उपचार के लिए इस समय आठ रासायनिक औषधियां हैं। ये हैं- एन्सामाइसिन, फोस्कारनेट,वरिवाबाइरिन, साइक्लोस्वोरिन ए एल्फा, इटस्फेरोन, एच. पी. ४23, सूरामिन और एजिडोथाइमाइडिन । अमरीकी बहुतराष्ट्रीय दवा कंपनियों द्वारा निर्मित ये दवाएं अमरीका और यूरोप में अभी रोगियों पर आजमाई जा रही हैं। रासायनिक औषधि का विकास टीका बनाने से आसान और कम समय लेने वाला है। परतु एड्स के मामले में कथित रासायनिक औषधियां आंशिक रूप से ही सफल रही हैं। एड्स विषाणु, लिंफोसाइट (श्वेत रक्त कोशिकाओं) और न्यूरोन, यानी मस्तिष्क की कोशिकाओं, दोनों को एक साथ संक्रमित करता है। इसलिए ऐसी दवा ही कारगर होती है जो मस्तिष्क में पहुंच सके। ब्रेन बैरियर' की वजड़ से अनेक दवाएं मस्तिष्क में नहीं पहुंचती, एजिडोथाइमाइडिन में यह गुण है, इसीलिए टीका उपलब्ध होने तक अभी यही सबसे असरदार दवा है। भारत में इस दवा के निर्माण की पहल करने का अभी सही वक्‍त है। बाहर से मंगाकर भंडारमें रखना इसलिए सभव नहीं कि इसकी प्रभावी परीक्षण अवधि(सेल्फ-लाइफ) एक महीने से भी कम डै।

एड्स के रोगी की अवस्थाएं || Various Stages of AIDS in Hindi ||

एड्स रोग की तीन अवस्थाएं देखी जा सकती हैं। इसके आधारपर रोगियों को तीन वर्गों में विभाजित कर सकते हैं। कुछ ऐसे रोगी है जो ऊपर से देखने पर पूरी तरह निरोग दिखाई देते हैं। लेकिन यौन संबधों द्वारा दूसरे को रोगी बना सकते हैं। इन रोगियों में रोग के लक्षण कब तक स्पष्ट होंगे, अभी इस संबंध में कुछ नहीं कहा जा सकता। समाज में ऐसे रोगियों में एक-दो वर्षों में रोग उग्र रूपधारण कर लेता है। बहुत से रोगियों के लिंग अग्रिम भाग में सफेद दाने निकल आते है। कुछ समय बाद उनमें से गन्दा पानी निकलने लगता है पूरे लिंग मे दर्द अनुभव होने लगता है ऐसे रोगियों को यथा शीघ्र शर्म त्याग डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए। इसकी अन्तिम स्थिति में त्वचा का कैंसर के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। ऐसे रोगियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रायः बिल्कुल क्षीण हो जाती हैं और वे कुछ ही दिन बाद मृत्यु के आगोश में समा जाते हैं। रोगियों से एड्स फैलने की अधिक आशंका है क्योंकि स्त्री पुरूष स्वयं यौन संबन्धों के चक्कर में फंस कर एड्स का शिकार बन सकते है। जो कोई स्त्री अथवा पुरूष एक से अधिक के साथ यौन सम्बन्धों को बनाएं रखते हैं वे लोग अधिकतर एड्स ग्रस्त होते हैं।

एड्स होने के क्या संकेत हैं ?

एड्स होने पर कई पूर्व संकेत मिलते है बहुत से लोगों को ज्वर, शारीरिक भार का कम होना एवं अतिसार जैसे लक्षण दिखाई देते हैं, जिन व्यक्तियों में यह लक्षण दिखाई देते हैं उन्हें दो साल के अन्दर एड्स रिलेटिड काम्पालैक्स' रोगी कहा जाता है ऐसे रोगियों को फिर हमेशा ही ज्वर की शिकायत बनी रहती है एवं शरीर मे थकान अनुभव करते है।

एड्स कैसे फैलता है ? How AIDS spread in Hindi ||

इस बीमारी फैलने के कारणों की जांच पड़ताल की गई जिसको निम्न वर्गों में  विभाजित किया जा सकता है –

  •         यौन संबंधों से
  •         नशीले पदार्थों के सेवन से
  •         रक्त मिश्रण से

·       संक्रमण से यह वायरस किसी के शरीर में उत्पन्न होने लगते हैं। प्रारंभ में दिखाई देनेवाले विषाणु एक साथ शीघ्रता से फैलकर शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता को क्षीण कर देते हैं। जिससे रोगी एकदम हताश बन जाता है। ऐसा रोगी पहले ही डॉक्टर से घबराता है। जब उसे इस की सूचना प्राप्त हो जाती है। तब अजीब स्थिति बन जाती है। रोगी अपने रोग की सार्वजनिक चर्चा भी नहीं कर पाता, क्‍योंकि लोग उससे घृणा करने लगते हैं कंपाउंडर तथा सेवा करनेवाले भी उससे घबराते हैं, कई बार रोगी के इलाज में भी कठिनाई हो जाती है। इस रोग के संबंध में खोज करने से जो विभिन्‍न तथ्य सामने आये वे चौंकाने वाले है। यह रोग उन लोगों में पाया गया जो अप्राकृतिक आदतों के शिकार थे। अप्राकृतिक क्रिया आलिंगन से एक-दूसरे के अंदर विषाणु संक्रति हो जाते हैं था मुक्त यौनाचार में लिप्त व्यक्तियों में यह रोग सर्वाधिक् है।


किन लोगों को एड्स होने की अधिक संभावना है ?

जो व्यक्ति स्वच्छंद यौन-सबंध के हाबी हैं उन सबके लिए खतरा उत्पन्न हो गया है। नशीले पदार्थ के सेवन से भी इस रोग को अभिवृद्धि की संभावना है। नशीले पदार्थों के सेवन करने बाले अक्सर लुक-छिपकर एकांत स्थानों में खाते-पीते हैं एकांत स्थान गंदे होने के कारण ऐसे रोगों के कीटाणु फैलाने में सहयोगी बनते हैं। साथ ही नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले एक-दूसरे की वस्तु का उपयोग भी कर लेते हैं जिससे भी रोग के फैलने की संभावना बनी रहती है। नशीले पदार्थ से व्यक्ति की प्रतिरोधात्मक क्षमताएं भी कम हो जाती है। हां इतना अवश्य है कि एक बार अगर व्यक्ति के शरीर में एड्स के कीटाणु प्रवेशकर जाएं तो फिर इनको हमले से बचना मुश्किल है। एड्स विषम परिस्थितियों में दो शरीर द्वारा सम्भोग क्रिया से तो फैलता ही है, साथ में रक्त सम्मिश्रण से भी इस रोग के फैलने की ज्यादा सम्भावनांए होती है। दुघर्टना के समय आप्रेशन क्रिया में रक्त की कमी के लिए दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को रक्त दिया जाता है। कई बार इस रक्त के जरिए ही एड्स के विषाणु शरीर में चले जाते हैं परिणामतःऐसे में शरीर के अन्दर एड्स फैलने की पूरी सम्भावना रहती है।

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