वसंत ऋतु और स्वास्थ्य

 

वसन्त ऋतु में आहार विहार

वसन्त ऋतु में आहार विहार

आयुर्वेद और संस्कृत साहित्य में वसंत ऋतु का वर्णन मानव की प्रसन्नता और स्वास्थ्य-वृद्धि के लिए किया गया है । वस्तुतः रस राज श्रृंगार का उद्रेक वसंत के काल में ही हो सकता है इसलिए जितना सरस और मनोहारी वर्णन संस्कृत साहित्य में किया गया है, वह अन्यत्र सर्वथा सुदुर्लभ है। रस कवि जयदेव ने भगवान श्री कृष्ण के वसंत-विहार का वर्णन कितने हृदयहारी शब्दों मेंकिया है-

विहरति हरिरिह सरस वसन्‍ते।

नृत्यति युवति जनेन सम॑ सखि विरहिजनस्य दुरन्ते ॥

साथ ही कुमार संभव, विक्रमोर्वशीय, नैषध आदि महाकाव्यों का वसंत वर्णन तो अनुभव की वस्तु है । जहाँ संस्कृत साहित्य ने मानव मन को परितुष्ट करने का प्रयल किया वहाँ आयुर्वेद में मानव को पूर्ण स्वस्थ बनाने के लिए वसंत ऋतु की चर्या का वर्णन कर मानव को जागरूक बनाने का प्रयल किया गया है। वाग्भट सूत्र स्थान अध्याय  5 में वसंत ऋतु की चर्या का वर्णन निम्न रूप में उपलब्ध होता है।

वसंत ऋतु में स्वस्थ रहने के उपाय :

कपश्चित्तो हि शिशिरे वसंतेडर्काशुतापित: ।

हत्वाग्निं कुरुते रोगानतस्तं त्वरयाजयेत्‌ ॥8

अर्थात्‌ शिशिर ऋतु में संचित हुआ कफ वसंत कतु में सूर्य रश्मियों से तापित होकर अग्नि को नाश कर रोगों को उत्पन्न करता है। अतः कफ को वसंतक्रतु में कक जनित रोग उत्पन्न करने से पूर्व जीत लेना चाहिए। क्योंकि वसंत ऋतु में कफ का स्वाभाविक राज्य है । रोगों का आधिकय होने से इस ऋतु में वैद्यों को प्रचुर लाभ होता है, इसीलिए वैद्य जगत में यह ऋतु पितृवत्‌ मानी गई है। “वैद्यानां शारदी माता पिता च कुसुमाकर:” एक ओर कफ का राज्य इधर मनुष्यों के शरीर में शीतकाल के संचित कफ का प्रकोप होने का भी स्वाभाविक काल वसंत ऋतु है।

कफ को कैसे दूर करें ?

इस कारण कफजन्य रोग उत्पन्न होनेसे पूर्व ही यदि तीक्ष्ण वमन नस्यादि द्वारा कफ का हरण कर लिया जाए तो इस ऋतु में होने वाले रोग उत्पन्न नहीं होते इस लिए आगे बताई गई विधि द्वारा कफ को शीघ्र जीत लेना चाहिए । प्रथम तीक्षण वमन और नस्य आदि क्रियाओं से तथा हल्के रूक्ष आदि भोजन से एवं व्यायाम, उद्धर्तन (उबटन), भागना, कूदना आदि द्वारा कफ को जीत कर फिर यथाविधि स्नान कर कपूर, चंदन, अगर और केशर का लेपन कर पुराने यव (जौ) और गेहूं से बना हुआ भोजन और मधु अथवा शूल पर भुना हुआ जंगली जीवों का मांस (कबाब) का सेवन करना चाहिए । यों तो सभी प्रकार के व्यायाम कफ सुखाने के लिए इस ऋतु में उत्तम है, पर भ्रमण विशेष हितकर है क्योंकि कहा है वसंते भ्रमणं पथ्यं”।

बसंत ऋतु में क्या खाना चाहिए?

इस ऋतु में अर्थात्‌ वसंत पंचमी से लेकर चैत्र पर्यंत  (मार्च-अप्रैल) में भूल कर भी अधिक खट्टी, अधिक मीठी चीजें, दही, सिंघाड़ा, ठंडीऔर बासी चीजें तथा गरिष्ठ पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए । शाक दाल में अदरख, काली मिर्च, छुह्वरे आदि का प्रयोग हितकर है। चीनी के बदले में मधु अधिक उपयोगी सिद्ध होगा । इस क़तु में भूने कच्चे आम का रस (अमैटा) इमली का रस आदि का पीना भी लाभप्रद है। साथ ही इस ऋतु में स्नान से पूर्व ही व्यायाम कर लेना हितकर है। स्नान के समय तैर लेना सर्वोत्तम व्यायाम है। चैत्र या अप्रैल में आँतों की सफाई के लिए मृदुविरेचन (जुलाब) लेना भी हितकर है।

वसंत ऋतु में कैसा जल पीना चाहिए ?

वसंत ऋतु में सोंठ से सिद्ध किया हुआ जल अथवा मधु युक्तजल या नागरमोथे से सिद्ध किया हुआ जल पीना चाहिए । वसंत ऋतु में दोपहर का समय ऐसे सुंदर बाग में व्यतीत करें जिसमें दक्षिण का शीतल मंद, सुगंधित वायु बह रही हो । चारों ओर सुंदर जल पूर्ण नहर प्रवाहित हो रही हो । वृक्षों की सघन छाया सूर्य ताप का परिहार कर रही हो। कोयल की मधुर कर्ण प्रिय ध्वनि सुनाई पड़ती हो। काम क्रीड़ादिक के लिए मनोरम स्थान बने हुए हों। विचित्र सुगंधित पुष्पों से मण्डित वृक्षावलियाँ उद्यान की शोभा बढ़ा रही हों । ऐसे उद्यान में राग-द्वेष से रहित होकर मन को प्रिय लगने वाली अनेक प्रकारकी कथा वार्ता आदि से मध्याह्न सुखपूर्वक व्यतीत करना चाहिए ।

वसंत ऋतु में क्या त्याग देना चाहिए ?

इस ऋतु में दिन में शयन करना, गुरु, स्निग्ध, शीतल, अम्ल एवं मधुरपदार्थों का सेवन सर्वथा त्याग देना चाहिए । यहां मधुर से गुरु स्निग्ध मीठे पदार्थोंका निषेध है जो कफ वर्धक है परंतु लघु, रूक्ष, मधु (शहद) आदि पदार्थ जो कफनाशक हैं उनका निषेध नहीं है। इसी प्रकार जो सदा दिन में सोने के आदि होंउनके लिए भी दिन में सोने के नियम में ठील दी जा सकती है पर यह हानिप्रद ही है क्योंकि दिन में सोने से कफ की वृद्धि होकर अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं इसीलिए कहा गया है-

दिवास्वापादि दोषैश्न प्रतिश्यायश्च जायते ।

प्रतिश्यायारुचि कासः कासात्‌ संजायते क्षयः ॥

अतः यथासंभव दिन में सोने से बचना ही चाहिए। रोग आदि की अवस्थामें तो ढील सब नियमों और चर्या में आ ही जाती है, फिर भी यथा शक्य ऋतु चर्या का पालन करना मानव का परम धर्म है ।

वसंत ऋतु में स्वस्थ रहने के लिए क्या करना चाहिए ?

इस प्रकार वसंत ऋतु की यथाविधि चर्या का पालन करना मानव के स्वास्थ्यके लिए परमावश्यक है। बुद्धिमान प्राणी का कर्तव्य है कि वह सदा अपने स्वास्थ्यके प्रति जागरुक रह कर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हो । भारत जैसे देश में जहाँ परंपरा की एक वृहद श्रृंखला विद्यमान है और जहाँ सदा मोक्षेच्छु प्रादर्भूत हुए वहाँ स्वास्थ्य की अतीव आवश्यकता है। भारत जैसे निर्धन देश के नागरिक यदि सब आयुर्वेद वर्णित चर्याओं का ही विधिवत्‌ पालन करें तो उन्हें किसी भी अन्य साधनकी स्वास्थ्य रक्षण के लिए आवश्यकता न रहेगी। यह सब विचार कर आशा है पाठक आयुर्वेद की इस उक्ति पर ध्यान देंगे ।

 

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